सागर की लहरें
आती हैं किनारे
देती हैं शीतलता
भिगोकर पैरों को
कुछ पल को,
लेकिन जब लौटती हैं
ले जाती हैं कुछ रेत
पैरों के नीचे से
और लगता है खालीपन
पैरों के नीचे.
खिसक रही है
ज़िंदगी की रेत
धीरे धीरे हर पल
और महसूस होता है
खालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के
जाने के बाद.
बस इंतज़ार है
उस आख़िरी लहर का
जो बहा ले जाये
रेत के आख़िरी कण
और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.
कैलाश शर्मा
जीवन की हकीक़त ब्यान करती ओजस्वी चिंतन......सुंदर अभिव्यक्ति ,सर ,सादर वन्दे !
ReplyDelete
Deleteबस इंतज़ार है
उस आख़िरी लहर का
जो बहा ले जाये
रेत के आख़िरी कण
और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.............
namaskaar kailash ji
bahut hi jeevant rachna likhi hai aapne , jeevan ki sacchai , kaash aisa hi ho pata aur sab kuch bah jane ke baad phir kuch na jaata .....sundar prastuti
खिसकी रही है,,,,,, (खिसक )
ReplyDeleteज़िंदगी की रेत
धीरे धीरे हर पल
और महसूस होता है
खालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के
जाने के बाद.,,,,,
भावनात्मक खूबशूरत प्रस्तुति,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
आखिरी लहर मुक्ति की ... कोई चिंता,कोई उम्मीद न रहे जकड़े ...
ReplyDeleteयही तो प्राप्य और कर्तव्यों की इति है ...
पैरों के नीचे से कुछ खिसकने का भय न हो ..
ReplyDeleteतो फिर जीवन आसान ही हो जाए ..
गजब की भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं। धन्यवाद !!
my recent post -
घर कहीं गुम हो गया
निःशब्द हो गया हूँ सर कितनी गहराई से इतनी गहरी बात लिखी है, आपको प्रणाम।
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
जिंदगी का खिसकना ही तो ...जीवन है ना एक अजीब से खालीपन के साथ
ReplyDeletedeepest feelings, bahut khoobबस इंतज़ार है
ReplyDeleteउस आख़िरी लहर का
जो बहा ले जाये
रेत के आख़िरी कण
और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.
गहरी अभिव्यक्ति..... मन का खालीपन यूँ ही कचोटता है
ReplyDelete
ReplyDeleteबस इंतज़ार है
उस आख़िरी लहर का
जो बहा ले जाये
रेत के आख़िरी कण
और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.
इंतज़ार क्यूँ करना ,जब आयेगा ,तब आयेगा
अभी तो बहुत रचनी है नित नयी - नयी रचना ..... :)
इस गहराई में बस डूबते ही जाना है..
ReplyDeleteअंतिम बेला की दस्तक पर आप ही अपने द्वार खोलें ,मन के खालीपन को समेटे शानदार रचना आभार ,
ReplyDelete....सुन्दर ।
ReplyDeleteरेत का आख़िरी कण
ReplyDeleteखिसकना ही है
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से
फिर क्यों ना
डूबने से पहले
तूफानों से लड़ें
लहरों से खेलें
गहन अभिव्यक्ति...शुभकामनायें...
बहुत उम्दा कविता सर |
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट रचना...
ReplyDelete:-)
बस उस एक लहर का ही तो कबसे इन्तजार है ...
ReplyDeleteपर ना जाने क्यों बची रहती है रेत थोड़ी-सी,
हर बार पैरों के नीचे...
बस उस एक लहर का ही तो इन्तजार है ... गहरी अभिव्यक्ति...आभार
ReplyDeleteसन्देश देती हुई बढ़िया रचना!
ReplyDeleteसारगर्भित रचना
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण और गहन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteक्षणवाद पर बेहद सशक्त रचना .
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना. वही आखिरी लहर जो हमे भी रेत बना दे. पुनः रेत के साथ आये हम एक बार फिर से लहरों पर.
ReplyDeleteपैरों के नीचे से खिसकती रेत जैसे जीवन गुजर जाता है . समय अपने साथ क्या कुछ नहीं बहा ले जाता !
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति...लहरें रेत को ले जाती हैं और वापस भी लाती हैं.
ReplyDeletedil ke kashmkash ko shabdon me piroya hai badi khubsurti se ....
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति .. ज़िन्दगी के इस पड़ाव पे वाकई कितना कुछ दीखता है इन लहरों में ..
ReplyDeleteसुन्दर।
सादर
मधुरेश
लहरें, रेत के कण, समय और जीवन, प्रतीकों में जीवन-दर्शन को तलाशती एक अच्छी कविता।
ReplyDeleteतकते हैं,
ReplyDeleteलहरें आती हैं, जाती हैं।
लखते हैं,
कुछ लाती, कुछ ले जाती हैं।
हम भी इनके संग बह जायें,
जब समय शेष न रहे यहां,
इनकी गतियों सा बने रहें,
है शेष समय जो मिला यहाँ।
निशब्द कर दिया …………सार्थक जीवन चिन्तन
ReplyDeletekailash sir aap behtareen likhte ho:)
ReplyDeleteरोजमर्रा के अनुभवों से जीवन दर्शन को जोड़ना बहुत सुखद लगा. बधाई.
ReplyDeleteयही तो है जीवन की सच्चाई न जाने लहरों को गिनते गिनते कब वक़्त निकल जाता है और इन्तजार रहती है उस अंतिम लहर की अंतिम बिंदु की बहुत गंभीर भावपूर्ण रचना बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteरेत सी फिसलती हुई जिंदगी, इसकी वास्तविक हकीकत तो यही है।
ReplyDeleteकल 05/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आभार
Deleteखिसक रही है
ReplyDeleteज़िंदगी की रेत
धीरे धीरे हर पल
और महसूस होता है
खालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के
जाने के बाद.......और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.....और फ़िर न बचे
कुछ बहने को
लहरों के साथ
पैरों के नीचे से.
सुंदर रचना !
ReplyDeleteलहरों को इस तरह महसूस हमने भी अक्सर किया है...~ लगता है, जैसे वो अपनी बेचैनी बाँटने आतीं हैं...मगर हमसे हमारी ही बेचैनी बाँटकर मायूस हो वापस लौट जातीं हैं... :) :(
~सादर
खिसक रही है
ReplyDeleteज़िंदगी की रेत
धीरे धीरे हर पल
और महसूस होता है
खालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के
जाने के बाद.
बहुत ही सुन्दर |
Beautiful :)
ReplyDeleteकैलाश जी जिंदगी की सच्छाई बायाँ करती उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकार करें ।
ReplyDeleteभाव पूर्ण रचना... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com आप का स्वागत है।
ReplyDeleteऔर महसूस होता है
ReplyDeleteखालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के
जाने के बाद.
bahut hi sundar rachana Kailas ji abhar,
रेत घड़ी के पात्र सा पल छिन रीत रहा है जीवन .
ReplyDeleteAPNAA POORAA PRABHAV MAN PAR CHHODTEE HAI AAPKEE KAVITA .
ReplyDeleteBADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
ye zamee chaand se behtar nazar aati hai hamein...
ReplyDeleteबहुत सुंदर जीवन दर्शन कराती रचना..उस अंतिम लहर का स्वागत करने को जो तैयार है वही उनका रहस्य भी जानता है..
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति सन्देश देती हुई बढ़िया रचना!
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