समाचार
पत्रों में सुबह सुबह हमारे किशोरों की गंभीर अपराधों में शामिल होने की खबरें जब
अक्सर देखता हूँ तो पढ़ कर मन क्षुब्ध हो जाता है. कुछ दिन पहले समाचार पत्रों में
खबर थी कि चार किशोरों ने कक्षा से १२ साल के लडके को बाहर खींच कर निकाला और
चाकुओं से उसे घायल कर दिया. उसका कसूर केवल इतना था कि उसने कुछ दिन पहले अपने
साथ पढने वाली मित्र को उनके दुर्व्यवहार से बचाया था. इसी तरह की एक घटना में एक
किशोर ने अपने साथी का इस लिये खून कर दिया क्यों कि उसे शक था कि उसने उस पर काला
जादू किया है. कुछ समय पहले एक और दिल दहलाने वाली खबर पढ़ी कि एक १५ साल के किशोर
ने अपनी पडौस की महिला से ५० रुपये उधार लिये थे और जब उस महिला ने यह बात उसकी
माँ को बता दी तो उसे इतना क्रोध आया कि उसने उसके घर जा कर उस महिला पर चाकू से
हमला कर दिया और जब उसकी चीख सुन कर पडौस की दो महिलायें बचाने के लिये आयीं तो
उसने उन पर भी हमला कर दिया और तीनों महिलाओं की मौत हो गयी. एक छोटी जगह की इसी
तरह की एक खबर और पढ़ी थी कि स्कूल से अपने साथी के साथ लौटते हुए एक लडकी को उसके
साथ पढने वाले ४,५ साथियों ने रास्ते में रोक कर लडकी के साथ सामूहिक बलात्कार
किया. अपने ही साथ पढ़ने वाले साथी का फिरौती के लिये अपहरण और हत्या के कई मामले समाचारों में आये हैं. बलात्कार, लूट, वाहन चोरी, जेब काटना, चोरी करने आदि के समाचार तो बहुत आम हो गये हैं. छोटी
उम्र से शराब और ड्रग्स का प्रयोग एक सामान्य शौक बन गया है. आज के किशोरों का व्यवहार
देख कर समझ नहीं आता कि इस देश की अगली पीढ़ी का क्या होगा.
क्या कारण है किशोरों में इस बढ़ती
हुई अपराध प्रवृति का ? संयुक्त परिवारों के विघटन और माता पिता दोनों के अपने
अपने कार्यों में व्यस्त होने के कारण बच्चों की उचित देखभाल का अभाव और उन्हें
उचित संस्कार न दे पाना एक मुख्य कारण है. हम बच्चों को सभी भौतिक सुख सुविधायें तो
दे देतें हैं लेकिन उन्हें यह समझाना कि कौन सा काम उचित है और कौन सा अनुचित, यह
बताने के लिये हमारे पास समय नहीं है. परिणामतः उनके गलत सोहबत में पडने का पूरी
संभावना रहती है. संयुक्त परिवारों में बच्चों को सही मार्ग दर्शन और नैतिक शिक्षा
देने का कार्य दादा, दादी और परिवार के बुजुर्गों के हिस्से में आता था, लेकिन एकल
परिवारों में उनको यह शिक्षा देने का समय किसी के पास नहीं है. एकल परिवार में
बच्चे अपने आप को अकेला महसूस करने लगते हैं, और माता पिता के साथ और स्नेह का
अभाव उन्हें समाज के प्रति विद्रोही बना देता है.
आज टीवी, फिल्म आदि का उद्देश्य
केवल पैसा कमाना हो गया है और किसी मार्ग दर्शन के अभाव में किशोर छोटी उम्र से ही
हिंसा और अश्लीलता से रूबरू होने लगते हैं और सोचने लगते हैं कि यही जीवन का असली
और अनुकरणीय रूप है. एक दो दिन पहले मेक्सिको की एक खबर थी कि छठी कक्षा के कुछ छात्रों
ने स्कूल में मध्यावकाश में स्कूल के एक खाली कमरे में एक अश्लील विडियो फिल्म
बनायी और बाद में उसे इन्टरनेट पर अपलोड कर दिया. इस सब का मुख्य कारण टीवी और इन्टरनेट
पर आसानी से अश्लील सामिग्री का उपलब्ध होना और माता पिता का उनके कार्यकलापों पर
कोई नियंत्रण न होना ही है.
देश में विकास के असंतुलन के कारण
एक ओर धनी और धनी होते जा रहे हैं और दूसरी ओर गरीब और गरीब. धनिकों की जीवन शैली,
दौलत का भद्दा प्रदर्शन, गरीब किशोरों के मन में एक ईर्ष्या की भावना पैदा करता है
और वे सोचने लगते हैं कि वे भी क्यों न इन सब वस्तुओं और सुख सुविधाओं को प्राप्त
करें और उसी तरह जीवन जीयें. परिणामतः वे गैर क़ानूनी कार्यों की ओर आकर्षित होने
लगते हैं, और एक बार अपराध के दलदल में फंसने के बाद कभी उससे बाहर नहीं आ पाते.
एक बार गलत संगत में पडने के बाद वे जाने या अनजाने अपने साथियों के दवाब और
प्रोत्साहन से बड़े अपराधों की दुनियां में प्रवेश कर जाते हैं.
किसी समय शिक्षक विद्यार्थियों के
लिये एक उदाहरण हुआ करते थे. लेकिन आज शिक्षा केवल एक व्यापार बन कर रह गया है और
शिक्षक विद्यार्थियों से एक अपनेपन का भाव नहीं जोड़ पाते और उन्हें विद्यार्थियों
की अपनी समस्याओं से कोई सरोकार नहीं होता. वे बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास
करने में कोई रूचि नहीं दिखाते. गरीब परिवारों के बच्चों को न तो घर में और न उन
स्कूलों में जहां वे जाते हैं ऐसा वातावरण मिलता है जो उनके चारित्रिक और मानसिक
विकास में सहायक हो. स्वाभाविक है कि उनकी पढ़ाई से अरुचि हो जाती है और ग़लत संगत
और आसपास के माहौल से प्रभावित हो अपराध की दुनियां में कदम बढाने लगते हैं.
हमारी शिक्षा पद्धति में भी आमूल परिवर्तन
की आवश्यकता है. शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री पाना न रह जाये, जिसके बाद दर दर नौकरी
के लिये भटक कर निराश होना पड़े. व्यावसायिक शिक्षा हमारी शिक्षा प्रणाली का एक
अभिन्न अंग हो जिस से शिक्षा समाप्ति के बाद कोई बेकार न रहे और किसी सार्थक कार्य
में लग सके.
हमें अपने किशोरों को अपराध जगत से
दूर रखने के लिये घर, स्कूल, समाज के स्तर पर एकीकृत और समग्र प्रयास करने की
ज़रूरत है. कोई भी किशोर अपनी खुशी से अपराध जगत में नहीं जाता, बल्कि इस के लिये घर,
पडौस, स्कूल और समाज का वातावरण तथा परिस्थितियां बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं. अगर हम शुरू से ही इस ओर
ध्यान नहीं देंगे तो उन बच्चों को, जो समाज के विकास में एक सकारात्मक योगदान दे
सकते हैं, अपराध जगत की ओर बढने से नहीं रोक पायेंगे.
कैलाश शर्मा
बेहद सार्थक लेखन..................
ReplyDeleteबड़ी गंभीर स्थिति है.......बात बात पर बच्चे कहते हैं "गोली मार दूंगा उसे..." आवेश और उत्तेजना से भरे हैं.......ना जाने क्या किया जाये इनका.......
माँ-बाप भी क्या करें कुछ सूझता नहीं....
सादर.
बहुत सही कहा है आपने ... इस आलेख में सार्थकता लिए हुए सटीक प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपक लिखा ये आलेख ...एक दम खरा हैं ....एकल होते परिवार...और बच्चो की मनमानी ...ही इन बच्चो को गुमराह कर रही हैं ....घर पर अकेले होने के कारण...इनकी गतिविधियों पर नज़र रखने वाला कोई नहीं होता ....
ReplyDeleteसार्थक लेख .... आज की ज्वलंत समस्या पर विचार अच्छे लगे
ReplyDeleteबेलगाम समाज का सबसे पहला असर किशोरो पर ही नजर आता है। समाज एक संस्था है जिसके पतन के साथ मर्युआदा का पतन होने लगता है। और आचरण व्यक्ति विशेष पर निर्भर हो जाता है। पश्चिमी सभ्यता में सामाजिक ढांचा नही होता है। सो उसकी नकल का दुष्परिणाम अब हमे नजर आने लगा है।
ReplyDeleteबहुत बहुत प्रभाव शाली आलेख है आपकी हर बात हर परिस्थिति का विवरण ,जो आज के बच्चों में पतन का कारन बनती जा रही हैं, एक दम सही है बहुत बहुत बधाई इस सशक्त आलेख के लिए
ReplyDeleteमाता-पिता और शिक्षक जब अपनी जिम्मेदारी नहीं उठाते तब बच्चे भटक जाते हैं...सही है.
ReplyDeleteकाफी हद तक एकल परिवार और अत्यधिक भौतिक साधनों की उपलब्धता भी इसका कारण है, माता-पिता उन्हें सभी भौतिक सुख सुविधायें तो दे देतें हैं, लेकिन नैतिक शिक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भूल जाते हैं... सार्थक आलेख के लिए आपका आभार
ReplyDeleteये घटनाएँ बताती हैं कि समाज और सरकार का शिक्षा के प्रति क्या दृष्टिकोण है.
ReplyDeleteनैतिक-शिक्षा अब स्वप्न की बात हो गई है !
नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |
ReplyDeleteइन से भी ज्यादा महत्त्व, मात-पिता व्यवहार |
मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |
खेल वीडिओ गेम, रहे एकाकी घर पर |
मारो काटो घेर, चढ़े फिर उसके सर पर ||
vikrit mansikta badhti jaa rahi hai ...
ReplyDeleteमीडिया, सरकार की गलत नीतियां, आधुनिक चलन, नैतिक शिक्षा का आभाव ... और भी अनेक कारण हैं एअसे अपराधों के लिए ... पास आजकल सब कुछ सरकार करेगी ऐसा चलन हो गया है ...
ReplyDeleteसिमटता परिवार और फैलता कार्यक्षेत्र, समय की कमी, निरंकुश मीडिया, सिनेमा, अंतर्जाल की बिंदास सुविधा, सरकार की वैचारिक विकलांगता, शिक्षा में राजनीति, पाठय पुस्तकों से नैतिक एवं प्रेरक बोध कथाओं/जीवन चरित्रों का विलोपन... युवाओं में दिग्भ्रम का प्रमुख कारण हैं... समय रहते गंभीर चिंतन और सकारात्मक निदान की नहीं की गई तो यह समस्या अत्यधिक विस्फोटक हो सकती है...
ReplyDeleteविचारोत्तेजक गंभीर चिंतनोन्मुख करते आलेख के लिए सादर साधुवाद सर...
विचारोत्तेजक और गंभीर मुद्दा ..
ReplyDeleteआर्थिक असंतुलन और सामाजिक सरोकारों के प्रति उदासीनता का दुष्परिणाम है ये सब
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआज की ज्वलंत समस्या पर विचारणीय लेख...
ReplyDeleteसटीक मुद्दे उठाए हैं आपने चौतरफा खबरदारी की ज़रुरत ,शुरु से ही बाल्य काल से .
ReplyDeleteसार्थक, विचारणीय लेख...
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ReplyDeleteसार्थक कदमों की आवश्यकता है.//
ReplyDeleteन जाने क्यों, सब्र के बाँध टूटे जाते हैं...
ReplyDeleteसार्थक विचारोत्तेजक प्रभाव शाली आलेख लिखने के लिए बधाई ........
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति,,,,,,,,,,,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
सुन्दर व सटीक विश्लेषण किया है आपने ..पूर्णत: सहमति..
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ज़िंदगी मासूम ही सही .
बहुत ज्वलंत मुद्दा है ये और इसके जिम्मेवार अभिभावक और स्कूल दोनों ही बराबर है .......एक अच्छा आलेख है आपका
ReplyDeleteएक गंभीर समस्या उठाता हुआ विचारणीय आलेख...
ReplyDeleteसमाधान कैसे हो???
सादर
ऋता शेखर
अच्छा...विचारोत्तेजक ...सार्थक लेख...एक गंभीर,सामयिक मुद्दे को उठाता हुआ
ReplyDeleteकैलाशजी,'दुर्गापूजक देश में कन्या भ्रूणहत्या'में भारतीय संस्कृति के घातकों पर प्रहार सराहनीय है तथा 'रावन अभी जिन्दा है'एक कटु ससती है |इस प्रकार आपका साहित्य सचमुच समाज का सही रूप प्रकट करने वाला दर्पण है|साधुवाद!!!
ReplyDeleteबेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...बधाई...
ReplyDeleteलोगों के पास समय जो नहीं है अपने बच्चों को संस्कार देने का, उनके साथ बात करने का....यही होगा अब...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक लेख !
ReplyDeleteकिशोरों में बढ़ती आपराधिक प्रवृति निश्चय ही चिंतनीय और विचारणीय मुद्दा है ....
sabhi apradho ki vajaj sanskaro ka abhav hi hai...sarthak lekh
ReplyDeletesarthak aalekh ...samyayik aur vicharniy mudda..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (10-03-2014) को आज की अभिव्यक्ति; चर्चा मंच 1547 पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ऐसे सार्थक लेख वक़्त की जरूरत हैं .....
ReplyDeletesarthak lekhan
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