आठवां अध्याय
(अक्षरब्रह्म-योग-८.२०-२८)
लेकिन इस अव्यक्त परे भी
अव्यक्त सनातन भाव है होता.
प्राणी समस्त नष्ट होने पर,
लेकिन अनादि है नष्ट न होता. (८.२०)
अव्यक्त ही अक्षर कहलाता,
उसे परम गति भी हैं कहते.
वह मेरा ही परम धाम है,
पाकर जिसे न पुनः लौटते. (८.२१)
हे अर्जुन! वह परम पुरुष है,
प्राप्त अनन्य भक्ति से होता.
जीव सभी उसमें स्थित हैं,
उससे जगत व्याप्त है होता. (८.२२)
हे अर्जुन! वह समय बताता,
जब योगी हैं संसार से जाते.
कुछ वापिस है नहीं लौटते,
लेकिन कुछ वापिस आ जाते. (८.२३)
अग्नि,ज्योति,शुक्लपक्ष,दिन,
छह मास उत्तरायण के होते.
जो इस समय संसार से जाते,
ब्रह्मज्ञ प्राप्त ब्रह्म को होते. (८.२४)
मृत्यु धूम, रात्रि, कृष्णपक्ष व
दक्षिणायन में जो योगी पाते.
भोग स्वर्ग में कर्मों का फल,
वे फिर से हैं पृथ्वी पर आते. (८.२५)
शुक्ल और कृष्ण दो रस्ते
जग में शाश्वत माने जाते.
शुक्ल गति मोक्ष दायक है
कृष्ण गति से वापिस आते. (८.२६)
भ्रमित कभी न होता योगी,
ये दोनों ही मार्ग जान कर.
अतः सदा तुम हे अर्जुन!
रहना युक्तयोग है हो कर. (८.२७)
वेद, यज्ञ, तप, दान द्वारा
पुण्य शास्त्र में जो बतलाये.
ऊपर उठ करके इन सब से
योगी परम पद को है पाये. (८.२८)
......क्रमशः
**आठवां अध्याय समाप्त**
कैलाश शर्मा
आपके योगी-भाव को नमन..सुन्दर अनुवाद से और सरल कर दिया है आपने ' गीता को '.
ReplyDeleteइस प्रस्तुति से अभिभूत हैं, और प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteहमेशा कि तरह सुन्दर ।
ReplyDeleteसरल शब्दों में गीता का बेहतरीन अनुबाद,,,प्रसंसनीय,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
मैं नियम से इसे पढ़ती हूँ...अब इस पर कहूँ क्या,बस बढ़ती जा रही हूँ इसकी लय पर
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!..आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है , बधाई |
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteइस अनुवाद से गीता सुगीता बन रही है।
ReplyDeleteइतनी सरलता से गीता समझ में आ सकती है नहीं लगता था ! वाकई !
ReplyDeleteवेद, यज्ञ, तप, दान द्वारा
ReplyDeleteपुण्य शास्त्र में जो बतलाये.
ऊपर उठ करके इन सब से
योगी परम पद को है पाये.
भावानुवाद पूरी लय गति ताल अर्थ लिए चल रहा है व्यष्टि और समिष्टि के .
ram ram bhai
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मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
दी इनविजिबिल सायलेंट किलर
प्राणी समस्त नष्ट होने पर,
ReplyDeleteलेकिन अनादि है नष्ट न होता.
kitni sarthak baat .....!!
bahut sundar rachna ...!!abhar.
namaskaar kailash ji
ReplyDeletehamesha ki tarah umda aur geeta ko padhna hamesha accha lagta hai ....aur aapki kalam ko naman
@प्राणी समस्त नष्ट होने पर,
ReplyDeleteलेकिन अनादि है नष्ट न होता
- जय हो!
तोड़ो सीमायें
ReplyDeleteभूलो सब बंधन
जियो ज़िंदगी.
(४)
अपनी सीमा
गर पहचानते
न पछताते.
इन दो हाइकू में आपकी सोच परस्पर-विरोधी है