नहीं महसूस हुआ तुम्हारा भार
जब भी उठाया गोदी में,
पकड़े रही उंगलियां
कहीं भटक न जाओ,
जब भी आये रोते
लगा लिया कंधे से.
आज उम्र ने कर दिया अशक्त
अपना भी बोझ ढोने में,
पर बन नहीं पाये तुम
लकड़ी इन हाथों की.
सूख गये आंसू
इंतज़ार में
कभी तो समझोगे
माँ कुछ नहीं चाहती
सिवाय प्यार के.
वक़्त की मज़बूरी ने
सिखा दिया
लडखडाते पैरों को चलना.
नहीं ढूंढती अब कंधा
जिस पर सिर रख कर
कुछ पल रो सकूँ.
नहीं चाहिए अब
कोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है.
कैलाश शर्मा
बस यही है माँ …………जी ही लेती है किसी ना किसी तरह ………माँ को शत- शत नमन ……सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteएक सहारा,
ReplyDeleteसबसे प्यारा।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
गहन भाव लिये सुंदर ,मार्मिक रचना.....
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम !
ReplyDeleteवक़्त की मज़बूरी ने
ReplyDeleteसिखा दिया
लडखडाते पैरों को चलना.
नहीं ढूंढती अब कंधा
जिस पर सिर रख कर
कुछ पल रो सकूँ.
नहीं चाहिए अब
कोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है... क्रमिक इतिहास और अपना आप खोखला नज़र आता है !
बहुत ही सुन्दर लिखा है, सुन्दर रचना!
ReplyDeleteवेदना का मानवीकरण करती पोस्ट .बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteनहीं चाहिए अब
ReplyDeleteकोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है...
अति सुंदर भाव पुर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति ,...
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
मनभावन पोस्ट.... हे माँ तुझे प्रणाम ...
ReplyDeleteमाँ को नमन .... !!
ReplyDeleteऔर आपकी लेखनी को नमन .... !
नहीं चाहिए अब
ReplyDeleteकोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है.
इससे बड़ी ममता की मिसाल दूजी नहीं दुनिया में, सब कुछ देकर भी जो बदले में कुछ नहीं चाहती...धन्य है माँ... नमन आपकी लेखनी और भावों को...
मां की ममता अनमोल है । बहुत सही कहा है आपने । मरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, माँ ऐसी ही होती है
ReplyDeleteमाँ तो बस माँ होती है..माँ शब्द में सारा संसार समाया हुआ है...माँ को नमन..सुन्दर पोस्ट..आभार..
ReplyDeleteदिल को छूती एक सुन्दर रचना...
ReplyDeleteमाँ तो सिर्फ माँ होती है...... .माँ तुझे सलाम...
ReplyDeleteनहीं चाहिए अब
ReplyDeleteकोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है.
बहुत ही सुन्दर लिखा है, माँ तुझे सलाम.
बहुत सुंदर सर................
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर..........................
माँ कुछ नहीं चाहती
सिवाय प्यार के.
प्यारी रचना.
अनु
"नहीं चाहिए अब
ReplyDeleteकोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है."
अत्यंत भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्ति !
भावपूर्ण रचना...माँ को नमन.
ReplyDeleteमाँ अविस्मरनीय है , प्रातः स्मरणीय है ,
ReplyDeleteदूर है किसी मंदिर मस्जिद के घरौंदे से
उसके आँचल में पनाह पाते हैं युग युगांतर
चर और चराचर .......
मैंने इतिहास के पन्नों पर
ReplyDeleteज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है.
करुण!
bahut umda!
ReplyDeletenishbd kiya aap ki rachna ne,bdhai sweekaaren....
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है भावपूर्ण रचना...माँ को नमन.
ReplyDeleteमन को छूते शब्दों का संगम ... आभार
ReplyDeleteनहीं ढूंढती अब कंधा
ReplyDeleteजिस पर सिर रख कर
कुछ पल रो सकूँ
मां के हृदय की विराटता अन्यत्र अलभ्य है।
मार्मिक कविता।
माँ शब्द के साथ ...खुद भी अनमोल हैं ..
ReplyDeleteसुन्दर मनोहारी रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete.
ReplyDeleteमां कुछ नहीं चाहती
सिवाय प्यार के…
भाव विह्वल कर देने वाली रचना लिखी है भाईजी !
यह भी सच है कि
मां के लिए कितना भी विस्तार से लिख लें , कम ही होगा …
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नमन है मां को !
नमन है मेरी मां को !
नमन है आपकी मां को !
नमन है संसार की प्रत्येक मां को !
मां तुझे प्रणाम !
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इस सुंदर प्रेरक रचना के लिए आभार आपका !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
मार्मिक प्रस्तुति. माँ का स्नेह अतुलनीय है, माँ की सेवा स्वर्ग... काश बस इतनी सी बात समझ आ जाए हमें..
ReplyDeleteसादर
mera maa de hattahn diyaan pakkiya rotiyaan khaan ne bada hee dil kardaa hai!!
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक कविता..माँ के उपकारों को भुलाया नहीं जा सकता !
ReplyDeleteमाँ बस ऐसी ही होती है ... उफ्फ्फ नहीं करती .... दुआएं ही देती है ...
ReplyDeleteमार्मिक रचना ...