Sunday, April 29, 2012

चाँद को आज मत छेड़ो

                                   भूल कर शिकवे गिले, आओ गले आज मिलें,
                                   थाम लो तुम हाथ मेरा, आओ चलो साथ चलें.

                                                रंग बिखरे हैं आज बागों में,
                                             आओ कुछ फूल जूड़े को चुन लें.
                                                गीत गाती हैं ये हवायें भी,
                                             आओ कुछ गीत प्यार के सुन लें.

                                   शिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
                                   ख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें.

                                             रात अंधियारी आज न होगी,
                                             चाँद रुकने को आज सहमत है.
                                             नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
                                             उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.

                            खेलने दो उंगलियाँ मेरी, गेसुओं को नहीं शिकायत है,
                            बंद करके स्वप्न मुट्ठी में, किसी नयी डगर पर निकलें.

                                           ख़्वाब जागे हैं आज फिर दिल में,
                                           अश्क बनकर क्यों इनको ढलने दें.
                                           आज जब डगर खुशनुमां इतनी,
                                           क्यों न कदमों को आज  चलने दें.

                            चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
                            वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.

                                                                        कैलाश शर्मा 

36 comments:

  1. आदरणीय महाशय के चरणों में मै अपना शीश झुकता हूँ.. बेहद भावुक रचनाएँ है आपकी.. जब मैंने अपने दादाजी को ( जो 85 वर्ष के है )आपकी रचनाएँ सुनाईं तो उन्होंने भी काफी पसंद किया था आपको.. मेरा प्रणाम स्वीकार करें और आशीर्वाद दें..

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  2. सुन्दर अति सुन्दर

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  3. सुंदर ,कोमल भावाभिव्यक्ति ...
    बहुत बहुत शुभकामनायें ....

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  4. रंग बिखरे हैं आज बागों में,
    आओ कुछ फूल जूड़े को चुन लें.
    गीत गाती हैं ये हवायें भी,
    आओ कुछ गीत प्यार के सुन लें.

    वाह बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ...आभार

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  5. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
    वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.....बहुत सुन्दर .

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  6. वाह!!!!

    बहुत बढ़िया सर...........

    रात अंधियारी आज न होगी,
    चाँद रुकने को आज सहमत है.
    नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
    उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.
    बेहद खूबसूरत..........

    सादर.

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  7. बेहद खुबसुरती से भावों को उकेरा है ..बहुत सुन्दर....

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  8. आज जब डगर खुशनुमां इतनी,
    क्यों न कदमों को आज चलने दें.
    प्रेरक रचना ... बहुत खूबसूरत

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  9. बेहद खूबसूरत भाव या कहिये मखमली रचना ...बहुत खूब

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  10. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
    वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलेंगे .... आज तो जीने दो

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  11. शिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
    ख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें……सकारात्मकता लिये बेहद उम्दा रचना ……वर्तमान का महत्त्व बताती हुयी

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  12. बेहद खूबसूरत रचना ...बहुत खूब

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  13. वाह, बस पढ़ते गये और डूबते गये।

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  14. शिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
    ख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें.
    बेहद खूबसूरत रचना .........

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  15. Itni sundar rachnakee tareef ke liye alfaaz nahee!

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  16. @ अंधेरी रात में कैसे निकलें

    बहुत बढ़िया अंदाज़ ...

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  17. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
    वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब सुन्दरम मनोहरं -.
    कृपया यहाँ भी पधारें
    रविवार, 29 अप्रैल 2012
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  18. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
    वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकले,...

    वाह !!!! बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट कैलाश जी

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  19. बहुत खूब सर!


    सादर

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    Replies
    1. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
      वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
      बहुत खूब सर

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    2. ख़ूबसूरत भाव लिए रचना बहुत अच्छी लगी |}
      आशा

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  20. मन के तार को छेड़ दिया सुन्दर रचना ने..

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  21. चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
    वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
    अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने इस रचना में ।

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  22. वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.....बहुत सुन्दर भाव !

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  23. ek sama sa bandhti hai post.

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  24. बहुत सुंदर रोमानी सा गीत...

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  25. रात अंधियारी आज न होगी,
    चाँद रुकने को आज सहमत है.
    नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
    उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.
    वाह बहुत सुंदर कोमल भावों से सजी खूबसूरत रचना...

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  26. भूल कर शिकवे गिले, आओ गले आज मिलें,
    थाम लो तुम हाथ मेरा, आओ चलो साथ चलें.

    जीवन का दर्शन छिपाए है यह संक्षिप्त सी रचना .जीवन है भी आगे की ओर , जो बीत गया सो बीत गया ,कहीं शिकवे शिकायतों में ही रात ढल जाए .?

    कृपया यहाँ भी पधारें
    सोमवार, 30 अप्रैल 2012

    सावधान !आगे ख़तरा है

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  27. बेहद खूबसूरत एहसास


    लफ्जों के ये नगीने तो निकले कमाल के
    ग़ज़लों ने खुद पहन लिए ज़ेवर ख्याल के ||

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  28. रात अंधियारी आज न होगी,
    चाँद रुकने को आज सहमत है....

    बहुत खूब .... दिलकश रचना है ...

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  29. behad khoobsurat bhav piroye sunder rachna..

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