चमचमाती स्कूल ड्रैस
पीठ पर लटकता बस्ता
हसरत जगा देता है
स्कूल जाने की.
लेकिन नज़र आता है
खांसते हुए रिक्शा चलाता बापू
घरों में झाडू पोंछा करती माँ
और फिर भी नहीं मिल पाती
भरपेट रोटी भाई बहनों को.
सबको मुफ्त शिक्षा
किताबें और ड्रैस
नहीं काफी जीने को,
भर नहीं सकता पेट
केवल किताबों से.
क्या फायदा उस शिक्षा का
जो कर दे खड़ी
बेरोजगारों की एक लम्बी क़तार.
वातानुकूलित हॉल में
बाल मज़दूरी पर बहस करना
और कानून बनाना
बहुत आसान है,
लेकिन जाकर देखें
किसी गरीब का घर
और उनकी मज़बूरी.
सड़क पर आवारागर्दी करने
चोरी या भीख माँगने से बेहतर
गाड़ी के नीचे लेटकर
नट बोल्ट खोलना,
ग्रीस और धूल से
काले हुए कपड़ों को भूल,
सपने देखना
कि बन जाऊँगा
मैं भी उस्ताद
कुछ सालों बाद.
केवल आश्वासन देने
या क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.
कैलाश शर्मा
आज की सच्चाई दर्शाती सुंदर रचना, प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
विरोधाभास का मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteबहुत सही.....यथार्थ का आईना दिखती पोस्ट...काश सभी लोग समझ पाते और देख पाते उस पेंचकस और पाने मे छुपी शाम की रोटी की जरूरत को तो शायद आज कहीं और ही होते हम ...बहुत बढ़िया सर
ReplyDeletereality unleashed..
ReplyDeletetrue its easy to make laws but when it comes to implementation.. everything looks just mockery
sach baat kahti hai aapki likhi yah rachna ,,bahut sundar abhiwykti ...
Deleteक्या फायदा उस शिक्षा का
ReplyDeleteजो कर दे खड़ी
बेरोजगारों की एक लम्बी क़तार.
बहुत सुन्दर और सत्य को उजागर करती ये पोस्ट लाजवाब है......हैट्स ऑफ इसके लिए|
केवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.....बिल्कुल सही कहा कैलाश जी आप ने..आज अधिकतर लोगो को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ रहा है..मार्मिक चित्रण किया है..
आपके उत्कृष्ठ लेखन का आभार ।
ReplyDeletebahut sundar rachna..
ReplyDeleteकेवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.
उत्तम सोच !शायद , क़ानून बनाने वालों की नींद खुल जाए.....
बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteकटु सत्य है जीवन का,हमारे समाज का....
ReplyDeleteबेहद सार्थक रचना..
सादर.
बहुत बढ़िया, यही सब बातें तो इन करप्ट हुकुमरानो के कचरे दिमाग में नहीं घुसती कि सिर्फ वोट के लिए लैपटॉप का झुनझुना गरीब का पेट नहीं भर सकता !
ReplyDeleteवातानुकूलित हॉल में
ReplyDeleteबाल मज़दूरी पर बहस करना
और कानून बनाना
बहुत आसान है,
लेकिन जाकर देखें
किसी गरीब का घर
और उनकी मज़बूरी.
...भाषण में मेहनत नहीं , आदर्श ही आदर्श है . आँखों की चाह दहकती जा रही है
केवल आश्वासन देने
Deleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
Yahee sach hai!
saarthak desh ki gambheer samsya ki taraf ishara karti behtreen prastuti.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन सर... कटु सत्य को चित्रित करती खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई..
ekdam jhakkas baat keh di :)
ReplyDeleteye sab hmari sarkaar ko smjh aana chahiye...
bal majdoori ke peechhe ka kadva satya...
ReplyDeleteमुझे इस पेचकस और पाने में
ReplyDeleteदिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य....
nice one sir...
कटु सच को बहुत ही सहजता और सार्थकता से प्रस्तुत किया है आपने......
ReplyDeleteकेवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता...
सटीक कथन... असली जीवन कुछ और है...सच्चाई यही है... आभार
वाह ...जीवन की सचाई को दिखाती और सुनाती हुई रचना ...सार्थक लेखनी
ReplyDeleteSACCHHAYI KA EK CHEHRA YE BHI.....SOCHNE PAR MAZBOOR KARTI RACHNA.
ReplyDeleteसवालों से मुठभेड़ करती कविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteएक कटु सत्य ...सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत ही अंदर तक घुस जाने वाली रचना
ReplyDeleteसटीक चित्रण ...आज के हालातों और मानसिकता का
ReplyDeleteमौजूदा अव्यवस्थाओं को प्रदर्शित करती पोस्ट।
ReplyDeleteबेहतरीन सार्थक रचना,लाजबाब आज के हालातों का प्रस्तुतीकरण..
ReplyDeleteNEW POST...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
सच्चाई को आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! आज हमारे देश में यही हालत है और पढ़ाई या नौकरी इन दोनों में किसी एक को चुनना पड़ता है तो बहुत मुश्किल हो जाता है! दिल को छू गई हर एक शब्द !
ReplyDeleteउस्ताद बनने का सपना लिए रोटी की जुगत .. मर्म पर आघातिक रचना और अपनी विवशता कि केवल आह ही कर रह जाते हैं..
ReplyDeleteमार्मिक सत्य,उत्कृष्ठ लेखन |
ReplyDeleteकल 03/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सच को परिभाषित करती कविता...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
हर बच्चे को शिक्षा ही नहीं वरन स्तरीय और समान शिक्षा मिले...
ReplyDeleteक्या कहे जिन बच्चो के मां बाप पढ़े लिखे नही है वे कैसे हमारे बच्चो से मुकाबला कर पायेंगे यह् समस्या कैसी है सदियो की खता हमारी अगली पीढ़ी चुकायेगी
ReplyDeleteBahut Sundar ... sarthak rachna ..
ReplyDeleteMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
सच को उसी सरलता से मगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeleteवातानुकूलित हॉल में बाल मज़दूरी पर बहस करना
ReplyDeleteऔर कानून बनाना बहुत आसान है!
बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना!
ऐसी ही होती है सच्ची कविता, जो दूसरे के दर्द का अहसास कराये।
ReplyDeleteबधाई के साथ साथ आभार भी.....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
कड़वा सच...
ReplyDeletekamaal ki rachna hai sir..
ReplyDeletebahut sahi kaha apne.. AC hall mein baith kar kanoon bana dena aur ye soch lena ki sab sudhar gaya.. bahut aasaan hai..
par asli zameen ki haalat kya hai wo to zameen par rehne wala hi jaanta hai ..
केवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.
एक दम सही कहा है .. यथार्थवादी रचना ..
तीखी सच्चाई.
ReplyDeleteसत्य को उजागर करती यथार्थवादी रचना लाजवाब है...
ReplyDeleteसर बहुत ही अच्छी कविता |
ReplyDeleteकेवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया क़ानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.
आपकी कविता तो कैलाश जी हकीकत को आइना दिखा रही है. बहुत सुंदर बधाई.
मार्मिक किन्तु हकीकत के बहुत करीब ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब .. सोचने को मजबूर करती की हमारा जनतंत्र कितना जन लिए हुवे है ...
saty vachan,
ReplyDeleteकेवल आश्वासन देने
ReplyDeleteया कानून बनाने से
पेट नहीं भरता,
मुझे इस पेचकस और पाने में
दिखती है शाम की रोटी
मूक असहायों की वेदना को अभिव्यक्त करती अच्छी रचना।
बिलकुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteसार्थक सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteवाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
ReplyDeleteनई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
वाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
ReplyDeleteनई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
जब तक गरीबी का अभिशाप नहीं मिटता तब तक शिक्षा का स्वप्न भी अधूरा ही रहेगा..
ReplyDeleteविकास की आंकड़ेबाज़ी के बीच की हकीक़त यही है।
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब .. सोचने को मजबूर करती अच्छी रचना
ReplyDeleteलम्बे अन्तराल के बाद नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
......अनाम रिश्ते
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteमुझे इस पेचकस और पाने में
ReplyDeleteदिखती है शाम की रोटी
और अपना भविष्य.bilkul shi bat.
अत्यंत संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteसादर.
hmmmmmmmmmmm...............ab chain mila hain sari posts padh li..........
ReplyDeletebs itna hi wah....amazing thi sari posts