Sunday, June 12, 2011

जनता को कमजोर न समझो

कहाँ  गये  बापू  के  सपने?
कहाँ गयी है सत्य अहिंसा?
कहाँ  हुई है  गुम मानवता?
बढती जाती है क्यों हिंसा?

जितना ज्यादा जो धनवाला,
उतनी धन  की  भूख  बड़ी है.
रिश्वत से क्या  टाल सकोगे,  
अगर  सामने   मौत खड़ी है.

सेवा  करने का वादा कर,
वोट  माँगने घर पर आये.
सत्ता मिलते ही पल भर में,
सब उसूल ताक धर आये.

जनता जब इंसाफ मांगती,
तुमको सहन नहीं हो पाता.
धन की  चकाचौंध  से अंधे,
भूल   गये  गांधी से  नाता.

लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
अब हिंसा को गले लगाते.
सोये  हुए पुरुष, नारी  पर,
तुम  लाठी से वार कराते.

नहीं  हमारे शास्त्र  सिखाते,
करना वार निहत्थे जन पर.
यह तो एक निशाचरवृति है,
हाथ  उठाये  सोते जन  पर.

जनता को कमजोर न समझो,
सोते  शेरों  को  नहीं  जगाओ.
सत्ता  मद में  चूर न  हो  तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.

48 comments:

  1. समसामयिक और ओज पूर्ण अच्छी रचना

    ReplyDelete
  2. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.

    सही आह्वाहन. शाशक को कर्तव्यों के प्रति सचेत करता सुंदर गीत.

    ReplyDelete
  3. जनता जब इंसाफ मांगती,
    तुमको सहन नहीं हो पाता।
    धन की चकाचौंध से अंधे,
    भूल गये गांधी से नाता।

    सभी सत्ताधारी धनलोलुप हो गए हैं।
    गांधी जी के सपनों को तार-तार कर रहे हैं ये लोग।

    ReplyDelete
  4. Last verse is the crux !!!
    Excellent write up.

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन , ओजमयी रचना । शायद सत्ता में चूर लोगों को होश आ जाए।

    ReplyDelete
  6. सेवा करने का वादा कर,
    वोट माँगने घर पर आये.
    सत्ता मिलते ही पल भर में,
    सब उसूल ताक धर आये.

    बहुत ही बढ़िया....

    ReplyDelete
  7. ओजपूर्ण रचना.... सही कहा आपने। बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..

    ReplyDelete
  8. लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
    अब हिंसा को गले लगाते.
    सोये हुए पुरुष, नारी पर,
    तुम लाठी से वार कराते... sahi dhikkara hai

    ReplyDelete
  9. A brilliant poem whats happening in a country of non-violence preachers.Impeachment is going on ---
    A real story telling mind blowing creation .
    Thanks a lot .

    ReplyDelete
  10. सेवा करने का वादा कर,
    वोट माँगने घर पर आये.
    सत्ता मिलते ही पल भर में,
    सब उसूल ताक धर आये.

    सच्चाई बयां करते शब्द...बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..

    ReplyDelete
  11. सच्चाई को दर्शाती दिल को छू लेने वाली कविता !
    आपकी भावपूर्ण,दिल को कचोटती अनुपम अभिव्यक्ति को मेरा सादर नमन.आभार!
    आपके आक्रोश ने राष्ट्रीयता के बीज बोना शुरू कर दिया है | यह कार्य तो ऐसा है कि जितना भी धिक्कारा जाए कम है |
    बाबा के साथ जो हो रहा है बो बाबा और पूरे भारत की जनता के साथ ग़लत हो रहा | जो अंग्रेज करते थे बो आज केंद्र सरकार कर रही है|
    मुझे लगता है की भारत मे किसी को सरकार से कुछ पूछने और उनको मनमानी करने से रोकने का हक है ही नही |
    इस प्रकरण ने दो बात सॉफ कर दी है | राजनीति एक दलदल है इस नही कूदना चाहिए दूसरा ब्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ मत उठाओ नही तो बर्बाद हो जाओगे और दुर्भाग्यवश बाबा ने दोनो ग़लतिया कर दी | ये देश हमेशा गुलाम रहा आज भी यहा रोमन हुक्म चला रहे है | आज़ादी से आजतक ये देश गाँधी परिवार की मिल्कियत रहा है और आगे भी रहेगा |

    ReplyDelete
  12. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
    अब हिंसा को गले लगाते.
    सोये हुए पुरुष, नारी पर,
    तुम लाठी से वार कराते.
    bilkul sahi kaha hai aapne .aabhar

    ReplyDelete
  14. आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है।….. धन्यवाद

    ReplyDelete
  15. वाह ! कितनी सार्थक और ओजपूर्ण रचना. परन्तु क्या उन बहरों, लोभियों और सत्ता के मद में चूर दम्भियों को होश आयेगा? उन्हें सता चाहिए, सिद्धांत नहीं. बधाई इस भावपूर्ण रचना के लिए.

    ReplyDelete
  16. ओजपूर्ण आह्वान ...... सादर !

    ReplyDelete
  17. राजनीति कई बार मानवनीति पर खरी नहीं उतरी है।

    ReplyDelete
  18. आदरणीय भाईसाहब
    सादर वंदे मातरम्!

    मैंने आपकी कविता पतंग पढ़ने के बाद लिखा था कि भाईजी , पूरा हिंदुस्तान हिल गया 4 जून की काली रात के बाद ।

    आपकी समर्थ लेखनी ने अवश्य कुछ लिखा होगा , वही पढ़ने आया था ।


    आभारी हूं , आपने मेरे आग्रह की रक्षा की ।

    सोये हुए पुरुष, नारी पर,
    तुम लाठी से वार कराते.

    नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
    करना वार निहत्थे जन पर.
    यह तो एक निशाचरवृति है,
    हाथ उठाये सोते जन पर.

    पिछली प्रविष्टि एक और जालियांवाला बाग के लिए भी शुक्रिया !

    मेरे यहां आ'कर समर्थन देने , आवाज़ में आवाज़ मिलाने के लिए भी कृतज्ञ हूं !
    अब तक तो लादेन-इलियास
    करते थे छुप-छुप कर वार !
    सोए हुओं पर अश्रुगैस
    डंडे और गोली बौछार !
    बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
    पागल कुत्ते पांच हज़ार !

    सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
    ऐ दिल्ली वाली सरकार !

    पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
    आपका हार्दिक स्वागत है

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  19. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.

    वीर रस से परिपूर्ण समसामयिक कविता !

    ReplyDelete
  20. आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है। धन्यवाद|

    ReplyDelete
  21. जनता की ताकत से सत्ताधीशों को आगाह कराती सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  22. बहुत ही ओजमयी सचेतक -प्रेरक रचना के लिए आपको अनंत बधाई

    ReplyDelete
  23. जनता तो बेचारी प्रजा बन कर रह जाती है , चुनाव के दिनों में कुछ दिनों के लिए राजा ....चार दिन की चांदनी , फिर अँधेरी रात ...
    वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों पर अच्छी कविता !

    ReplyDelete
  24. समसामयिक और ओजपूर्ण पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  25. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.

    ReplyDelete
  26. बिलकुल सही बता कही है सर! कविता में.

    सादर

    ReplyDelete
  27. जनता को कमजोर न समझो,
    सच तो ये है कि जनता खुद अपनी ताकत का आकलन नहीं कर पा रही है.
    सार्थक चेतावनी

    ReplyDelete
  28. बहुत ओजपूर्ण एवं प्रेरक रचना !

    जितना ज्यादा जो धनवाला,
    उतनी धन की भूख बड़ी है.
    रिश्वत से क्या टाल सकोगे,
    अगर सामने मौत खड़ी है.

    इनका बस चले तो ये मौत को भी रिश्वत देकर अपना गुलाम बना लें ! प्रभावशाली रचना ! अभिनन्दन !

    ReplyDelete
  29. अजी जनता कमजोर है, यह नेतागण अच्‍छी तरह से जानते हैं इसलिए ही हो सोते हुए पर लाठी चलाते हैं।

    ReplyDelete
  30. ओजपूर्ण रचना.... सही कहा आपने। बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन

    ReplyDelete
  31. बहुत सुन्दर और जाग्रत करने वाली पोस्ट है....प्रशंसनीय|

    ReplyDelete
  32. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ....


    काश जनता जल्दी जागे ... कहीं देर न हो जाए ... बहुत ओज़स्वी रचना है ....

    ReplyDelete
  33. राजनीति में अब दरिंदों का राज है ... बहुत सुन्दर कटाक्ष !

    ReplyDelete
  34. jago janata jago gulzar ji ne sahi kaha hai guthli-guthli choosa gaya aam admi

    ReplyDelete
  35. जितना ज्यादा जो धनवाला,
    उतनी धन की भूख बड़ी है.
    रिश्वत से क्या टाल सकोगे,
    अगर सामने मौत खड़ी है.
    wah kamal hai
    vyakti fir bhi nahi sochta .kash aapki baat logon ke samajh me aajati
    saader
    rachana

    ReplyDelete
  36. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
    सही चेतावनी फिर ना कहना हमने समझाया नहीं

    ReplyDelete
  37. सशक्त आव्हान करती ओजपूर्ण कविता.

    ReplyDelete
  38. हमारे नेताओं ने जनता को टेकन फॉर ग्रंटेड ले रखा है ............

    ReplyDelete
  39. अच्छी लगी ओजपूर्ण कविता . आभार .

    ReplyDelete
  40. लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
    अब हिंसा को गले लगाते.
    सोये हुए पुरुष, नारी पर,
    तुम लाठी से वार कराते.
    नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
    करना वार निहत्थे जन पर.
    यह तो एक निशाचरवृति है,
    हाथ उठाये सोते जन पर...
    बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! शानदार, लाजवाब और प्रेरणादायक रचना! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  41. जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.

    ओजपूर्ण रचना. सार्थक लेखन .

    ReplyDelete
  42. नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
    करना वार निहत्थे जन पर.
    यह तो एक निशाचरवृति है,
    हाथ उठाये सोते जन पर.dil ko jhakjhorati,oajpoorn saarthak rachanaa badhaai sweekaren.


    please visit my blog.thanks.

    ReplyDelete
  43. ओजपूर्ण कटाक्ष...

    ReplyDelete
  44. आम आदमी के क्षोभ और आक्रोश को स्वर दे रही है आपकी ओजपूर्ण रचना ...

    सत्तानशीन ये दुर्दांत दस्यु शीघ्र ही अपनी सच्ची गति प्राप्त करेंगे , इसमें कोई संदेह नहीं

    ReplyDelete
  45. "जनता को कमजोर न समझो,
    सोते शेरों को नहीं जगाओ.
    सत्ता मद में चूर न हो तुम,
    कहीं न फिर ठोकर खा जाओ."

    ओजस्वी रचना के लये साधुवाद

    ReplyDelete