Thursday, August 11, 2011

सपने बन्द आँखों के

नहीं अच्छे लगते
सपने बन्द आँखों के,
नहीं होता है नियंत्रण
इनके आने पर
या टूट जाने पर.


खुली आँखों के सपने 
रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
परिस्थितियों के अनुसार.
और रख सकते हो
उनको अपनी सीमाओं में,


नहीं होता है डर
उनके टूट जाने का.

39 comments:

  1. ji... khuli aankhon ke sapne vastvikata ke kareeb hote hain aur band ke koso door...

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  2. बहुत बढ़िया सर।

    सादर

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  3. यह सपने तो आखिर सपने हैं चाहे बंद आँखों से देखे जाएँ या खुली आँखों से ....!

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  4. वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  5. नहीं होता है डर
    उनके टूट जाने का.
    बहुत सुंदर ,अच्छी लगी, बधाई .

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  6. वाह बहुत सुन्दर ख्याल्।

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  7. खूबसूरत कविता ... नई बात कह रहे हैं आप कविता में

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  8. खुली आँखों के सपने
    रहते हैं अपनी मुट्ठी में...

    बहुत अच्छी और सकारात्मक सोच... आभार

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  9. Bahut khub,,,, sapna hai ya hakikat,,,,
    jai hind jai bharat

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  10. खुली आंखों के सपने नहीं टूटते...
    एकदत सही।
    सार्थक संदेश देती हुई एक सुंदर कविता।

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  11. सर बहुत ही खूबसूरत कविता बधाई और शुभकामनायें

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  12. नहीं होता है डर
    उनके टूट जाने का.
    बहुत सुंदर ,.... बधाई .

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  13. खुली आँखों के सपने... टूटने का दर नहीं होता...
    वाह! सार्थक, सकारात्मक रचना सर...
    सादर....

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  14. "खुली आँखों के सपने
    रहते हैं अपनी मुट्ठी में,"

    सच कहा आपने सपने देखना जरूरी भी विकास के लिए परन्तु बंद आँखों के सपने व्यर्थ ही रह जाते है. सुंदर विचार पेश करती अच्छी प्रस्तुति.

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  15. नहीं अच्छे लगते
    सपने बन्द आँखों के,
    नहीं होता है नियंत्रण
    इनके आने पर
    या टूट जाने पर.

    Khoob....Bahut Sunder

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  16. सपनों का संसार ,चाहे खुली आँखों का ,या बंद आँखों का ,स्वप्न ही होता है ,शायद ही सच होता है ...../
    सुंदर परिकल्पनाएं खूबसूरती लिए ........शुक्रिया जी .

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  17. बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना

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  18. सटीक शब्द दिया है भावों को आपने बधाई.. कैलाश जी.

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  19. कैलाश जी !!!
    खुली आँखों के सपने
    रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
    जब चाहो
    जिधर चाहो
    मोड़ दो रुख
    परिस्थितियों के अनुसार.
    और रख सकते हो
    उनको अपनी सीमाओं में,
    यथार्थ परक भाव पूर्ण एवं प्रेरक प्रस्तुति ..
    सादर अभिनन्दन !!!

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  20. सपने तो वैसे सपने ही है जगती आँखों से हो या बंद आँखों से.......असल तो यतार्थ का ये ठोस धरातल ही है...........वैसे पोस्ट अच्छी लगी आपकी|

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  21. वाह, बहुत सुंदर बात ! लेकिन खुली आँखों के सपने हमारी मुट्ठी में होते तो हैं पर सभी के पूरे नहीं होते...

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  22. खुली आँखों के सपने यथार्थ में अधिक बदलते हैं।

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  23. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात है

    खुली आँखों के सपने
    रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
    जब चाहो
    जिधर चाहो
    मोड़ दो रुख

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  24. खूबसूरत कविता... नये भाव हैं इनमे

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  25. बहुत सुन्दर कोमल भावों को संजोये हुए शब्द ...
    लाजवाब कविता

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  26. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...

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  27. बहुत प्यारी और कोमल रचना.

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  28. कोमल भावपूर्ण रचना |
    बधाई
    आशा

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  29. सुंदर, बहुत ही भावपूर्ण ।

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  30. sach kaha sir...kash band aankhon ke sapano par bhi hamara niyantran hota.....sundar rachana....kabhi mere yahan bhi aayen sir, aapaka hardik swagat hai...

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  31. वाह सपने,दोनों रूपों को खूबसूरती से निखारा है सपने जीने का सहारा आपने बहुत अच्छा लिखा...

    कई जिस्म और एक आह!!!

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  32. सपने तो फिर भी सपने ही होते हैं। इनके टुटने का डर हमेशा बना होता है।

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  33. खुली आँखों के सपने
    रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
    जब चाहो
    जिधर चाहो
    मोड़ दो रुख
    परिस्थितियों के अनुसार.

    जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  34. सच कहा ... बंद आँखों के सपने तो छलावा होते हैं ... बस में नहीं होते ...

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  35. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ............

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  36. सपने खुली आँखों से ही देखने चाहिए।

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  37. सुन्दर अभिव्यक्ति.

    निहार रंजन

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