तृतीय अध्याय
(कर्म-योग - ३.१६-२४)
ईश्वर निर्मित चक्र न माने
जीवन पापमयी है होता.
इन्द्रिय सुख में रमा हुआ जो
उसका जीवन व्यर्थ है होता.
करता रमण आत्मा में जो
तृप्त आत्मा में ही होता.
ऐसा जो सन्यासी जन है
कोई कर्म न उसका होता.
कर्म न करने या करने से
जिसे न कोई प्रयोजन होता.
ब्रह्मा से स्थावर जन तक
अर्थ विषयक संबंध न होता.
सदा कर्तव्य कर्म में रत हो,
होकर अनासक्त तुम अर्जुन.
अनासक्त हो कर्म जो करता,
परम ब्रह्म पाता है वह जन.
जनक आदि केवल कर्मों से
पूर्ण सिद्धि को प्राप्त हुए थे.
कर्म चाहिए तुमको करना
जनकल्याण ध्यान में रख के.
यथा आचरण श्रेष्ठ जनों का
अन्य लोग वैसा ही करते.
वह जैसा आदर्श दिखाते
अन्य अनुसरण वैसा करते.
किंचित कर्म न तीनों लोकों में
आवश्यक है जो मुझको करना.
यद्यपि जो चाहूँ मैं पा सकता,
युक्त कर्म में फिर भी मैं रहता.
यदि आलस्यरहित होकर के
कर्म करूँ न मैं, हे अर्जुन !
सब जन सर्व तरह से मेरा
मार्ग करेंगे वही अनुसरण.
अगर न कर्म करूँ मैं अर्जुन
लोक नष्ट कारण होऊंगा.
वर्णसंकरता जो होगी उससे
प्रजा नाश कारण होऊंगा.
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
ईश्वर निर्मित चक्र न माने
जीवन पापमयी है होता.
इन्द्रिय सुख में रमा हुआ जो
उसका जीवन व्यर्थ है होता.
करता रमण आत्मा में जो
तृप्त आत्मा में ही होता.
ऐसा जो सन्यासी जन है
कोई कर्म न उसका होता.
कर्म न करने या करने से
जिसे न कोई प्रयोजन होता.
ब्रह्मा से स्थावर जन तक
अर्थ विषयक संबंध न होता.
सदा कर्तव्य कर्म में रत हो,
होकर अनासक्त तुम अर्जुन.
अनासक्त हो कर्म जो करता,
परम ब्रह्म पाता है वह जन.
जनक आदि केवल कर्मों से
पूर्ण सिद्धि को प्राप्त हुए थे.
कर्म चाहिए तुमको करना
जनकल्याण ध्यान में रख के.
यथा आचरण श्रेष्ठ जनों का
अन्य लोग वैसा ही करते.
वह जैसा आदर्श दिखाते
अन्य अनुसरण वैसा करते.
किंचित कर्म न तीनों लोकों में
आवश्यक है जो मुझको करना.
यद्यपि जो चाहूँ मैं पा सकता,
युक्त कर्म में फिर भी मैं रहता.
यदि आलस्यरहित होकर के
कर्म करूँ न मैं, हे अर्जुन !
सब जन सर्व तरह से मेरा
मार्ग करेंगे वही अनुसरण.
अगर न कर्म करूँ मैं अर्जुन
लोक नष्ट कारण होऊंगा.
वर्णसंकरता जो होगी उससे
प्रजा नाश कारण होऊंगा.
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
अगर न कर्म करूँ मैं अर्जुन
ReplyDeleteलोक नष्ट कारण होऊंगा.
वर्णसंकरता जो होगी उससे
प्रजा नाश कारण होऊंगा.
उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
क्या बात है! वाह! बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteयह भी देखें प्लीज शायद पसन्द आए
छुपा खंजर नही देखा
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार ||
करता रमण आत्मा में जो
ReplyDeleteतृप्त आत्मा में ही होता.
ऐसा जो सन्यासी जन है
कोई कर्म न उसका होता.
shandar behatrin
अगर न कर्म करूँ मैं अर्जुन
ReplyDeleteलोक नष्ट कारण होऊंगा.
वर्णसंकरता जो होगी उससे
प्रजा नाश कारण होऊंगा.,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन श्रंखला ,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
इन्द्रिय सुख में रमा हुआ जो
ReplyDeleteउसका जीवन व्यर्थ है होता.
सार्थक और बहुत उपयोगी ....!!
आदरणीय कैलाश जी ,मैं कुछ दिनों से ब्लॉग जगत से दूर था, आपके भगवत गीता नहीं पढ़ सका , पूरी पढ़कर ही दम लूँगा . बहुत अच्छा लिखा है आपने इसे किताब रूप दीजिये एक धरोहर होगी बधाई
ReplyDeleteएक नए रूप में इस ज्ञान को हम तक पहुचाने के लिए आपका आभार...
ReplyDeleteआपका प्यारा सा चिट्ठा
ReplyDelete"ब्लॉगोदय" एग्रीगेटर मे जोड़ दिया गया है, शुभकामनाएं।।
आभार...
Deleteबिना कर्म किए सफलता मिलना नामुमकिन है
ReplyDeleteबड़ी अच्छी पोस्ट सर
हिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
बहुत ही सुन्दर काव्यमय व्याख्या.
ReplyDeleteसरल,सुगम और बोधमयी.
कर्म की ही प्रधानता से स्वयं लीलाधर भी कहाँ बचे !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की चर्चा। यहाँ है, कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं
ReplyDeleteशुभकामनाएं
मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा गया महाकाव्य मेघदूत।
अनासक्त हो कर्म जो करता,
ReplyDeleteपरम ब्रह्म पाता है वह जन
गहरा सच..
किंचित कर्म न तीनों लोकों में
ReplyDeleteआवश्यक है जो मुझको करना.
यद्यपि जो चाहूँ मैं पा सकता,
युक्त कर्म में फिर भी मैं रहता.....बहुत सुन्दर कैलाश जी..
सुन्दर उपदेश और संदेश है इस भाव मे…………बहुत खूबसूरती से संजोया है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन श्रंखला ,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
इस अनुवाद से गीता सुज्ञेय होने लगी है।
ReplyDeleteकरता रमण आत्मा में जो
ReplyDeleteतृप्त आत्मा में ही होता.
ऐसा जो सन्यासी जन है
कोई कर्म न उसका होता.
बेहद सशक्त ओर प्रभावशाली अनुवाद....डा० साहब साधुवाद !!!
सदा कर्तव्य कर्म में रत हो,
ReplyDeleteहोकर अनासक्त तुम अर्जुन.
अनासक्त हो कर्म जो करता,
परम ब्रह्म पाता है वह जन....बहुत बढ़िया .
आपका यह प्रयोग एक अद्भुत प्रयास है गीता के प्रचार प्रसार में.
ReplyDeleteशुभकामनायें.