कोहरे से घिरी
कंपकंपाती सुबह,
कंधे पर बड़ा थैला
कूड़े के ढेर में ढूँढ़ती
प्लास्टिक की थैलियाँ,
शरीर पर पतला स्वेटर
अनजान ठंड से
अविश्वसनीय भारत की बेटी.
शायद पेट की भूख
भुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
गुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.
चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
गुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.
कैलाश शर्मा
भूख .... यही तो सच है , बहुत गहरा , बहुत कड़वा , बहुत बहुत शक्तिशाली .......... जो देता है हौसला, विकृति,... और न जाने क्या क्या !!!
ReplyDeleteशायद पेट की भूख
ReplyDeleteभुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
बहुत ही यथार्थवादी कविता |सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
--
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आप बिलकुल सही करते हैं..
Deleteसुन्दर-प्रस्तुती ||
ReplyDeleteआभार सर |
वातावरण भी समाज की तरह ठंडा हो गया।
ReplyDeleteबर्फ हुयी संवेदनाओं की मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteभूख की आग इतनी इन्हें इतनी गर्मी देती है की ठण्ड का अहसास भी नहीं होता... मार्मिक रचना... आभार
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना सुन्दर-प्रस्तुती शायद पेट की भूख
ReplyDeleteभुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
गुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.
प्रभावी रचना जो सोचने को मजबूर करती है
ReplyDeleteपेट की भूख भुला देती ठंड का अहसास,,प्रभावशाली रचना,,,बहुत खूब कैलाश जी,,
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
बेहद मार्मिक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना है .... गरीबों की बिडंवना को दर्शाती !
ReplyDeleteगहन भाव लिए हुए है ये रचना ..
ReplyDeleteमेरा एक शेर बाँटना चाहता हूँ
"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
recent poem : मायने बदल गऐ
सर, अपने देश में तो ये आम नज़ारा है.... बेचारे नन्हे-नन्हे बच्चे भी ऐसी ठिठुरती सर्दी में काँपते रहते हैं...~ बहुत दुखद !:(
ReplyDelete~सादर!!!
वाह बहुत खूब ...रचना ने दिल को छू लिया ...
ReplyDeleteचढ़ाये गरम कपड़ों की परत
ReplyDeleteगुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.
ह्रदय छू गए ये शब्द. सुन्दर रचना.
भूखे पेट की ठंड
ReplyDeleteहोती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
चढ़ाये गरम कपड़ों की परत
गुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
मर्मस्पर्शी
यही सच है और इनकी मदद करना किसी बड़े पंडित के आशीर्वाद से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. आभार
ReplyDeleteबहुत खूब "शायद इंसानियत और अहसास
ReplyDeleteज़म जाते इस मौसम में".....आभार
आज के इंसानियत का यही हाल है ..
ReplyDeleteसमाज में सभी लोगो का एक स्तर तो तय करना पड़ेगा जिस पर उसका हक हो.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन।
ReplyDeleteचढ़ाये गरम कपड़ों की परत
ReplyDeleteगुज़र गए लोग पास से
पर नहीं हुई सिहरन
मन या तन में,
शायद इंसानियत और अहसास
ज़म जाते इस मौसम में.मर्मस्पर्शी
कडक ठण्ड का असर ...
ReplyDeleteइंसानियत भी जम गयी लगता है ... नया सूरज निकालना जरूरी है अब ...
prabhavshali marmik rachna.
ReplyDeleteभूख ही तो है जो कराती है सब कुछ ! गौरव के पात्र भी ...... और निर्लज्ज भी ...बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteनई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
भूखा पेट बहुत कुछ करवाता है.कैलाश जी ..बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteभूख की आग बड़ी भयानक होती है,क्या सर्दी क्या कोहरा।दिल को छू देने वाली बहुत ही मार्मिक प्रस्तुती।
ReplyDeleteभूली -बिसरी यादें
बहुत मार्मिक रचना..गरीबी से बढ़कर कोई रोग नहीं..और भूख से बढ़कर कोई जरूरत नहीं..
ReplyDeleteमार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeleteवेदना बहुत सशक्तता से अभिव्यक्त की गई है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
शायद पेट की भूख
ReplyDeleteभुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
...सच कहा आपने ....दुखद लेकिन यतार्थ जिसके आगे हम सब बेबस हैं ......
शायद इंसानियत और अहसास
ReplyDeleteज़म जाते इस मौसम में.....theek hi kah rahe hain.....
bahut hi prabhavshali rachana bilkul andar tk bhigo gyee ...abhar Shrma ji
ReplyDeleteआज इंसानियत और अहसास तो बे-मौसम ही जमे रहते है।
ReplyDeleteशायद शब्द में बहुत कुछ छुपा है
ReplyDeleteशायद पेट की भूख
ReplyDeleteभुला देती ठंड का अहसास
रोटी की जुगाड़ में,
भूखे पेट की ठंड
होती है असहनीय
मौसम की ठंड से.
बिल्कुल सच कहा आपने ...
सादर
dil chu lia...
ReplyDeleterishabhprakash.blogspot.in
ठंड की मार झेलती हो या गर्मी की लू भूख तो मिटानी ही है . और हमारी संवेदना कभी जमी होती है तो कभी भीप बन कर उड गई होती है
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