मन कहता सब कुछ छोड़ चलें,
अनजान डगर पर जा निकलें.
रिश्तों की जितनी गांठें हैं
उनको सुलझाना रहने दें.
कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
उसको कुछ हल्का होने दें.
मोड़ मिले आगे या पथरीली राहें,
इस भूलभुलैया से आगे निकलें.
जो चाहा, वह पाया कब है,
चाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.
विस्मृत कर आकांक्षाएं सब की,
कुछ पल तो आज स्वयं को रखलें.
अश्कों को जमा बर्फ़ करदें,
नयनों को कुछ आराम मिले.
स्मृतियां सब छोड़ चलें पीछे
होठों को कुछ मुस्कान मिले.
विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
कैलाश शर्मा
अनजान डगर पर जा निकलें.
रिश्तों की जितनी गांठें हैं
उनको सुलझाना रहने दें.
कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
उसको कुछ हल्का होने दें.
मोड़ मिले आगे या पथरीली राहें,
इस भूलभुलैया से आगे निकलें.
जो चाहा, वह पाया कब है,
चाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.
विस्मृत कर आकांक्षाएं सब की,
कुछ पल तो आज स्वयं को रखलें.
अश्कों को जमा बर्फ़ करदें,
नयनों को कुछ आराम मिले.
स्मृतियां सब छोड़ चलें पीछे
होठों को कुछ मुस्कान मिले.
विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
कैलाश शर्मा
विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
ReplyDeleteजो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
सुन्दर मन के भाव ..शांत से ..
shubhkamnayen ...!!
रिश्तों की जितनी गांठें हैं
ReplyDeleteउनको सुलझाना रहने दें.
कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
उसको कुछ हल्का होने दें.
मोड़ मिले आगे या पथरीली राहें,
इस भूलभुलैया से आगे निकलें.
..बहुत सुन्दर आध्यात्मक पुट लिए प्रेरक प्रस्तुति
जो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी...दोराहे,चौराहे,विराम पर यही मनःस्थिति होती है
सर बहुत ही सुन्दर भावों को शब्दों में पिरोया है आपने. बहुत-२ बधाई
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार
ReplyDeleteजो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.,,,उत्कृष्ट पंक्तियों के बधाई कैलाश जी,,,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
बहुत ही उम्दा भाव |
ReplyDeleteसादर |
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसकारत्मक भाव लिए रचना
रिश्तों की जितनी गांठें हैं
उनको सुलझाना रहने दें.
कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
उसको कुछ हल्का होने दें.
बहेतरीन है
हार्दिक बधाई
हां कभी कभी जी करता है यूँ ही...सब छोड़ निकल जाने का..
ReplyDeleteमगर ये "सब" हमें कहाँ छोडता है....
बेहतरीन रचना..
सादर
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कुछ वक्त के लिए दुनियादारी से दूर
ReplyDeleteहोकर मन को शांति अवश्य
देनी चाहिए .....
मन की बाते सहज.सरल भाव में....
बेहतरीन रचना ...
:-)
विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
ReplyDeleteजो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
आ इस एक पल को तो जी लें .बढ़िया प्रस्तुति .भाव अर्थ ओर व्यंजना देखते ही बनती है .
जो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी....बहुत सुन्दर भाव सुन्दर प्रस्तुति..
अश्कों को जमा बर्फ़ करदें,
ReplyDeleteनयनों को कुछ आराम मिले.
स्मृतियां सब छोड़ चलें पीछे
होठों को कुछ मुस्कान मिले.
इस उम्र तक आते आते जो भाव मन मेँ आते हैं उनका सटीक और सुंदर चित्रण ... बहुत अच्छी लगी रचना ।
ReplyDeleteविस्मृत कर आकांक्षाएं सब की,
कुछ पल तो आज स्वयं को रखलें.
मन के भावों का सुंदर शाब्दिक चित्रण ....
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteपर मुट्ठी ही तो जेब में चली जाती है
खाली हवा लेकर फिर बाहर आ जाती है !
लेकिन मन है की फिर भी नहीं मानता ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteविस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
ReplyDeleteजो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
Fabulous lines Kailash. Very thoughtful..
you write n inspire.
regards
sniel
वाह...बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteजीवन के बीच बीच में आवारगी कर लेनी चाहिये।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteप्रवीण जी की आवारगी भी गौरव किये जाने योग्य है.
मन की चंचलता लिए हुए सुन्दर रचना
ReplyDeletewaah satik sarthak chitran .........bahut acchi lagi abhivyakti badhai
Delete
ReplyDeleteविस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
बहुत सुंदर ! जीवन बोध को प्रस्तुत करती पंक्तियाँ..
जो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.
साच कहा | सबका वही हाल है |
सुंदर रचना |
मेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे
जो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.
जीने कि सही राह दिखाती बहुत सुंदर रचना.
जो चाहा, वह पाया कब है,
ReplyDeleteचाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.
वाह !!!! कैलाश जी, जीवन का सार लिख गये इन पंक्तियों में.
सुन्दर भावपूर्ण, संदेशप्रद रचना के लिय आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मन की अभिव्यक्ति..
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