आज़ ज़ज्बातों को गंगा में बहा आया हूँ,
टूटे ख़्वाबों को मैं खुद ही ज़ला आया हूँ.
अब न पैरों में चुभेंगी यादों की किरचें,
मैं उन्हें उनको ही सौगात में दे आया हूँ.
अब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
साथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ.
मौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
बाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
आज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
...कैलाश शर्मा
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ....
निशब्द करती रचना
सादर ....
सुन्दर रचना कैलाश जी,आभार।
ReplyDelete-कमेन्ट शीर्षक को प्रत्येक पोस्ट शीर्षक के साथ दिखाएँ !!-
सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,,कैलाश जी,आभार
ReplyDeleteRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
waah...bohat khoob
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
बेहतरीन नज़्म लाजवाब
sir ji aap mere reading list men wirajman hain
वाह बहुत ही मार्मिक गजल, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
ReplyDeleteमौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
बाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
आज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
बेहतरीन .
मौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
ReplyDeleteबाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
आज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
bahut dard bhara hai
मन के भाव स्पष्ट व्यक्त होते हुये।
ReplyDeleteजग का दर्द ..दिल के हवाले से ....
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
.........खूबसूरत भाव बेहतरीन प्रस्तुती
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आदरणीय \-
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (03-07-2013) के .. जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम .!! चर्चा मंच अंक-1295 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
excellent..
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति......
ReplyDelete
ReplyDeleteमन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
बेहतरीन रचना
बधाई
जीवन बचा हुआ है अभी---------
अब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
ReplyDeleteसाथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ.
मौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
बाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास ...
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteAchhi lagi...
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
बहुत खूबसूरत गज़ल कही है कैलाश जी ! हर शेर दिल के जज्बातों को शिद्दत से बयान कर रहा है ! बहुत खूब !
बहुत खुबसूरत रचना है कैलाश जी
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
आज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
बहुत बढ़िया गजल
सर जी ,बेहतरीन प्रस्तुति, खूबसूरत गज़ल
ReplyDeletewaah bahut sundar ...
ReplyDeletebahut sundar....khubsoorat gazal...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, खुबसूरत एहसास ...
ReplyDeleteमौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
ReplyDeleteबाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
bahut sundar .....hr sher lajbab .
अब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
ReplyDeleteसाथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ....
लाजवाब शेर ... तन्हाइयां ही हम सफर हों तो उम्र भर का साथ हो जाता है ...
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
निःशब्द करती नज़्म
बेहद उम्दा शेर...मौन की भाषा कम ही समझ आती है..
ReplyDeleteमन को पत्थर से बदल आया हूँ.......बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
वाह....इस शेर के लिए खास दाद कबूल करें।
मौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
ReplyDeleteबाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
बहुत सुंदर ...
सुन्दर रचना कैलाश जी,आभार।
ReplyDeleteबहुत-बहुत-बहुत...ही सुंदर!
ReplyDeleteएक-एक शेर दिल को छू कर गुज़र गया.....
~सादर!!!
अब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
ReplyDeleteसाथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ.
अब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
आज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
बहुत ही उम्दा शेरो से लिखी ग़ज़ल शुक्रिया कैलाशजी.
kailash ji
ReplyDeletesundar rachna
एक चटका यहाँ भी लगाइये :
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2013/07/blog-post.html
ज़बरदस्त ग़ज़ल बनी है.
ReplyDeleteअब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
साथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ.
बहुत बढ़िया शेर लगा.
मौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
ReplyDeleteबाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
बहुत बढ़िया एहसास ...
Behatarin kavita..Mujhe blog ka headline behad pasand aaya: अश्रु क्या है ? दर्द की मुस्कान है. पीर क्या है ? प्यार का प्रतिदान है. जी रहे हैं सब जीने का अर्थ जाने बिना, ज़िन्दगी क्या है ? मृत्यु का अहसान है.
ReplyDeleteKya bat hai..
अति सुंदर...
ReplyDeleteबहुत ही बढियां गजल..
ReplyDeleteलाजवाब...
:-)
सुन्दर पंक्तियां समेटे हुए !
ReplyDeleteमौन की भाषा समझ पायी है कब दुनियां,
ReplyDeleteबाद खोने के तुम्हें अब ये समझ पाया हूँ.
बेहतरीन पंक्तियाँ! बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.
सादर
मधुरेश
उम्दा..
ReplyDeleteअब न रिश्ते की ज़रुरत है, न रहबर की,
ReplyDeleteसाथ तनहाई को मैं अब घर ले आया हूँ.
बहुत ही लाजवाब गजल. सुन्दर अभिव्यक्ति.
एक से बढ़कर एक शेर
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी बहुत सुन्दर काव्य रचना....
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी बहुत सुन्दर काव्य रचना....
ReplyDeleteअब न अहसास के ज़ंगल में भटकना होगा,
ReplyDeleteआज मैं दिल को पत्थर से बदल लाया हूँ.
वाह!
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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