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Thursday, June 13, 2013

कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहने दें

सारा जीवन गंवा दिया है
प्रश्नों के उत्तर देने में,
बैठें भूल सभी बंधन को,
कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहने दें.

सूरज पाने की चाहत में,
शीतलता शशि की बिसरायी,
टूटे तारों से अब क्या मांगें,
अब आस यहीं पर थमने दें.

रिश्ते बने कभी ज़ंजीरें,
यादें बनीं कभी अंगारे,
बंद करें मुट्ठी में कुछ पल,
कल को कल पर ही रहने दें.

तप्त धूप में चलते चलते
सूख गयी जीवन की सरिता,
क्यों ढूंढें छाया तरुवर की
अपनी छाया ही साथी बनने दें.

धोखा खाया जब अपनों से
शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
जीवन अब निर्झर बहने दें. 


.....कैलाश शर्मा