समझते रहे
एक दूसरे की चाहत
कहने से पहले ही,
उठा लिया पलकों से
एक दूसरे का गम
बिना कुछ कहे,
परिवार की हर खुशी
बनाली अपनी
और बन गये कन्धा
एक दूसरे के गम में.
ज़िंदगी की जद्दोज़हद
और भाग दौड़ ने
फंसाये रखा
अपने मकडजाल में,
नहीं गये कभी
केंडल डिनर पर,
हाथों में हाथ ड़ाल कर
नहीं घूमे सागर तट पर,
नहीं किया इज़हार
कभी शब्दों में प्यार
और न दिया कभी
लाल गुलाब.
जीवन के इस मोड़ पर
क्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?
कैलाश शर्मा
प्रेम सच्चा है तो इस तरह अपना हिस्सा होता है कि अव्यक्त ही रह जाता है...!
ReplyDeleteसुन्दर भाव!
*क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?*
वही प्रेम था!
Regards,
वही सच्चा प्रेम था जिसे अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं थी...
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुंदर एवं सार्थक भाव संयोजन ...मेरा तो यह मानना है की प्यार सिर्फ प्यार होता है फिर वो क्षणिक हो या अनंत अपार... मौन हो या कह दिया गया हो। प्यार तो बस प्यार है।
ReplyDeleteबिलकुल था और सच कहें तो यही प्रेम है जो मौन में अभिव्यक्त है.....बहुत सुन्दर पोस्ट है ।
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए हुए ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सही कहा..सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर ,
ReplyDeleteजिद्दोजहद को जद्दोजहद कर दीजिये !
वही तो प्रेम है....
ReplyDelete२० रुपये का एक गुलाब दिया तो प्रेम हुआ क्या???
सुन्दर रचना..
बातो हो बातों में आपने सबकुछ कह दी
ReplyDeleteजीवन के इस मोड़ पर
ReplyDeleteक्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?
.... bahut hi gahri baat
प्रेम को कहना नहीं पड़ता ... बस वो होता है ... एक दूसरे के लिए समर्पित ...सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबधाई ||
सच्चा प्रेम अभिव्यक्ति की बात कब जोहता है? वह तो बस अभिव्यक्त हो जाता है....
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
सादर...
जीवन के इस मोड़ पर
ReplyDeleteक्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?
Wo bhee prem hee hota hai! Use kaise nakar sakta hai koyee?
वास्तविक प्रेम का चित्रण, अंतर्मन को झकझोर देने वाली कविता। धन्यवाद!
ReplyDeleteबड़ी प्यारी कविता है
ReplyDeleteये मूक प्रेम था ...बस जीवन की भाग-दौड़ में जताने का समय नही था..
ReplyDeleteसच!
बेहतरीन अभिव्यक्ति,बधाई ||
ReplyDeletevery nice creation sir...
ReplyDeleteएक दूसरे की चाहत
ReplyDeleteकहने से पहले ही,
उठा लिया पलकों से
एक दूसरे का गम
बिना कुछ कहे,....प्यारी कविता है
pyar ki sunder vyakyha ki hai aapne..........
ReplyDeleteप्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति........
ReplyDeleteप्रेम को प्रतीकों की क्या आवश्यकता भला..
ReplyDeleteजी हाँ यही प्रेम था सच्चा प्रेम जिसे व्यक्त करने के लिए किसी गुलाब की आवश्यकता नहीं होती...बहुत सुन्दर भाव... सादर
ReplyDeleteप्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।
ReplyDeletegazab sirji , gazab..
ReplyDeletebehtareen..
agar sach mein dekha jaaye to isse sachha prem aur koi nahi :)
palchhin-aditya.blogspot.in
bahut badhiyaa
ReplyDeletedikhaane se prem nahee hotaa
जी हाँ वो ही तो प्रेम था..... सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रेम तो स्वयं व्यक्त है उसे अभिव्यक्ति की आवश्यकता तो नहीं
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ...
ReplyDeleteनिश्चित यही तो प्रेम था !
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी रचना !
निश्चित यही तो प्रेम था !
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी रचना !
@ कैलाश जी,
ReplyDeleteस्वानुभूत प्रेम को बहुत ही करीने से व्यक्त किया है.
'प्रेम' व्यक्ति के जीवन में बिखरा हुआ है...उसके प्रत्येक कर्म में, जुड़े हुए संबंधों में, दायित्वों में वह समाविष्ट है... 'प्रेम' के अनेक रूप हैं.... जिसे हम कुशल गृहस्थी और विनम्र संतान दोनों में देख सकते हैं. बड़ों के छोटों के प्रति ममता/ वात्सल्य के भाव; और छोटों के बड़ों के प्रति श्रद्धा और आदर के भाव क्या 'प्रेम' नहीं कहे जाने चाहिए?... प्रेम की अभिव्यक्ति मौन हो अथवा मुखर... प्रेमी (पात्र) को केवल शब्दों की भाषा से ही समझना नहीं आना चाहिए ... उसे कायिक और मानसिक भावाभिव्यक्ति को भी समझना आना चाहिए.
आपके काव्यमय विचारों ने मेरी सोच को भी अपना अनुयायी बना लिया. आभारी हूँ.
बहुत बहुत शुक्रिया प्रतुल जी...
Deleteप्रेम की अलौकिक परिणीति..
ReplyDeleteप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति,,,,,
ReplyDeleteकल 15/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
ReplyDeleteक्या वह प्रेम नहीं था ?
धन्यवाद!
प्रेम मौन ही अच्छा लगता हैं ....मन को छु लेने वाले शब्दों के साथ ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहाँ यही प्यार है,
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति
MY NEW POST ...कामयाबी...
"जीवन के इस मोड़ पर
ReplyDeleteक्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?"
सही मायने में प्रेम यही है.....
जो कहा न जाए...
और सुनने वाला सुन ले,
ये सब टोटके उनके लिए हैं जो प्यार करना नहीं जानते।
ReplyDeleteजीवन के इस मोड़ पर
ReplyDeleteक्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था
bahut behtareen rachna.........
प्रेम तो वही था......
ReplyDeletecare and share ..
वास्तव में..... कैलाश जी ,सच्चा प्रेम तो वाही था जो अनकहा रह गया.... बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजीवन के इस मोड़ पर
ReplyDeleteक्यों उठा यह प्रश्न
क्या उनका प्रेम,
जो सदैव रहा मौन
और नहीं था इंतज़ार
जिसे अभिव्यक्ति का,
प्रेम नहीं था ?
Bhav pradhan kavita. Pathkon par amit prabhav chhodti rachna.
aaadarniy kailash ji , vastav me saccha prem wahi hota hai jo apne karam ko karta jata hai ye dekhe bina ki hamne izhar kiya hai athva nahi, bas prem to prem hai ........
ReplyDeleteसच पूछो तो असली प्रेम यही है ... दिल से दिल तक का प्रेम ...
ReplyDeletepyaar gahra hota hai anubhooti ka jisme koi dikhava na ho vahi sachcha prem hai.bahut sundar likha.
ReplyDeletesachcha prem abhivyakti ka intajar nahi karta,vah to bas nirantar bahta rahta hai.
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