चतुर्थ अध्याय
(ज्ञान-योग - ४.०१-०९)
श्री भगवान
महर्षि विवस्वान को पहले
अविनाशी यह योग बताया.
कहा विवस्वान ने मनु को,
इक्ष्वाकु को मनु ने समझाया.
परंपरा से प्राप्त योग यह,
सीखा एक दूजे से ऋषियों ने.
किन्तु कर दिया धीरे धीरे,
जग में इस को लुप्त काल ने.
वही पुरातन योग हे अर्जुन!
मैंने तुमको प्रगट किया है.
तुम हो मेरे भक्त, सखा प्रिय,
उत्तम योग रहस्य कहा है.
अर्जुन
विवस्वान प्राचीन पुरुष हैं,
जन्म आपका अभी हुआ है.
कैसे मानूं माधव, उनको
योग तुम्ही ने बतलाया है.
श्री भगवान
मेरे और तुम्हारे अर्जुन
जाने कितने जन्म हुए हैं.
मैं सब जन्मों से परिचित,
पर तुमको वे ज्ञात नहीं हैं.
अनश्वर और अजन्मा यद्यपि
ईश्वर मैं सब प्राणी जन का.
स्थिर हो प्रकृति में अपनी
जन्म मैं अपनी माया से धरता.
होता जब जब ह्रास धर्म का
और अधर्म है बढता जाता.
हे भारत! तब तब मैं जग में
स्वयं शरीर धारण कर आता.
रक्षा करने साधु जनों की,
दुष्टों के विनाश के हेतु.
युग युग में मैं जन्म हूँ लेता,
जग में धर्म स्थापना हेतु.
मेरे दिव्य जन्म, कर्मों का
तत्व समझ है जो जन जाता.
मृत्यु बाद वह जन्म न लेता
अपितु मुझे ही प्राप्त है करता.
...........क्रमशः
कैलाश शर्मा
(ज्ञान-योग - ४.०१-०९)
श्री भगवान
महर्षि विवस्वान को पहले
अविनाशी यह योग बताया.
कहा विवस्वान ने मनु को,
इक्ष्वाकु को मनु ने समझाया.
परंपरा से प्राप्त योग यह,
सीखा एक दूजे से ऋषियों ने.
किन्तु कर दिया धीरे धीरे,
जग में इस को लुप्त काल ने.
वही पुरातन योग हे अर्जुन!
मैंने तुमको प्रगट किया है.
तुम हो मेरे भक्त, सखा प्रिय,
उत्तम योग रहस्य कहा है.
अर्जुन
विवस्वान प्राचीन पुरुष हैं,
जन्म आपका अभी हुआ है.
कैसे मानूं माधव, उनको
योग तुम्ही ने बतलाया है.
श्री भगवान
मेरे और तुम्हारे अर्जुन
जाने कितने जन्म हुए हैं.
मैं सब जन्मों से परिचित,
पर तुमको वे ज्ञात नहीं हैं.
अनश्वर और अजन्मा यद्यपि
ईश्वर मैं सब प्राणी जन का.
स्थिर हो प्रकृति में अपनी
जन्म मैं अपनी माया से धरता.
होता जब जब ह्रास धर्म का
और अधर्म है बढता जाता.
हे भारत! तब तब मैं जग में
स्वयं शरीर धारण कर आता.
रक्षा करने साधु जनों की,
दुष्टों के विनाश के हेतु.
युग युग में मैं जन्म हूँ लेता,
जग में धर्म स्थापना हेतु.
मेरे दिव्य जन्म, कर्मों का
तत्व समझ है जो जन जाता.
मृत्यु बाद वह जन्म न लेता
अपितु मुझे ही प्राप्त है करता.
...........क्रमशः
कैलाश शर्मा
मेरे और तुम्हारे अर्जुन
ReplyDeleteजाने कितने जन्म हुए हैं.
मैं सब जन्मों से परिचित,
पर तुमको वे ज्ञात नहीं हैं.,,,,
बेहतरीन ज्ञान देती सुंदर श्रंखला,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
वाह अनुपम प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteमेरे दिव्य जन्म, कर्मों का
ReplyDeleteतत्व समझ है जो जन जाता.
मृत्यु बाद वह जन्म न लेता
अपितु मुझे ही प्राप्त है करता.
यही तत्व तो प्राप्त नहीं होता .... बहुत सुंदर
महाभारत पुराण कथा या श्री कृष्ण उपदेश के धार्मिक ग्रन्थ तो नहीं पढ़े कभी परन्तु आपकी रचनाएं पढ़ रही हूँ बहुत ज्ञान वर्धक हैं बहुत अच्छा लगता है इन्हें पढना बहुत सम्रद्ध शाली प्रस्तुति हैं संग्रहनीय हैं बधाई आपको
ReplyDeleteजन्म कर्म योगादि पर, बोल रहे गोपाल |
ReplyDeleteध्यान पूर्वक सुन रहे, अस्त्र-शस्त्र सब डाल |
अस्त्र-शस्त्र सब डाल, बाल की खाल निकाले |
महाविराट स्वरूप, तभी तो दर्शन पाले |
अर्जुन होते धन्य, धर्म का राज्य आ गया |
गीता का सन्देश, विश्व में क्रान्ति ला गया ||
सहज/सरल... बहुत ही सुंदर शृंखला....
ReplyDeleteसादर आभार।
बहुत सुन्दर भावानुवाद
ReplyDeleteभावपूर्ण बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसुन्दर व सराहनीय ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगा....आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संवाद परक प्रस्तुति काव्यात्मक स्वर में .मर्म समझाती योग का अविनाशी ईश्वर का उसकी सामयिक अवतरण का ....
ReplyDeleteमेरे और तुम्हारे अर्जुन
ReplyDeleteजाने कितने जन्म हुए हैं.
मैं सब जन्मों से परिचित,
पर तुमको वे ज्ञात नहीं हैं.
मनुष्य और ईश्वर में यही तो अन्तर है...सराहनीय प्रस्तुति !!
सादर
ऋता
ज्ञान परम्परा से ही बढ़ता है, यही परम्परा भी है..
ReplyDeleteमेरे दिव्य जन्म, कर्मों का
ReplyDeleteतत्व समझ है जो जन जाता.
मृत्यु बाद वह जन्म न लेता
अपितु मुझे ही प्राप्त है करता.
बहुत सुंदर ज्ञान...आभार !
मेरे और तुम्हारे अर्जुन
ReplyDeleteजाने कितने जन्म हुए हैं.
मैं सब जन्मों से परिचित,
पर तुमको वे ज्ञात नहीं हैं.
गेयता सांगीतिकता का ज़वाब नहीं इस प्रस्तुति में कथा तो सशक्त है ही .भावानुवाद भी कमतर नहीं है .
यह प्रयास बढ़िया लगा ..आनंद दायक है भाई जी !
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