आठवां अध्याय
(अक्षरब्रह्म-योग-८.१-१०)
अर्जुन
क्या है ब्रह्म कहो पुरुषोत्तम,
अध्यात्म, कर्म किसे हैं कहते?
किसे कहा अधिभूत गया है,
और किसे अधिदैव हैं कहते? (८.१)
हे मधुसूदन! इस शरीर में
कहो कौन अधियज्ञ है होता?
तुम्हें मृत्युकाल है कैसे जाने
जिसका मन वश में है होता? (८.२)
श्री भगवान
अक्षर तत्व ही परम ब्रह्म है,
अध्यात्म स्वभाव को कहते.
भाव प्राणियों में पैदा करती,
उस सृष्टि को कर्म हैं कहते. (८.३)
नश्वर भाव अधिभूत है होता,
विराट पुरुष अधिदैवत कहते.
इस देह में स्थित मैं ही अर्जुन,
मुझको ही अधियज्ञ हैं कहते. (८.४)
अंत काल स्मरण मुझे कर,
तज शरीर प्रयाण है करता.
इसमें संशय नहीं है अर्जुन,
वह मेरे स्वरुप को लभता. (८.५)
अंत काल त्यागता जब तन
जो जो भाव स्मरण करता.
उसी भाव से भावित हो कर,
वही भाव प्राप्त वह करता. (८.६)
सतत स्मरण करके मेरा
जाओ युद्ध करो तुम अर्जुन.
निश्चय ही पाओगे मुझको,
मन बुद्धि को करके अर्पण. (८.७)
अभ्यास और योग से अर्जुन
चित्त न विचलित होने पाता.
निश्चय वह प्राणी हे अर्जुन!
दिव्य परम पुरुष को है पाता. (८.८)
सर्वद्रष्टा, प्राचीन, नियंता,
परम सूक्ष्म सबका धारक है.
अचिन्त्यरूप, आदित्यवर्ण,
तप से परे ब्रह्म चिन्तक है. (८.९)
भक्ति युक्त, योग शक्ति से,
मृत्यु समय जो ध्यान है करता.
भ्रकुटि बीच प्राण स्थिर कर,
परम ब्रह्म को प्राप्त है करता. (८.१०)
.........क्रमशः
कैलाश शर्मा
अक्षर तत्व ही परम ब्रह्म है,
ReplyDeleteअध्यात्म स्वभाव को कहते.
भाव प्राणियों में पैदा करती,
उस सृष्टि को कर्म हैं कहते.....वाह: बहुत सार्थक.रचना..आभार
बहुत ही सुन्दर पद्यानुवाद |आभार
ReplyDeleteभक्ति युक्त, योग शक्ति से,
ReplyDeleteमृत्यु समय जो ध्यान है करता.
भ्रकुटि बीच प्राण स्थिर कर,
परम ब्रह्म को प्राप्त है करता.,,,,,,,,
बहुत सार्टक पद्यानुवाद,,,,बधाई कैलाश जी,,,,
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सर्वद्रष्टा, प्राचीन, नियंता,
ReplyDeleteपरम सूक्ष्म सबका धारक है.
अचिन्त्यरूप, आदित्यवर्ण,
तप से परे ब्रह्म चिन्तक है.
भक्ति भाव से पूर्ण पंक्तियाँ!
Kaash! Aap mere college ke zamane me ye sab llikte aur mai padh pati!Maine Geeta ka un dinon abhyas kiya tha!Bahut-si baaten tab spasht nahee ho patee theen,jo ab aapka lekhan padhtee hun to samajh pati hun.
ReplyDeleteसुन्दर व्याख्या... आभार... कैलाश जी
ReplyDeleteगहरे प्रश्न पर सहज उत्तर..
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण ||
ReplyDeleteबेहतरीन !
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteअंत काल त्यागता जब तन
ReplyDeleteजो जो भाव स्मरण करता.
उसी भाव से भावित हो कर,
वही भाव प्राप्त वह करता ...
वाह ... कितना सरल भाव .... सीधे ह्रदय में आत्मसात होता है ...
अद्बुध कार्य कर रहे हैं आप ...
अक्षर तत्व ही परम ब्रह्म है,
ReplyDeleteअध्यात्म स्वभाव को कहते.
भाव प्राणियों में पैदा करती,
उस सृष्टि को कर्म हैं कहते.
बहुत सुन्दर भावानुवाद अर्थ गर्भित सार लिए .
भक्ति भाव से पूर्ण व्याख्या.
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण...
ReplyDeleteआभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या |
ReplyDeleteएक परम सत्य से अवगत कराती आपकी यह प्रस्तुति बेहद अच्छी लगी। धन्यवाद।
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