Saturday, January 05, 2013

भूख


कोहरे से घिरी
कंपकंपाती सुबह,
कंधे पर बड़ा थैला
कूड़े के ढेर में ढूँढ़ती
प्लास्टिक की थैलियाँ,
शरीर पर पतला स्वेटर
अनजान ठंड से
अविश्वसनीय भारत की बेटी.

शायद पेट की भूख
भुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.

चढ़ाये गरम कपड़ों की परत  
गुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.

कैलाश शर्मा  

42 comments:

  1. भूख .... यही तो सच है , बहुत गहरा , बहुत कड़वा , बहुत बहुत शक्तिशाली .......... जो देता है हौसला, विकृति,... और न जाने क्या क्या !!!

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  2. शायद पेट की भूख
    भुला देती ठंड का अहसास
    रोटी की जुगाड़ में,
    भूखे पेट की ठंड
    होती है असहनीय
    मौसम की ठंड से.
    बहुत ही यथार्थवादी कविता |सुन्दर

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
    सूचनार्थ!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आप बिलकुल सही करते हैं..

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  4. सुन्दर-प्रस्तुती ||
    आभार सर |

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  5. वातावरण भी समाज की तरह ठंडा हो गया।

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  6. बर्फ हुयी संवेदनाओं की मार्मिक प्रस्तुति

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  7. बहुत प्रभावशाली रचना

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  8. भूख की आग इतनी इन्हें इतनी गर्मी देती है की ठण्ड का अहसास भी नहीं होता... मार्मिक रचना... आभार

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  9. प्रभावशाली रचना सुन्दर-प्रस्तुती शायद पेट की भूख
    भुला देती ठंड का अहसास
    रोटी की जुगाड़ में,
    भूखे पेट की ठंड
    होती है असहनीय
    मौसम की ठंड से.

    चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
    गुज़र गए लोग पास से
    पर नहीं हुई सिहरन
    मन या तन में,
    शायद इंसानियत और अहसास
    ज़म जाते इस मौसम में.

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  10. प्रभावी रचना जो सोचने को मजबूर करती है

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  11. पेट की भूख भुला देती ठंड का अहसास,,प्रभावशाली रचना,,,बहुत खूब कैलाश जी,,

    recent post: वह सुनयना थी,

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  12. बेहद मार्मिक प्रस्तुति...

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  13. बहुत ही मार्मिक रचना है .... गरीबों की बिडंवना को दर्शाती !

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  14. गहन भाव लिए हुए है ये रचना ..
    मेरा एक शेर बाँटना चाहता हूँ
    "मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
    देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"

    recent poem : मायने बदल गऐ

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  15. सर, अपने देश में तो ये आम नज़ारा है.... बेचारे नन्हे-नन्हे बच्चे भी ऐसी ठिठुरती सर्दी में काँपते रहते हैं...~ बहुत दुखद !:(
    ~सादर!!!

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  16. वाह बहुत खूब ...रचना ने दिल को छू लिया ...

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  17. चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
    गुज़र गए लोग पास से
    पर नहीं हुई सिहरन
    मन या तन में,
    शायद इंसानियत और अहसास
    ज़म जाते इस मौसम में.

    ह्रदय छू गए ये शब्द. सुन्दर रचना.

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  18. भूखे पेट की ठंड
    होती है असहनीय
    मौसम की ठंड से.

    चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
    गुज़र गए लोग पास से
    पर नहीं हुई सिहरन
    मन या तन में,


    मर्मस्पर्शी

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  19. यही सच है और इनकी मदद करना किसी बड़े पंडित के आशीर्वाद से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. आभार

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  20. बहुत खूब "शायद इंसानियत और अहसास
    ज़म जाते इस मौसम में".....आभार

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  21. आज के इंसानियत का यही हाल है ..

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  22. समाज में सभी लोगो का एक स्तर तो तय करना पड़ेगा जिस पर उसका हक हो.

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  23. चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
    गुज़र गए लोग पास से
    पर नहीं हुई सिहरन
    मन या तन में,
    शायद इंसानियत और अहसास
    ज़म जाते इस मौसम में.मर्मस्पर्शी

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  24. कडक ठण्ड का असर ...
    इंसानियत भी जम गयी लगता है ... नया सूरज निकालना जरूरी है अब ...

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  25. भूख ही तो है जो कराती है सब कुछ ! गौरव के पात्र भी ...... और निर्लज्ज भी ...बहुत सुन्दर भाव
    नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in

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  26. भूखा पेट बहुत कुछ करवाता है.कैलाश जी ..बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति

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  27. भूख की आग बड़ी भयानक होती है,क्या सर्दी क्या कोहरा।दिल को छू देने वाली बहुत ही मार्मिक प्रस्तुती।
    भूली -बिसरी यादें

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  28. बहुत मार्मिक रचना..गरीबी से बढ़कर कोई रोग नहीं..और भूख से बढ़कर कोई जरूरत नहीं..

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  29. मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

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  30. वेदना बहुत सशक्तता से अभिव्यक्त की गई है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  31. शायद पेट की भूख
    भुला देती ठंड का अहसास
    रोटी की जुगाड़ में,
    भूखे पेट की ठंड
    होती है असहनीय
    मौसम की ठंड से.
    ...सच कहा आपने ....दुखद लेकिन यतार्थ जिसके आगे हम सब बेबस हैं ......

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  32. शायद इंसानियत और अहसास
    ज़म जाते इस मौसम में.....theek hi kah rahe hain.....

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  33. bahut hi prabhavshali rachana bilkul andar tk bhigo gyee ...abhar Shrma ji

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  34. आज इंसानियत और अहसास तो बे-मौसम ही जमे रहते है।

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  35. शायद शब्द में बहुत कुछ छुपा है

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  36. शायद पेट की भूख
    भुला देती ठंड का अहसास
    रोटी की जुगाड़ में,
    भूखे पेट की ठंड
    होती है असहनीय
    मौसम की ठंड से.
    बिल्‍कुल सच कहा आपने ...
    सादर

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  37. dil chu lia...
    rishabhprakash.blogspot.in

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  38. ठंड की मार झेलती हो या गर्मी की लू भूख तो मिटानी ही है . और हमारी संवेदना कभी जमी होती है तो कभी भीप बन कर उड गई होती है

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