(१)
वक़्त के पन्ने
हो गये पीले,
जब भी पलटता हूँ
होता है अहसास
तुम्हारे होने का.
(२)
तोड़ कर आईना
बिछा दीं किरचें
फ़र्श पर,
अब दिखाई देते
अपने चारों ओर
अनगिनत चेहरे
और नहीं होता महसूस
अकेलापन कमरे में.
(३)
दे दो पंख
पाने दो विस्तार
उड़ने दो मुक्त गगन में
आज सपनों को,
बहुत रखा है क़ैद
इन बंद पथरीली आँखों में.
(४)
जब भी होती हो सामने
न उठ पाती पलकें,
हो जाते निशब्द बयन
धड़कनें बढ़ जातीं.
तुम्हारे जाने के बाद
करता शिकायतें
तुम्हारी तस्वीर से,
नहीं समझ पाया आज तक
कैसा ये प्यार है.
कैलाश शर्मा
वक़्त के पन्ने
हो गये पीले,
जब भी पलटता हूँ
होता है अहसास
तुम्हारे होने का.
(२)
तोड़ कर आईना
बिछा दीं किरचें
फ़र्श पर,
अब दिखाई देते
अपने चारों ओर
अनगिनत चेहरे
और नहीं होता महसूस
अकेलापन कमरे में.
(३)
दे दो पंख
पाने दो विस्तार
उड़ने दो मुक्त गगन में
आज सपनों को,
बहुत रखा है क़ैद
इन बंद पथरीली आँखों में.
(४)
जब भी होती हो सामने
न उठ पाती पलकें,
हो जाते निशब्द बयन
धड़कनें बढ़ जातीं.
तुम्हारे जाने के बाद
करता शिकायतें
तुम्हारी तस्वीर से,
नहीं समझ पाया आज तक
कैसा ये प्यार है.
कैलाश शर्मा