मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.९-१७)
संजय
योगेश्वर महान श्री हरि ने
इतना कह कर अर्जुन को.
परम दिव्य स्वरुप दिखाया
अपने परम मित्र अर्जुन को. (११.९)
उसमें अनेक नेत्र व मुख थे
अद्भुत दृश्य नजर थे आये.
दिव्य आभूषणों से शोभित,
कर में दिव्य शस्त्र उठाये. (११.१०)
दिव्य माल्य व वस्त्र थे पहने
थे अनुलिप्त दिव्य गंधों से.
दिव्य, अनंत, सर्वतोमुखी,
भरता रूप परम आश्चर्य से. (११.११)
दीप्ति सहस्त्र सूर्यों की नभ में
एक साथ भी अगर उदित हो.
विश्व रूप की दिव्य ज्योति के
शायद कभी न वह सदृश हो. (११.१२)
बहुविधि विभक्त सब जग को
हरि शरीर देखा अर्जुन ने.
आश्चर्यचकित, रोमांचित होकर
हाथ जोड़ बोला अर्जुन ने. (११.१३-१४)
अर्जुन
सभी देव, प्राणी समूह को
अन्दर आपके देख रहा हूँ.
पद्मासन पर बैठे ब्रह्मा को
ऋषियों तक्षक को देख रहा हूँ. (११.१५)
अनेक हाथ उदर मुख नेत्रों को
सर्वत्र अनंत रूप में देख रहा.
लेकिन आदि मध्य अंत आपका
भगवन नहीं मैं देख पा रहा. (११.१६)
मुकुट गदा चक्र से शोभित,
देख तेजमय रूप मैं सकता.
लेकिन अग्नि सूर्य प्रभा सम
अप्रमेय द्युति देख न सकता. (११.१७)
......क्रमशः
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कैलाश शर्मा
उसमें अनेक नेत्र व मुख थे
ReplyDeleteअद्भुत दृश्य नजर थे आये.
दिव्य आभूषणों से शोभित,
कर में दिव्य शस्त्र उठाये
अद्भुत ! जय श्री कृष्ण!
आपकी पुस्तक के प्रकाशक का सम्पर्क पता दें। क्रय करके अध्ययन करना चाहता हूं।
ReplyDeleteआप ऊपर दी गयी लिंक्स से खरीद सकते हैं. असुविधा की दशा में मुझे मेरे ईमेल kcsharma.sharma@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.
Deleteश्रीमद्भगवद्गीता का बहुत सुन्दर भाव पद्यानुवाद के लिए धन्वाद!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक रहा आपके ब्लॉग पर आना...
जय श्री कृष्ण !!!!!!!!!
देख दिव्यतम रूप यह, रोमांचित हो पार्थ |
ReplyDeleteअनंत रूप जीवन विषद, दिखते अनंत पदार्थ |
दिखते अनंत पदार्थ , प्रभावी भक्तिमई है |
कथा प्रवाह अनंत, लिखे सोपान कई हैं |
माँ शारद का वास, रूप यह दिखा सरलतम |
शिल्प-कथ्य है श्रेष्ठ, कृष्ण को देख दिव्यतम ||
आपकी पोस्ट अनमोल ही होती है।बहुत बहुत धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत वर्णन सर!
ReplyDeleteहमने पहली बार इसे पढ़ा ! कोशिश करेंगे कि सभी कड़ियाँ पढ़ सकें...
कितना अद्भुत दृश्य होगा वो........ सोच कर ही मन रोमांचित हो उठता है !
काश! कभी हम भी देख पाते अपने कान्हा को.... इस रूप में.....
~सादर!!!
बहुत सुंदर .... सरल और सहज भाषा में अनुवाद मन को मोह लेता है ।
ReplyDeleteआभार रविकर जी...
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति, उत्कृष्ट और अनमोल, बहुत सुन्दर भाव मुकुट गदा चक्र से शोभित,
ReplyDeleteदेख तेजमय रूप मैं सकता.
लेकिन अग्नि सूर्य प्रभा सम
अप्रमेय द्युति देख न सकता
शुक्रिया भाई साहब आपकी सद्य टिपण्णी का .
ReplyDeleteकृष्ण की विराट स्वरूप की अद्भुत काव्यमय झांकी .
सुन्दर प्रयास.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
ReplyDeleteआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
बहुत सुंदर,सहज भाषा में गीता का अनुवाद मन को मोह लेता है,,,बधाई कैलाश जी,
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
अद्भुत दर्शन..
ReplyDeleteसभी देव, प्राणी समूह को
ReplyDeleteअन्दर आपके देख रहा हूँ.
पद्मासन पर बैठे ब्रह्मा को
ऋषियों तक्षक को देख रहा हूँ.
बहुत सुन्दर !!!!
आपने गीता को कितनी सरलता के साथ प्रस्तुत किया है ,,,,
सादर आभार !
तेजोमय प्रस्तुति
ReplyDeleteतेजोमयी प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें,
बहुत सुन्दर कार्य किया है आपने. जितनी भी बधाई कहूं इस रचना के लिए कम है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन मोहक.. अद्भुत कार्य किया है आप ने कैलाश जी..
ReplyDeleteनमन ... इस लेखन की जितनी प्रशंसा हो कम है ...
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