मत बांधो जीवन नौका
किसी
किनारे सागर के
रिश्तों
की ड़ोर से,
आती जाती
हर लहर
टकरायेगी
नौका को
बार बार
किनारे से,
और लौट
जायेगी
देकर एक
नयी चोट
करके तन
क्षत-विक्षत.
छोड़ दो
नौका लहरों के सहारे,
शायद न
मिले मंज़िल
पर होगा
बेहतर डूब जाना
चोट लगने
से अंतस को
पल पल बंधकर मज़बूर ड़ोर से.
...कैलाश शर्मा
पर होगा बेहतर डूब जाना
ReplyDeleteचोट लगने से अंतस को…
बेहद गहन भाव … आभार
शायद किनारा मिल भी जाए ...
ReplyDeleteजो भी हो नौका को तो छोड़ना ही होगा ... गहरे भाव और जीवन दर्शन के साथ लिखी रचना ...
बहुत भावपूर्ण रचना ...बधाई
ReplyDeleteबेहद गहन भाव लिए सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-12-2014) को तालिबान चच्चा करे, क्योंकि उन्हें हलाल ; चर्चा मंच 1829 पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : यादें
सच ,डूब जाने पर चोट लगने का तो डर तो नहीं अहेगा ...भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteनारी !
मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteअच्छा लगा एक दूसरा नजरिया आपका. दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ याद आ रही हैं जिसमे वो उस बात से मुग्ध है की नाव लहरों से टकरा तो रही है-
ReplyDeleteइस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है
वाsssह !
Deleteबहुत सुंदर..
ReplyDeleteLife is a strange boat. It moves forwards and backwards and that way it goes on. Lovely words.
ReplyDeleteनैया कहाँ होती है बँधी रहने के लिए !
ReplyDeleteधरातल का दुख प्रकट है इन पक्तियों में।
ReplyDeleteसही कहा है पर इस चोट के बिना दिल भी तो नहीं लगता है .
ReplyDeleteगति ही जीवन है अतः जीवन रूपी नौका को बहने देना चाहिए, भले क्षति हो या घात लगे. यही जीवन है... बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteकिनारे बंध कर क्या होगा लहरों के संग बहना ही जीवन है। सुंदर रचना।
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी,
ReplyDeleteकविता में निहित भावों के दृष्टिकोण से स्वभाव का अनुमान भी लगता है।
सभी जानते हैं : नदी का बहता जल और साधु दोनों किनारों की मर्यादा में रहते तो हैं परन्तु कहीं रुकते नहीं।
यहाँ आपकी भाव रूपी 'नाव' अज्ञात किनारों वाले असीम सागर में खो जाना चाहती है या डूब जाना चाहती है।
यह या तो कोई अध्यात्म का भाव है या फिर उन्माद का।
बहुत खूब
ReplyDeleteछोड़ दो नौका लहरों के सहारे,
ReplyDeleteशायद न मिले मंज़िल
पर होगा बेहतर डूब जाना
चोट लगने से अंतस को
पल पल बंधकर मज़बूर ड़ोर से.
प्रभावी पंक्तियां।
behad bhaawpurn...saarthak abhivyakti...
ReplyDeleteमत बांधो जीवन नौका
ReplyDeleteकिसी किनारे सागर के
रिश्तों की ड़ोर से,
..................
जि़ंदगी की तुलना नौका से,
एकदम सटीक तुलना !
गंभीर जीवन दर्शन। नौका ही तो है हमारा जीवन, कब किधर बाह जाए क्या पता।
ReplyDeleteWishing you a very happy & Prosperous New Year.. Thanks for all the support! Keep writing! Keep lighting!… BEST PRAYERS FOR FUTURE!!
ReplyDeleteजीवन नौका...
ReplyDeleteबड़ी सार्थक और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
अनिल साहू
" बॉधो न नाव इस ठॉव बन्धु
ReplyDeleteपूछेगा सारा गॉव बन्धु ।
यह घाट वही जिसमें हँसकर
वह कभी नहाती थी धँसकर ।
ऑखें रह जाती थीं फँसकर
कंपते थे दोनों पॉव बन्धु ।"
निराला