आए थे जब
खाली थे हाथ
न बोझ कोई
कन्धों पर.
ज़िंदगी की राह में
सभी की खुशी
और चाहतें करने पूरी
बढ़ाते रहे बोझ
कंधे की पोटली का.
नहीं महसूस हुआ भार
इस आशा में
कि कर लेंगे साझा
सब कंधे
भार इस पोटली का.
लेकिन आज
इस सुनसान अकेलेपन में
जब दिखाई नहीं देता
कोई कंधा आस पास,
महसूस होता है
और भी भारी
पोटली का भार
कमजोर झुके कन्धों पर.
उठाना होता है
अपनी पोटली का भार
अपने ही कन्धों पर.
नहीं है अब दस्तूर
जीते जी
बांटने का बोझ
झुके कमजोर कन्धों से,
और झटक देते हैं
रखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
कैलाश शर्मा
खाली थे हाथ
न बोझ कोई
कन्धों पर.
ज़िंदगी की राह में
सभी की खुशी
और चाहतें करने पूरी
बढ़ाते रहे बोझ
कंधे की पोटली का.
नहीं महसूस हुआ भार
इस आशा में
कि कर लेंगे साझा
सब कंधे
भार इस पोटली का.
लेकिन आज
इस सुनसान अकेलेपन में
जब दिखाई नहीं देता
कोई कंधा आस पास,
महसूस होता है
और भी भारी
पोटली का भार
कमजोर झुके कन्धों पर.
उठाना होता है
अपनी पोटली का भार
अपने ही कन्धों पर.
नहीं है अब दस्तूर
जीते जी
बांटने का बोझ
झुके कमजोर कन्धों से,
और झटक देते हैं
रखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
कैलाश शर्मा
आए थे जब
ReplyDeleteखाली थे हाथ
न बोझ कोई
कन्धों पर.
kya baat sir bahut khub
यही जीवन
ReplyDeleteसुलगता रहता
सोचता मन
सादर
बहुत सुन्दर और सार्थक हाइकु....आभार
Deleteअनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट लेखन .. आभार
ReplyDeleteऔर झटक देते हैं
ReplyDeleteरखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
मार्मिक और सत्य से परिपूर्ण ये पोस्ट लाजवाब है ।
bahut badhiya kvita.. jiwan aur bojh ka sahi visheleshan
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
मार्मिक सत्य!
ReplyDeleteऔर झटक देते हैं
ReplyDeleteरखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
जीते जी नहीं मिलता कंधा .... बहुत संवेदनशील रचना
उफ़ कितना बडा सच लिख दिया
ReplyDeleteपोटली का बोझ
ReplyDeleteतो उठा लेंगे ये कंधे,
पर अपनों की उपेक्षा
है सबसे बड़ा भार
यही जीवन की हार ||
बहुत सुन्दर और सटीक टिप्पणी....आभार
Deleteसंवेदनशील रचना.....
ReplyDeleteसादर.
्सच यही है जिन्दगी..,, एक,मार्मिक सत्य!
ReplyDeleteजीवन और मरण का यही सच है
ReplyDeleteबखूबी दर्शाया है आपने
संवेदनशील रचना,एक,मार्मिक सत्य........
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeleteझूलते कंधों को छोड़ने वाले भूल जाते हैं कि उनके कंधे भी झूलेंगे एक दिन।
ReplyDeleteबुढापा आया
ReplyDeleteझूलेंगे एक दिन
उनके कंधे,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
महसूस होता है
ReplyDeleteऔर भी भारी
पोटली का भार
कमजोर झुके कन्धों पर.]
,,,,,,,,,,,बहुत ही संवेदनशील रचना कैलाश जी
हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteझुके कमजोर कन्धों से,
ReplyDeleteऔर झटक देते हैं
रखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
जीवन के सत्य को उजागर करती आपकी यह कविता बहुत ही अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत रहेगा । धन्यवाद ।
ईश्वर न करे किसी का वार्धक्य किसी की बेबसी बने.. जाना तो होता ही है.. लेकिन शांति हो, स्निग्ध स्नेह प्रेम हो.. चिर निद्रा से पहले...
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति,
सादर
जीने में भी डर , मरने में भी डर ...
ReplyDeleteलेकिन आज
ReplyDeleteइस सुनसान अकेलेपन में
जब दिखाई नहीं देता
कोई कंधा आस पास,
महसूस होता है
और भी भारी
पोटली का भार
कमजोर झुके कन्धों पर....................जीवन का सत्य लिख दिया आपने ...जीवन में ये पल अपने साथ हर कोई महसूस करता हैं ...चाहे वो पल २...४ ही क्यों ना हो .....बहुत बढिया शब्द रचना
जीवन का सत्य...
ReplyDeleteगहन विचारों से पूर्ण सारगर्भित पोस्ट |
ReplyDeleteआशा
साँसों की इस पोटली कों ती खुद ही उठाना होता है ... और जीवन भर उठाना होता है ...
ReplyDeleteजीवन का सत्य भी है की गैर मरने के बाद कुछ पल ही सही उठा लेते हैं ये भार ... उनको पता है की ये उम्र भर का भार नहीं ...
एक न बदलने वाले सत्य का सुन्दर विवरण
ReplyDelete....
और झटक देते हैं
रखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
लेकिन मरने पर
उठा लेते हैं भार
कंधे गैरों के भी.
आप बुज़ुर्गों के ब्लोग पे आकर बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है
आभार
जीवन संध्या का सत्य दिखाती संवेदनशील एवं मार्मिक रचना ....
ReplyDeleteआभार !!
नहीं है अब दस्तूर
ReplyDeleteजीते जी
बांटने का बोझ
झुके कमजोर कन्धों से,
और झटक देते हैं
रखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
जीवन की सच्चाई को अभिव्यक्त करती एक अच्छी कविता।
झटक देते हैं
ReplyDeleteरखने पर हाथ कंधे पर
अपने भी.
कडवा सच । अपनी अपनी पोटली खुद ही उठानी है, इसे जितनी हल्की रखें उतना अच्छा .
बेहतरीन बहुत सुन्दर
ReplyDelete(अरुन =arunsblog.in)