प्यार पिता का किसने देखा,
माँ के आंसू सबने देखे,
दर्द पिता का किसने देखा.
माँ की ममता परिभाषित है,
पितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
छिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा.
दर्द छुपा कर बोझ उठाया,
झुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
मंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
कैलाश शर्मा
मेरे मन के भावो को शब्दो मे पिरो दिया आपने आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
:-)
सामयिक, सार्थक और अच्छी रचना है .
ReplyDeletebahut sundar bhaav ...
ReplyDeleteshubhkamnayen.
क्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
bahut hi bhavpurn ....
ReplyDeleteपिता की सोच , पिता का ख्याल , पिता का प्यार अनुभव से ही समझा जा सकता है
ReplyDeleteउंगली पकड़ सिखाया चलना,
ReplyDeleteछिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा.
मन के घाव कब भरते हैं भला ...
बहुत सुन्दर रचना
यह स्नेहिल भाव सदा ही छिपा छिपा सा रहता है..
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
दर्द सहकर भी पिता खुशी पाते है.
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteपिता सदा पृष्ठभूमि ही बने रहते हैं ....हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा. मन को छू लिया
माँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
मन छूती सुंदर रचना,,,,बेहतरीन भावअभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
पिता आकाश है,उसके बिना कैसे अंकुरित होगी ,हवा-धूप को तरस मुरझ जायेगी नन्हीं कोंपल !
ReplyDeleteपिता पर आपकी यह रचना भाव विह्वल कर गयी
ReplyDeleteपिता को समर्पित बेहतरीन रचना !
ReplyDelete...अक्सर पिता का प्यार अनदेखा होता.है.
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
ReplyDeleteमंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
दिल को छू गई .... एक
पिता की पिता पर रचना ....
माँ के आंसू सबने देखे , दर्द पिता का किसने देखा ...
ReplyDeleteसच ही , पिता का प्रेम और दर्द अनदेखा ही रह जाता है !
अच्छी कविता !
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बेहतरीन रचना
केरा तबहिं न चेतिआ, जब ढिंग लागी बेर
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ संडे सन्नाट, खबरें झन्नाट♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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इस अंतरस्पर्शी रचना के लिए सादर नमन स्वीकारे....
ReplyDeleteकालजयी रचना सदैव नवीनता से भर देती है.. हृदयस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteबहोत अच्छा लगा पढके
ReplyDelete7 C's सफलता के
सच कहा आपने. पिता के प्यार को अक्सर अनदेखा किया जाता है
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
भावमय करते शब्द ... आभार
बहुत सुन्दर.............
ReplyDeleteजी भर आया.
पिता के प्यार को अक्सर बेटे समझते नहीं और अनदेखा करते हैं....
मगर हम बेटियाँ नहीं...
सादर
बड़ी ईमानदारी से पिता के दर्द को अभिव्यक्ति दी है आपने ! पिता चूँकि अपने दर्द को दिखाते नहीं हैं उनकी पीड़ा अनदेखी अनसुनी ही रह जाती है ! आपने बड़ी संवेदनशीलता के साथ उसे उकेरा है ! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा....
वाह .. पिता के दिल कों खोल के रख दिया आपने ... सच में पिता के त्याग कों कोई देखता नहीं पर वो किसी से कम नहीं है ...
एक लड़की के लिए ...उसके पिता का महत्व कोई हम से पूछे ...
ReplyDeleteइस रचना ने दिल को छू लिया
बहुत सुन्दर रचना ,मन भर आया कैलाशजी...सच है..माँ के आंसू सबने देखे,
ReplyDeleteदर्द पिता का किसने देखा.....बहुत सुन्दर..
मन छू लेने वाली कविता .
ReplyDeleteसादर .
मन छूती सुंदर रचना ,बेहतरीन भावभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteमाँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
मन को छूती रचना !!
बहुत सुन्दर और सटीक पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत अच्छी और प्रभावशाली प्रस्तुति...
ReplyDeleteमन को छूनेवाली रचना।
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