एक एक पल
मंजिल के निकट आने पर,
थके कदम करते इंकार
आगे बढ़ने को,
टूटे अहसासों का बोझ
चाहता बह जाना
अश्क़ों में.
थके कदमों को
रुकने दें कुछ देर
आख़िरी मंज़िल से पहले,
बहने दें अश्क़ों में
टूटे अहसासों का बोझ,
होने दें शांत कुछ पल
रिश्तों से मिली जलन,
मिलेगा कुछ तो सुकून
और कम होगा कुछ बोझ
शेष यात्रा में.
...कैलाश शर्मा
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमार्मिक-अभिव्यक्ति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
वाकई अश्क बह जाने के बाद जब मन हल्का हो जाता है, तो मन को थोड़ा तो सुकून मिल ही जाता है क्यूंकि एक तरह से आँसू मन का ज़हर ही होते है उनका बेह जाना ही अच्छा है। उम्दा भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभारी मन से हम क्यों भागें, आने दो जिनको आना है।
ReplyDeleteसुन्दर, लेकिन डर लगता है कि
ReplyDeleteकहीं ये अश्क, "आसक्ति" की डोर
को और मजबूत न कर दे .
मंजिल को गले लगाने से पहले,
ये अश्क कहीं पैरों की जंजीर न बन जाये।
सो कुछ ऐसा हो कि,
बस निर्विकार , निर्लिप्त, शुन्यमय हो जाऊं .
सत्य को परिभाषित कर दिया।
ReplyDeleteमार्मिक के साथ साथ बहुत गहन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
रिश्तों की जलन उम्र भर तकलीफ देगी ... उन्हें भूल जाना ही बेहतर होता है ....
ReplyDeleteएक.... मन की गहराइयों को छूती मार्मिक रचना
ReplyDeletesach ko likha hai aapne bahut sundar rachna
ReplyDeleteKyun bhai ...
ReplyDeleteaisa ho sakataa hai
bhavpoorn rachna
ReplyDeleteमन को छू लेनेवाली भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteSimply superb
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मन को छूती हुई रचना
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरिश्तों की जलन.... कब शांत होती भला... :(
ReplyDeleteभावुक करती रचना... सर!
~सादर!!!
भीतर तक उतरती संवेदना ..... सच को परिभाषित करते भाव
ReplyDeleteआखिरी सफ़र हमेशा बेहद भावुक होता है...और इसके आखिरी होने की कशिश भी कुछ ज्यादा ही सालती है..
ReplyDeleteसुंदर रचना।।
आभार...
ReplyDeleteबहुत मार्मिक, सही कहा मंजिल के पास आकर इंतजार नही होता
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है,शुभकामनाये
रिश्तों से मिली जलन भला कब खत्म होती है .... बहुत संवेदनशील रचना ।
ReplyDeleteमन पर पड़ी अहसासों की छाप हर सफर में साथ होती है सफर चाहे आख़िरी हो या पहला ! काश कोई जादू ऐसा होता कि दिल की पीड़ा बढाने वाली स्मृतियों को वस्त्रों की तरह बदला जा सकता ! मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteरिश्ते वही हैं … जो रिसते रहते हैं …. जलन असहनीय होता है … पर यही सच्चाई है … कटु सत्य को उकेरती रचना ….
ReplyDeleteगहन संवेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सटीक विवेचन...मंजिल से पहले रुककर हल्का करना ही होगा..क्योंकि इस मंजिल के आगे एक और सफर है..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमंजिल के निकट आ जाने पर उसे पा लेने की ललक भी बढ़ जाती है इसलिए थकन भी अधिक लगती है ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरी रचना...
ReplyDeletebahut hi marmik abhivykti
ReplyDeleteदुःख हो या सुख..यात्रा यूँ ही निरंतर चलती रहेगी
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteरिश्तों से मिली जलन को रुक कर शांत होने दें.......बढ़िया, सुन्दर। चित्र कविता के गहन भावों के अनुकूल नहीं लग रहा मुझे, खासकर बेतरतीब जींस पहने हुए व्यक्ति का। यदि आपको यह सुझाव उचित लगे तो चित्र बदलने का कष्ट करें।
ReplyDeleteसुझाव के लिए आभार...
Deleteआज ही देखा कि चित्र बदल हुआ है और कविता के भावानुरुप है। धन्यवाद श्रीमान।
Deletelovely but so poignant..
ReplyDeleteexpressions are so touching..
piercing right through heart.
सुंदर रचना.....
ReplyDeleteचलते जाना है,ज़िन्दगी का साथ निभाना है,
ReplyDeleteकौन सा सफ़र आखिरी है ये किसने जाना है...
संवेदना से भरी रचना... बहुत सुंदर प्रस्तुति!!
ReplyDeleteआखिरी मंजिल पर आकर भी कहाँ मिल पाता है सुकून का एक पल किसी को... भावुक रचना, शुभकामनाएँ!
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