द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.२९-३७)
कुछ आश्चर्य सम देखें आत्मा,
कुछ आश्चर्य सम वर्णन करते.
करते श्रवण मान कुछ आश्चर्य,
कथन श्रवण से कुछ न समझते.
करती जो निवास सब तन में,
नित्य,न उसका वध कर सकते.
व्यर्थ सोचते हो सब के बारे में,
उचित नहीं तुम शोक जो करते.
समझो पार्थ धर्म तुम अपना,
डरना क्षत्रिय को उचित नहीं है.
युद्ध धर्म रक्षा को तज कर,
श्रेयस्कर कुछ अन्य नहीं है.
किस्मत वाले हैं वे क्षत्रिय,
जो ऐसा अवसर हैं पाते.
भाग्यवान ऐसे वीरों को,
स्वयं स्वर्ग द्वार खुल जाते.
धर्म युद्ध से हटता जो पीछे,
वह अपयश का भागी होता.
सम्मानित व्यक्ति को अपयश,
अधिक मृत्यु से दुखकर होता.
ये सब महारथी समझेंगे
युद्धविमुख हो गए हो भय से.
सम्मानित थे जिन नज़रों में,
गिर जाओगे उन नज़रों से.
बोलेंगे अनचाही बातें,
सामर्थ्य तुम्हारी पर शक होगा.
शत्रुजनों की बातें सुनकर,
क्या इससे बढ़ कर दुःख होगा?
यदि तुम मारे गये युद्ध में,
निश्चय पार्थ स्वर्ग पाओगे.
पायी तुमने जीत अगर तो
पृथ्वी पर सब सुख पाओगे.
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
बहुत सुंदर विचार और लाजवाब प्रस्तुति.......आभार..
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेहतरीन रचना,..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
यदि तुम मारे गये युद्ध में,
ReplyDeleteनिश्चय पार्थ स्वर्ग पाओगे.
पायी तुमने जीत अगर तो
पृथ्वी पर सब सुख पाओगे.
बेहतरीन भाव संयोजन किये हैं आपने इस प्रस्तुति में आभार ।
्बहुत सुन्दरता से वर्णन किया है।
ReplyDeleteमन को शांति मिलती है, ऐसी रचनाओं को पढ़कर।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना और लाजवाब प्रस्तुति.
ReplyDelete→ बहुत अच्छा लगा पढकर...आभार
वाह क्या बात है!!...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधर्म युद्ध से हटता जो पीछे,
ReplyDeleteवह अपयश का भागी होता.
सम्मानित व्यक्ति को अपयश,
अधिक मृत्यु से दुखकर होता....
bahut sundar anuwaad...
pranaam
.
बहुत सुन्दर:-)
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
बहुत ही सुन्दर और प्रभावी..
ReplyDeleteधर्म युद्ध से हटता जो पीछे,
ReplyDeleteवह अपयश का भागी होता.
सम्मानित व्यक्ति को अपयश,
अधिक मृत्यु से दुखकर होता....ati sundar...
सार्थक और सारगर्भित प्रयास ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!!
सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकुछ आश्चर्य सम देखें आत्मा,
ReplyDeleteकुछ आश्चर्य सम वर्णन करते.
करते श्रवण मान कुछ आश्चर्य,
कथन श्रवण से कुछ न समझते.
बहुत सुंदर भावानुवाद ! आभार !
धर्म युद्ध से हटता जो पीछे,
ReplyDeleteवह अपयश का भागी होता.
सम्मानित व्यक्ति को अपयश,
अधिक मृत्यु से दुखकर होता.
दोनों हाथों में लड्डू दिखाएँ हैं कृष्ण ने .इस मर्तबा अनुवाद थोड़ा सा हलका रहा .बेशक पृथ्वी और आकाश दोनों की परिक्रमा करना है काव्यान्तरण .बधाई इस लगन और परिश्रम के लिए .
क्या कहने, बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeletegyaan ganga men snaan karvaane ke liye
ReplyDeletebahut bahut aabhaar kailash ji.