द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.६४-७२)
राग द्वेष से जो विमुक्त हो
संसारिक विषयों को भोगता.
कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
वह ज्ञानी आनन्द भोगता.
पाता परम शान्ति साधक,
सब दुखों का नाश है होता.
बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी
प्रसन्नचित साधक जो होता.
जिसकी इन्द्रिय नहीं संयमित,
बुद्धि, भावना हीन है वह होता.
शान्ति नहीं मिल पाती उसको,
कैसे अशांत सुख भागी होगा?
इन्द्रिय सुख के पीछे भागे
उसकी बुद्धि हरण हो जाती.
जैसे तेज हवा नौका को
जल में खींच दूर ले जाती.
पार्थ! इन्द्रियां हैं जिसकी
निगृहीत विषयों से होती.
ऐसे सन्यासी की बुद्धि
पूर्णमेव प्रतिष्ठित होती.
होती निशा सर्व जन को जब,
आत्म संयमी तब जगता है.
होती रात्रि सर्वग्य मुनि को,
जब जग में प्राणी जगता है.
नदियाँ हैं जल भरती रहतीं,
पर सागर कब मर्यादा तजता.
स्थिर मन ही शान्ति है पाता,
कामी जन न शान्ति है लभता.
सभी कामनाओं को तज कर,
भोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
परम शान्ति अधिकारी होता.
ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
इसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
ब्रह्म लीन वह जन है होता.
..... द्वितीय अध्याय समाप्त
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
राग द्वेष से जो विमुक्त हो
संसारिक विषयों को भोगता.
कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
वह ज्ञानी आनन्द भोगता.
पाता परम शान्ति साधक,
सब दुखों का नाश है होता.
बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी
प्रसन्नचित साधक जो होता.
जिसकी इन्द्रिय नहीं संयमित,
बुद्धि, भावना हीन है वह होता.
शान्ति नहीं मिल पाती उसको,
कैसे अशांत सुख भागी होगा?
इन्द्रिय सुख के पीछे भागे
उसकी बुद्धि हरण हो जाती.
जैसे तेज हवा नौका को
जल में खींच दूर ले जाती.
पार्थ! इन्द्रियां हैं जिसकी
निगृहीत विषयों से होती.
ऐसे सन्यासी की बुद्धि
पूर्णमेव प्रतिष्ठित होती.
होती निशा सर्व जन को जब,
आत्म संयमी तब जगता है.
होती रात्रि सर्वग्य मुनि को,
जब जग में प्राणी जगता है.
नदियाँ हैं जल भरती रहतीं,
पर सागर कब मर्यादा तजता.
स्थिर मन ही शान्ति है पाता,
कामी जन न शान्ति है लभता.
सभी कामनाओं को तज कर,
भोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
परम शान्ति अधिकारी होता.
ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
इसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
ब्रह्म लीन वह जन है होता.
..... द्वितीय अध्याय समाप्त
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
सभी कामनाओं को तज कर,
ReplyDeleteभोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
परम शान्ति अधिकारी होता.
बहुत ही बढिया... प्रस्तुति।
ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
ReplyDeleteइसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
ब्रह्म लीन वह जन है होता.....वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आभार..कैलाश जी..
अद्दभुत प्रस्तुति कैलाश जी
ReplyDeleteसभी कामनाओं को तज कर,
ReplyDeleteभोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
परम शान्ति अधिकारी होता.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
अति सुन्दर:-)
ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
ReplyDeleteइसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
ब्रह्म लीन वह जन है होता.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आभार
ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
ReplyDeleteइसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
ब्रह्म लीन वह जन है होता……………अद्भुत चित्रण
राग द्वेष से जो विमुक्त हो
ReplyDeleteसंसारिक विषयों को भोगता.
कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
वह ज्ञानी आनन्द भोगता.
पाता परम शान्ति साधक,
सब दुखों का नाश है होता.
बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी
प्रसन्नचित साधक जो होता.
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति…
Rajpurohit Samaj
पर पधारेँ.... मुझे खुशी होगी .
संग्रहणीय श्रंखला..
ReplyDeletesari srakhlaye sangrah karne wali hai .........kailash ji
ReplyDeleteपठनीय,,संग्रहणीय,,सुंदर श्रंखला. प्रस्तुति,,,,कैलाश जी ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
paramshanti or sansarik vyavhar ko abhivyakt karti post.
ReplyDeleteपार्थ! इन्द्रियां हैं जिसकी
ReplyDeleteनिगृहीत विषयों से होती.
ऐसे सन्यासी की बुद्धि
पूर्णमेव प्रतिष्ठित होती
मूल अर्थ को रख कर की गई सुंदर पद्य रचना ।
पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने की प्रतीक्षा..
ReplyDeleteसब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है....आभार
Deleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
ReplyDeleteपरम शान्ति अधिकारी होता.
ज्ञानवर्धक ...शांतिप्रदायक ...बहुत सफल ...उत्तम प्रयास ...!!
बहुत आभार ...!!
राग द्वेष से जो विमुक्त हो
ReplyDeleteसंसारिक विषयों को भोगता.
कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
वह ज्ञानी आनन्द भोगता.
इन्द्रिय सुखों से निरत रहने वाला ही ज्ञानी होता है और वही शाश्वत सुख भोगता है।
निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
नदियाँ हैं जल भरती रहतीं,
ReplyDeleteपर सागर कब मर्यादा तजता.
स्थिर मन ही शान्ति है पाता,
कामी जन न शान्ति है लभता.
सुन्दरम मनोहरं ,बढ़िया तरीके से संपन्न हुआ दूसरा अध्याय .बधाई .
कृपया यहाँ भी पधारें -
फिरंगी संस्कृति का रोग है यह
प्रजनन अंगों को लगने वाला एक संक्रामक यौन रोग होता है सूजाक .इस यौन रोग गान' रिया(Gonorrhoea) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने वाले व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai
शुक्रवार, 8 जून 2012
जादू समुद्री खरपतवार क़ा
बृहस्पतिवार, 7 जून 2012
कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल
http://veerubhai1947.blogspot.in/
सुन्दरम मनोहरं ,बढ़िया तरीके से संपन्न हुआ दूसरा अध्याय .बधाई .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
फिरंगी संस्कृति का रोग है यह
प्रजनन अंगों को लगने वाला एक संक्रामक यौन रोग होता है सूजाक .इस यौन रोग गान' रिया(Gonorrhoea) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने वाले व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai
शुक्रवार, 8 जून 2012
जादू समुद्री खरपतवार क़ा
बृहस्पतिवार, 7 जून 2012
कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल
http://veerubhai1947.blogspot.in/
postingan yang bagus.......
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