द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.४५-५०)
त्रिगुण कर्म वेदों में वर्णित,
उनसे ऊपर उठो पार्थ तुम.
नित्य सत्व में स्थित हो कर,
सुख दुःख से निर्द्वंद बनो तुम.
चहुँ ओर जब बाढ़ उमडती,
कुएं से जो सिद्ध प्रयोजन.
ब्रह्मनिष्ठ जन का भी होता,
सब वेदों से वही प्रयोजन.
चहुँ ओर जब बाढ़ उमडती,
कुएं से जो सिद्ध प्रयोजन.
ब्रह्मनिष्ठ जन का भी होता,
सब वेदों से वही प्रयोजन.
है अधिकार कर्म पर केवल,
फल पर न अधिकार समझना.
बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
पर अकर्म आसक्त न बनना.
तज कर मोह कर्म के फल का,
कर्म करो तुम योग समझ कर.
दुःख सुख में समत्व भाव ही
कहलाता है योग धनञ्जय.
बुद्धियोग की तुलना में,
है निकृष्ट, कर्म फल हेतु.
होते वे नर दीन हीन हैं,
फल जिनके कर्मों का हेतु.
अच्छे और बुरे कर्मों को
बुद्धियुक्त साधक तज देते.
बनो कर्म योग के साधक,
कर्म कुशलता योग हैं कहते.
...... क्रमशः
कैलाश शर्मा
अच्छे और बुरे कर्मों को
ReplyDeleteबुद्धियुक्त साधक तज देते.
बनो कर्म योग के साधक,
कर्म कुशलता योग हैं कहते..........बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... अभार कैलाश जी
बहुत खूबसूरती से भावानुवाद चल रहा है।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से आभार।
है अधिकार कर्म पर केवल,
ReplyDeleteफल पर न अधिकार समझना.
बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
पर अकर्म आसक्त न बनना.
सरल शब्दों में अपनी बात कहने और सन्देश देने में पूर्णतः सफल रचना... आभार
सरल भाषा शैली में आपने सारगर्भित गीता के उपदेशों को प्रस्तुत किया है .आभार
ReplyDeleteभक्तिरस और पुरूषार्थ प्रेरणा भरपुर
ReplyDeleteप्रशंसनीय अभिव्यक्ति आपकी !
ReplyDeleteअच्छे और बुरे कर्मों को
ReplyDeleteबुद्धियुक्त साधक तज देते.
बनो कर्म योग के साधक,
कर्म कुशलता योग हैं कहते.
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteकुल प्रस्तुति अत्यंत
ReplyDeleteआकर्षक बन पड़ी है-|
आनंद ही आनद |
सदैव आभार ||
बहुत बढ़िया .............
ReplyDeleteहै अधिकार कर्म पर केवल,
फल पर न अधिकार समझना.
बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
पर अकर्म आसक्त न बनना.
बहुत सुंदर.
सादर.
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteतज कर मोह कर्म के फल का,
ReplyDeleteकर्म करो तुम योग समझ कर.
दुःख सुख में समत्व भाव ही
कहलाता है योग धनञ्जय.
बहुत सुंदर भावानुवाद।
आपकी यह कृति हिंदी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
बहुत सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत सुदंर
ReplyDeleteकर्म का सच्चा प्रारूप, सरल भाषा में..
ReplyDeleteबनो कर्म योग के साधक,
ReplyDeleteकर्म कुशलता योग हैं कहते.
......... उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
त्रिगुण कर्म वेदों में वर्णित,
ReplyDeleteउनसे ऊपर उठो पार्थ तुम.
नित्य सत्व में स्थित हो कर,
सुख दुःख से निर्द्वंद बनो तुम.बढ़िया बन पड़ी है यह किश्त .बहुत सार्थक और गेय ... कृपया यहाँ भी पधारें -
बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
laajbaab kaavymy anuvaad.
ReplyDeletesad chintan karvaane ke liye aabhaar.
बस मनन करते हुए पढ़ रही हूँ..
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