Showing posts with label कढ़ाई. Show all posts
Showing posts with label कढ़ाई. Show all posts

Tuesday, November 03, 2015

क्षणिकाएं

उबलते रहे अश्क़
दर्द की कढ़ाई में,
सुलगते रहे स्वप्न
भीगी लकड़ियों से,
धुआं धुआं होती ज़िंदगी
तलाश में एक सुबह की
छुपाने को अपना अस्तित्व
भोर के कुहासे में।

*****

होते हैं कुछ प्रश्न
नहीं जिनके उत्तर,
हैं कुछ रास्ते 
नहीं जिनकी कोई मंजिल,
भटक रहा हूँ 
ज़िंदगी के रेगिस्तान में
एक पल सुकून की तलाश में, 
खो जायेगा वज़ूद
यहीं कहीं रेत में।

...©कैलाश शर्मा