नदी और नाला
बहता है पानी
दोनों में.
एक में स्नान करके
समझते हैं
मुक्त हो गये सभी पापों से
और दूसरे के पास से
गुज़र जाते हैं
ज़ल्दी ज़ल्दी
नाक पर रूमाल रख के.
पानी तो पानी है
नदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी.
नदी या नारी
होती हैं दोनों अभिशप्त
आदमी की हैवानियत से
जो बना देता है
एक नदी को गन्दा नाला,
और एक नारी को
बैठा देता है कोठे पर
उठा कर फ़ायदा
उसकी मज़बूरी का
और गुज़रता है दिन में
ओढ़ कर शराफत का लवादा,
काले चश्मे के अन्दर से
ताकते दूषित नज़रों से.
कैलाश शर्मा
बहता है पानी
दोनों में.
एक में स्नान करके
समझते हैं
मुक्त हो गये सभी पापों से
और दूसरे के पास से
गुज़र जाते हैं
ज़ल्दी ज़ल्दी
नाक पर रूमाल रख के.
नदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी.
नदी या नारी
होती हैं दोनों अभिशप्त
आदमी की हैवानियत से
जो बना देता है
एक नदी को गन्दा नाला,
और एक नारी को
बैठा देता है कोठे पर
उठा कर फ़ायदा
उसकी मज़बूरी का
और गुज़रता है दिन में
ओढ़ कर शराफत का लवादा,
काले चश्मे के अन्दर से
ताकते दूषित नज़रों से.
कैलाश शर्मा
पानी तो पानी है
ReplyDeleteनदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी
real....super kavita
बहतु गंभीर कविता... सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteवाह कैलाश जी ...बहुत गंभीर बात को इंगित किया है आपने कविता के माध्यम से है
ReplyDeleteपानी तो पानी है
ReplyDeleteनदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी
गहन अभिव्यक्ति...आभार
नदी या नारी
ReplyDeleteहोती हैं दोनों अभिशप्त
आदमी की हैवानियत से
जो बना देता है
एक नदी को गन्दा नाला,
और एक नारी को
बैठा देता है कोठे पर
बहुत ही सुन्दर .....शानदार ।
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ...आभार ।
ReplyDeleteshaandaar.........
ReplyDeleteआभार....
ReplyDeleteपानी तो पानी है
ReplyDeleteनदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी.
Kitni sachhee baat kah dee aapne!
बहुत ही सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत सही बिम्ब से उकेरा है सचाई !
ReplyDeleteगंभीर चिंतन... सुंदर रचना...
ReplyDeleteसादर।
http://dcgpthravikar.blogspot.in/search/label/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति |
सटीक विवरण |
भूल गई पहचान वो, खोयी सरस स्वभाव।
तड़पन बढती ही गई, नमक नमक हर घाव ।
छूट जनक का घर बही, झेली क्रूर निगाह ।
स्वाहा परहित हो गई, पूर्ण हुई न चाह ।।
बहुत सार्थक व प्रभावशाली अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, सार्थक और प्रभावशाली
ReplyDeleteनदी ही तो है नारी ..
Sir, sunder prastuti! Par hame kisi bhi stri ko gande naale se nahi jodna chahiye. Gande woh hain jinki wajah se ek stri kshoshit hoti hai... man ki sunderta peshe se khatm nahi hoti... jis tarah ganga mein gande haath dhone se ganga apavitr nahi hoti... please forgive me for being oppositional
ReplyDeleteमैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, और मेरा उद्देश्य भी गंदे नाले या किसी पेशे को अपवित्र कहने का नहीं है. मैं तो यही कहना चाहता हूँ कि दोनों ही पवित्र हैं और दोषी हैं केवल वे इंसान जो इन्हें गन्दा करते हैं और फ़िर भी शरीफ़ बनने का ढोंग करते हैं. मेरी ये पंक्तियाँ यही बात कहना चाहती हैं :
Deleteपानी तो पानी है
नदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी
मैंने दोनों ही स्तिथियों में दोष आदमियों को दिया है जो दोषी हैं इस गन्दगी को फैलाने के, वह चाहे नदी में हो या नारी में. आशा है मेरा मंतव्य स्पष्ट होगया होगा, क्योंकि मैं भी वही कहना चाह रहा हूँ, जो आप कह रही हैं. आभार
उम्दा रचना बेहद खुबसूरत
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
नदी या नारी
ReplyDeleteहोती हैं दोनों अभिशप्त
आदमी की हैवानियत से
जो बना देता है
एक नदी को गन्दा नाला,
और एक नारी को
बैठा देता है कोठे पर
उठा कर फ़ायदा
उसकी मज़बूरी का
और गुज़रता है दिन में
ओढ़ कर शराफत का लवादा,
काले चश्मे के अन्दर से
ताकते दूषित नज़रों से... बहुत सही व्याख्या और उत्कृष्ट रचना
गहन चिंतन लिए हुए सार्थक रचना....
ReplyDeleteअति सुन्दर.....
पानी तो पानी है
ReplyDeleteनदी का या नाले का,
फ़र्क पैदा करता है
सिर्फ़ आदमी
बहाकर अपनी गन्दगी.
बहुत अच्छी सार्थक और प्रभावशाली प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
sateek tulna ki hai aapne nari jeevan v nadi ki .aabhar
ReplyDeleteमार्मिक है.
ReplyDeleteतभी तो कहता हूँ
ReplyDeleteये कैसी आस्था है?
जिसका
सिर्फ़ गन्दगी से वास्ता है।
तन से निकालते हैं
नदी के पानी में फेकते हैं
मन से निकालते हैं
स्त्री की देह में फेकते हैं।
दोनो के हिस्से मे आती है
हमारी वासना ...
हमारी प्रताड़ना।
नदी
मर रही है
और स्त्री
मर-मर के जी रही है।
लाज़वाब !
Deleteबहुत ही सटीक बिंब
ReplyDeleteनदी और नारी!!
कौशलेन्द्र जी की टिप-कविता भी ला-जवाब
prabhavshaali prateekon k prayog se rachna seedha dil pat aaghaat karti hai.
ReplyDeleteचिंतन देती हुइ ...गम्भीर ,मर्मिक अभिव्यक्ति ..!!
Deleteवाह सर एक दम सटीक बात कहती एवं यथार्थ का आईना दिखती बेहद सार्थक पोस्ट....
ReplyDeletesach ko batlati khoobsurat rachna
ReplyDeleteनदी या नारी
ReplyDeleteहोती हैं दोनों अभिशप्त
आदमी की हैवानियत से
जो बना देता है
एक नदी को गन्दा नाला,
और एक नारी को
बैठा देता है कोठे पर
WAAH...BEJOD...
NEERAJ
आदमी के वीभत्स रूप कों लिखा है आपने .. औए ये सच भी है ...
ReplyDeleteपुरुष न जाने कब इस बात कों समझेगा ...
घर के ,नगर के
ReplyDeleteसब द्वार खुले हैं ,
मैं तो कैदी हूँ ,
अपने ही विचारों का
अपने ही आचरण का ..........हर इंसान अपनी ही सोच से नीचे गिरता हैं और अपने साथ जुड़ने वाले को भी भी नहीं छोड़ता ......अनु
घर के ,नगर के
ReplyDeleteसब द्वार खुले हैं ,
मैं तो कैदी हूँ ,
अपने ही विचारों का
अपने ही आचरण का ..........हर इंसान अपनी ही सोच से नीचे गिरता हैं और अपने साथ जुड़ने वाले को भी भी नहीं छोड़ता ......अनु
सीरत और सूरत का भेद बताती, गहन चिंतन से युक्त ...बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है भाई साहब आदमी की फितरत बयान नकारती है और उस पर तुर्रा यह .बहती गंगा में हाथ धौ लो ....खूब करो मैली गंगा को ,..कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteभ्रूण जीवी स्वान
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
ram ram bhai .कृपया यहाँ भी पधारें -
मंगलवार, 22 मई 2012
ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)
http://veerubhai1947.blogspot.in/
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )http://veerubhai1947.blogspot.in/
कृपया यहाँ भी पधारें -
दमे में व्यायाम क्यों ?
दमे में व्यायाम क्यों ?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_5948.html
बहुत भावपूर्ण कविता !
ReplyDeleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteजल और उसके प्रतीकों को यथासंभव पवित्र रखा जाये।
ReplyDeletegahan hridysparshi abhivyakti.
ReplyDeleteyah sochna hoga ki gandagi aati kahan se hai.
gandgi ke srot ka hi unmulan hona jaroori hai.
varna nadi ko bhi naalaa banne men der n lagegi.