नहीं सोचा था कभी
आँगन की हरी भरी बगिया में
छा जायेगा मरुथल
और उग आयेंगे कैक्टस।
बगिया की सोच
शायद होगी सही,
नहीं रही होगी आशा
पानी देने और
देखभाल करने की
इन कमजोर
और कांपते हाथों से,
और सौंप दिया आँगन
मरुथल के हाथों में
जहां उगते सिर्फ कैक्टस
जिन्हें नहीं ज़रूरत
किसी देखभाल की।
आज देखा आँगन में
कैक्टस पर खिला
एक सुंदर फूल,
छूने को बढ़ी उंगलियों में
चुभ गया
कैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
कैलाश शर्मा
आँगन की हरी भरी बगिया में
छा जायेगा मरुथल
और उग आयेंगे कैक्टस।
बगिया की सोच
शायद होगी सही,
नहीं रही होगी आशा
पानी देने और
देखभाल करने की
इन कमजोर
और कांपते हाथों से,
और सौंप दिया आँगन
मरुथल के हाथों में
जहां उगते सिर्फ कैक्टस
जिन्हें नहीं ज़रूरत
किसी देखभाल की।
आज देखा आँगन में
कैक्टस पर खिला
एक सुंदर फूल,
छूने को बढ़ी उंगलियों में
चुभ गया
कैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
कैलाश शर्मा
ReplyDeleteबेहद गहन भाव पिरोये सशक्त अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें
बगिया की सोच
शायद होगी सही,
नहीं रही होगी आशा
पानी देने और
देखभाल करने की
इन कमजोर
और कांपते हाथों से,
और सौंप दिया आँगन
मरुथल के हाथों में
जहां उगते सिर्फ कैक्टस
जिन्हें नहीं ज़रूरत
किसी देखभाल की।
आदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
वाह ... बहुत ही बढिया।
bahut bdhiya bhav hai aur umda soch , sach me cactus ko jaroorat nahi kisi ki , phir bhi phool khilate hai , kanta chubha jo ungli me aadat batate hai
Deleteबहुत बढ़िया भाव आदरणीय ।।
ReplyDeleteबधाईयाँ ।।
काँटा ने हरदम दिया, उस गुलाब का साथ ।
चाह गुलाबों की किया, जरा बढाया हाथ ।
जरा बढाया हाथ, चुभन को सहता रहता ।
पोछूं आंसू खून, नहीं दिल कुछ भी कहता ।
धरा धरे मरू रूप, कैक्टस से क्या घाटा ।
उगे फूल पर कर्म, नहीं भूले वह काँटा ।।
बहुत सुंदर...आभार रविकर जी...
Deleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बढ़िया...!
ReplyDeleteउम्र के इस दौर में
ReplyDeleteभले ही उगा लिए हों कैक्टस
यह सोच कर कि
नहीं ज़रूरत होगी
देख भाल की
लेकिन यही वो वक़्त है
जब सबसे ज्यादा ज़रूरत है
नेह प्यार की ।
बहुत सुंदर बिम्ब और उतनी ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति
चुभ गया
ReplyDeleteकैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
भावों को बहुत ख़ूबसूरती से शब्दों का जामा पहनाया है आपने बहुत खूब
बहुत बढ़िया .....!
ReplyDeleteकोई तो बता दे मेरी पहचान क्या है ?
yatharth ko abhivyakti pradan karti rachna .aabhar
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
काँटों से बिंधने की
ReplyDeleteगुलाबों को छूने पर।
वाह ... बहुत ही बढिया
हम सबके साथ साझा करने के लिए आपका शुक्रिया
बहुत गहन भाव पूर्ण रचना है कैलाश जी |
ReplyDeleteगहन अर्थ और भाव लिए बहुत ही बढ़ियाँ रचना..
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबढ़िया बिम्ब कैक्टस का संजोया पिरोया है रचना में .बधाई .
फूल की है चाह सबको..
ReplyDeleteआज देखा आँगन में
ReplyDeleteकैक्टस पर खिला
एक सुंदर फूल,
छूने को बढ़ी उंगलियों में
चुभ गया
कैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
बहुत भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना,,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
Behad sundar! Jab jeewan ka paryawaran tabah hoga to phoolon ke badle kaante ugenge hee!
ReplyDeleteनहीं सोचा था कभी
ReplyDeleteआँगन की हरी भरी बगिया में
छा जायेगा मरुथल
और उग आयेंगे कैक्टस।
बहुत ही सुन्दर लगी यह कविता |आभार सर
आदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
संवेदनाओं की उच्च सीमा को स्पर्श करती कविता।
बहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
सादर
अनु
आज देखा आँगन में
ReplyDeleteकैक्टस पर खिला
एक सुंदर फूल,
छूने को बढ़ी उंगलियों में
चुभ गया
कैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
मालूम हुआ बिना एहसास के मैं ज़िंदा हूँ इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें खैरमकदम कर सकूं .बढ़िया
रचना है सर जी .
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसादर.
bahut sunder bhav ...........
ReplyDeleteउम्र के इस पडाव पर कांटे सहने की आदत हो जाती है उंगलियों को और मन को भी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteदिल को छूने वाला लेख।सर अब तो हर आँगन में कैक्टस उगे हैं, और इनके फूल और काँटे की सबको आदत हो गयी है.
ReplyDeleteसादर-
मेरी नयी पोस्ट - विचार बनायें जीवन.....
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDelete
ReplyDeleteकल 26/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
गहन अभिव्यक्ति...उँगलियों को आदत हो जाती है चुभन सहने की!!
ReplyDeleteछूने को बढ़ी उंगलियों में
ReplyDeleteचुभ गया
कैक्टस का काँटा
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
गहन रचना
उंगलियों को क्या ...दिल को भी आदत हो जाती है !दर्द सहने की !
ReplyDeleteएहसासों से गुंथी रचना !
शुभकामनायें!
बहुत खूबसूरत ,लाजवाब रचना।
ReplyDeleteवाह कैलाश जी ...आपकी इस रचना में बहुत रहस्य छिपा है ..
ReplyDeleteआँगन में हरी दूब का केक्टस में बदलना ...कमजोर बाँहों की बेबसी ...मुलायम हरी घास की नर्माहट और काँटों की चुभन.... बहुत खूब
बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteसादर,
निहार
बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteआदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
...वाकई .....अपनों के दिए दर्द का कोई पारावार नहीं .....
bhavpurn rachna...har shabd man may gehre utarti
ReplyDeleteअद्भुत व् सुंदर जीवन दर्शन
ReplyDeleteसादर वन्दे सर !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकाँटों से बिंधने की
ReplyDeleteगुलाबों को छूने पर।
gahan bhav se sanjoyee khoobsurat rachna..
आदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
बहुत सुन्दर
Bahut khoob,sir.Dil ko chhoo gai.
ReplyDeleteआदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर।
कैक्टस हो या गुलाब ....कांटा तो आवश्यम्भावी है ........बहुत सही ...!!
सुंदर अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें ...!!
वाह खूबसूरत भाव .......सादर
ReplyDeletebahut hi gahre bhav hai.... sunder prastuti.
ReplyDeleteखूबसूरत भाव व्यक्त हुए हैं ....ध्यान/केयर टेक /सजगता न रखने पर कैक्टस या इस तरह के घास फूस उग ही जाते हैं |बहुत खूबसूरत ढंग से शब्दों को पिरोया गया हैं ...बधाई http://drakyadav.blogspot.in/
ReplyDeleteआदत हो गयी थी
ReplyDeleteउंगलियों को
काँटों से बिंधने की
गुलाबों को छूने पर..
superb expressions.. how we get accustomed to suffering !!
अति सुन्दर बिम्ब विधान .बढ़िया रचना .गुलाब को छूने कांटो से बिंधने की आदत हो गई है ,यही है विधना
ReplyDeleteमधुर बिम्ब संयोजन ...
ReplyDeleteकाँटों की आदत हो जाए तो दर्द नहीं रहता ... हर सच को झेला जाता है ...
बहुत खूब ...
सुंदर प्रसतुति है आपकी !! कैक्टस के फूल वाकई में जीवन की राहों में फूलों के साथ साथ कांटो का प्रेम भी झेलना पड़ता है.
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