Wednesday, May 09, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद ( पंचम कड़ी)


द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.१६-२२)



राज्य न होता कभी असत् का,
सत का कभी अभाव न होता.
जो यथार्थ का रूप जानते
उनको इसका ज्ञान है होता.


व्याप्त चराचर जग में जो है
अविनाशी समझो तुम उसको.
नहीं हुआ जग में कोई भी
जो विनाश कर पाये उसको.


होता न विनाश आत्मा का
नहीं नाप सकते तुम इसको.
केवल यह शरीर नश्वर है,
चलो खड़े तुम हो लड़ने को.


नहीं आत्मा वध करती है,
और न इसका है वध होता.
मारे जाने पर भी तन के,
हनन आत्मा का न होता.


नित्य, सनातन, शाश्वत आत्मा,
इसका जन्म मरण न होता.
समझ गया जो इस रहस्य को,
कैसे वह वधकारी होता ?


यथा जीर्ण वस्त्र को तज कर 
मानव नूतन वस्त्र धारता.
तथा जीर्ण शरीर छोड़ कर 
वह  नूतन काया में जाता.


             ........क्रमशः 


कैलाश शर्मा 

15 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दरता से बयान किया है ………सुन्दर चल रही है श्रंखला

    ReplyDelete
  2. नित्य, सनातन, शाश्वत आत्मा,
    इसका जन्म मरण न होता.
    समझ गया जो इस रहस्य को,
    कैसे वह वधकारी होता ?

    बहुत सुन्दरता से सुन्दर चल रही है यह श्रंखला,...बधाई कैलाश जी ......

    सुंदर प्रस्तुति,..

    my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,सार्थक प्रयास..........

    ReplyDelete
  4. नहीं आत्मा वध करती है,
    और न इसका है वध होता.
    मारे जाने पर भी तन के,
    हनन आत्मा का न होता.


    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आपका आभार ।

    ReplyDelete
  5. अच्‍छी प्रस्‍तुति ... सुन्दर श्रंखला आपका आभार

    ReplyDelete
  6. नित्य, सनातन, शाश्वत आत्मा,
    इसका जन्म मरण न होता.
    समझ गया जो इस रहस्य को,
    कैसे वह वधकारी होता ?
    बढ़िया भाव प्रस्तुति गीता की .पद्यानुवाद से आगे ,अभूत आगे ,सीढ़ी बिंदास अभिव्यक्ति ,शून्य प्रति -रोध लिए .

    ReplyDelete
  7. सादर नमन |
    आभार ||

    ReplyDelete
  8. बढ़िया भाव प्रस्तुति गीता की .पद्यानुवाद से आगे ,बहुत आगे ,सीधी बिंदास अभिव्यक्ति ,शून्य प्रति -रोध लिए .गति और ताल लिए .

    ReplyDelete
  9. पूरी गीता को प्रकाशित अवश्य करवाईयेगा...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सब कुछ प्रभु की इच्छा पर निर्भर है..

      Delete
  10. यथा जीर्ण वस्त्र को तज कर
    मानव नूतन वस्त्र धारता.
    तथा जीर्ण शरीर छोड़ कर
    वह नूतन काया में जाता.

    sharma ji bilkul shandar prastuti ......eshwar apki likhni ko geeta sabhi shlikon ko esi tarah paribhashit karane ki shakti prdan kren ....abhar ke sath hardik badhai bhi

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर श्रंखला बढ़िया सार्थक प्रस्‍तुति .आभार..्कैलाश जी

    ReplyDelete
  12. नहीं आत्मा वध करती है,
    और न इसका है वध होता.
    मारे जाने पर भी तन के,
    हनन आत्मा का न होता... अच्छी यात्रा

    ReplyDelete
  13. बहुत ज्ञानवर्धक श्रंखला...आभार!

    ReplyDelete