द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.३८-४४)
सुख दुःख, लाभ हानि सम,
हार जीत न चिंतित करते.
जो ऐसा सोच युद्ध में उतरें,
वे नहीं पाप के भागी बनते.
सांख्य बुद्धि बतलाई अब तक,
कर्म योग मैं अब बतलाता.
पाकर कर्म योग बुद्धि को
छूट कर्म बंधन नर जाता.
करते जो प्रारम्भ कर्म है,
उसका नाश नहीं होता है.
न विपरीत है फल ही मिलता,
न जन्म मृत्यु भय ही होता है.
कर्म योग का जो साधक है,
स्थिर एकनिष्ठ बुद्धि है होती.
अविवेकी फल इच्छुक जो है,
उस की अनंत कामना होती.
वेद वाक्य में प्रीति है जिनको
वेदों को ही सब कुछ मानें.
बहकाते हैं वे सब जन को,
कर्मकाण्ड से न आगे जानें.
हैं आसक्त कामनाओं में जो
पुरुषार्थ बस स्वर्ग प्राप्ति.
कर्म काण्ड का वर्णन करते,
होती जिनसे फल की प्राप्ति.
भोग और ऐश्वर्य प्राप्ति को
विभिन्न क्रियायें वे बतलाते.
जो ऐश्वर्य, भोग के इच्छुक,
स्थिर एकनिष्ठ बुद्धि न पाते.
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
हर बार की तरह बहुत बढ़िया ।
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteवेद वाक्य में प्रीति है जिनको
ReplyDeleteवेदों को ही सब कुछ मानें.
बहकाते हैं वे सब जन को,
कर्मकाण्ड से न आगे जानें... गहन
वाह, स्पष्ट, पूरी तरह..
ReplyDeleteगहन भाव लिये उत्कृष्ट प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteहैं आसक्त कामनाओं में जो
ReplyDeleteपुरुषार्थ बस स्वर्ग प्राप्ति.
कर्म काण्ड का वर्णन करते,
होती जिनसे फल की प्राप्ति.
बहुत उत्कृष्ट रचना,..अच्छी प्रस्तुति
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कर्म योग का जो साधक है,
ReplyDeleteस्थिर एकनिष्ठ बुद्धि है होती.
अविवेकी फल इच्छुक जो है,
उस की अनंत कामना होती.........सुन्दर प्रस्तुति आभार...
सांख्य बुद्धि बतलाई अब तक,
ReplyDeleteकर्म योग मैं अब बतलाता.
पाकर कर्म योग बुद्धि को
छूट कर्म बंधन नर जाता.
बहुत बढ़िया खुद बा खुद सन्देश देती हमारी सीमाओं को रेखांकित करती पोस्ट .एक पूरी पीढ़ी है जो वेद के बाहर सोच ही नहीं पाती उसने ज्ञान की भी हदबंदी कर रखी है .
आदरणीय शर्मा साहब ! यह नितांत मेरा निजी संभाषण है ,क्षमा प्रार्थी हूँ - जैसी यह विषय-वस्तु है, कालानुरूप शब्द व शिल्प का ध्यान रखा जाये तो ,आकर्षण और लालित्य और बढ़ जाता .........अच्छा प्रयास
ReplyDeleteआदरणीय उदय वीर सिंह जी, गीता गहन ज्ञान का सागर है. मेरा प्रयास है कि अनुवाद को मूल भाव के निकटतम रखते हुए, इसे सरल, सहज, और बोलचाल की भाषा में अभिव्यक्त करूं जिससे वह जन साधारण को बोधगम्य रहे. आपके सुझाव के लिये आभार.
DeleteKamalka anuwad kar rahe hain aap!
ReplyDeletebahut sundra
ReplyDeleteभोग और ऐश्वर्य प्राप्ति को
ReplyDeleteविभिन्न क्रियायें वे बतलाते.
जो ऐश्वर्य, भोग के इच्छुक,
स्थिर एकनिष्ठ बुद्धि न पाते.
गहन भाव !
बहुत सुंदर .... सराहनीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति. बधाई और धन्यबाद.
ReplyDeleteकर्म योग का जो साधक है,
ReplyDeleteस्थिर एकनिष्ठ बुद्धि है होती.
अविवेकी फल इच्छुक जो है,
उस की अनंत कामना होती.
कर्मयोग की परिभाषा कितने सरल शब्दों में... आभार!
aapki prastuti man ko chetna pradaan karti hai.
ReplyDeletesaral aur bodhgamy,