आठवां अध्याय
(अक्षरब्रह्म-योग-८.१०-१९)
वीतराग मुनि जिसमें प्रवेश को
ब्रह्मचर्य व्रत पालन हैं करते.
मैं वह तत्व संक्षेप में कहता,
वेदान्ती अक्षर ब्रह्म हैं कहते. (८.११)
इन्द्रिय द्वारों का संयम कर,
मन निरुद्ध ह्रदय में करके.
भ्रकुटि बीच प्राण स्थिर कर,
योग भाव आश्रय लेकर के. (८.१२)
भजते एकाक्षर ॐ ब्रह्म को,
मेरा सतत स्मरण करता.
ऐसे शरीर त्यागता जो जन,
परमगति को प्राप्त है करता. (८.१३)
केवल मुझमें चित्त लगा कर
प्रतिदिन सतत स्मरण करता.
उस एकाग्र चित्त योगी को
अर्जुन सदा सुलभ मैं रहता. (८.१४)
मुझे प्राप्त कर के महात्मा
पुनर्जन्म का कष्ट न सहते.
वे साधक जन पूर्ण रूप से
सिद्धि रूप मोक्ष हैं लभते. (८.१५)
ब्रह्म लोक तक सब लोकों में
पुनर्जन्म अवश्य है होता.
किन्तु मुझे पा लेने पर अर्जुन,
पुनर्जन्म है न फिर होता. (८.१६)
सहस्त्र युगों का एक रात्रि दिन
ब्रह्मा समय चक्र में होते.
जो इस बात का ज्ञान हैं रखते,
वे हैं इसका तत्व समझते. (८.१७)
ब्रह्मा के दिन के आने पर
अव्यक्त से प्राणी पैदा होते.
प्रलय रूप रात्रि आने पर
फिर विलीन उसमें ही होते. (८.१८)
वे प्राणी फिर जन्म हैं लेते,
ब्रह्मा का दिन फिर आने पर.
और विलीन हैं वे हो जाते,
रात्रि काल के फिर आने पर. (८.१९)
.........क्रमशः
कैलाश शर्मा
(अक्षरब्रह्म-योग-८.१०-१९)
वीतराग मुनि जिसमें प्रवेश को
ब्रह्मचर्य व्रत पालन हैं करते.
मैं वह तत्व संक्षेप में कहता,
वेदान्ती अक्षर ब्रह्म हैं कहते. (८.११)
इन्द्रिय द्वारों का संयम कर,
मन निरुद्ध ह्रदय में करके.
भ्रकुटि बीच प्राण स्थिर कर,
योग भाव आश्रय लेकर के. (८.१२)
भजते एकाक्षर ॐ ब्रह्म को,
मेरा सतत स्मरण करता.
ऐसे शरीर त्यागता जो जन,
परमगति को प्राप्त है करता. (८.१३)
केवल मुझमें चित्त लगा कर
प्रतिदिन सतत स्मरण करता.
उस एकाग्र चित्त योगी को
अर्जुन सदा सुलभ मैं रहता. (८.१४)
मुझे प्राप्त कर के महात्मा
पुनर्जन्म का कष्ट न सहते.
वे साधक जन पूर्ण रूप से
सिद्धि रूप मोक्ष हैं लभते. (८.१५)
ब्रह्म लोक तक सब लोकों में
पुनर्जन्म अवश्य है होता.
किन्तु मुझे पा लेने पर अर्जुन,
पुनर्जन्म है न फिर होता. (८.१६)
सहस्त्र युगों का एक रात्रि दिन
ब्रह्मा समय चक्र में होते.
जो इस बात का ज्ञान हैं रखते,
वे हैं इसका तत्व समझते. (८.१७)
ब्रह्मा के दिन के आने पर
अव्यक्त से प्राणी पैदा होते.
प्रलय रूप रात्रि आने पर
फिर विलीन उसमें ही होते. (८.१८)
वे प्राणी फिर जन्म हैं लेते,
ब्रह्मा का दिन फिर आने पर.
और विलीन हैं वे हो जाते,
रात्रि काल के फिर आने पर. (८.१९)
.........क्रमशः
कैलाश शर्मा
आपके द्वारा गीता का पद्यानुवाद बहुत ही अविस्मरणीय कार्य है |आभार
ReplyDeleteजन्म मृत्यु का महाचक्र यह..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके द्वारा पद्यानुवाद बहुत ही अविस्मरणीय है,इस सराहनीय कार्य के लिये ,,,,,बधाई,,,,
ReplyDeleteRECENT P0ST फिर मिलने का
accha laga ....
ReplyDeleteगीता का पद्यानुवाद बहुत खूबसूरती से किया जा रहा है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDelete
ReplyDeleteब्रह्म लोक तक सब लोकों में
पुनर्जन्म अवश्य है होता.
किन्तु मुझे पा लेने पर अर्जुन,
पुनर्जन्म है न फिर होता. (८.१६)
मोक्ष का द्वार यही है अर्जुन ...बढ़िया प्रस्तुति .
कानों में होने वाले रोग संक्रमण का समाधान भी है काइरोप्रेक्टिक में
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन...
ReplyDelete:-)
... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteकेवल मुझमें चित्त लगा कर
ReplyDeleteप्रतिदिन सतत स्मरण करता.
उस एकाग्र चित्त योगी को
अर्जुन सदा सुलभ मैं रहता.....
वाह ... सब कुछ मुझ को सौंप दे ... कृष्ण मय हो जाता है इंसान पढ़ने के बाद इसे ...
लजवाब है ...
gyanvardhak ...bahut sundar rachna ...!!
ReplyDeleteabhar .
ब्रह्म लोक तक सब लोकों में
ReplyDeleteपुनर्जन्म अवश्य है होता.
किन्तु मुझे पा लेने पर अर्जुन,
पुनर्जन्म है न फिर होता.
गीता का गहन ज्ञान सरल भाषा में...आभार !
Beautiful sharing..
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ReplyDeleteइस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें.
'अक्षर ब्रह्म योग' का सुन्दर काव्यानुवाद.
ReplyDeleteआभार,कैलाश जी.