Wednesday, May 23, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (९वीं-कड़ी)


द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.४५-५०)

त्रिगुण कर्म वेदों में वर्णित,
उनसे ऊपर उठो पार्थ तुम.
नित्य सत्व में स्थित हो कर,
सुख दुःख से निर्द्वंद बनो तुम.


चहुँ ओर जब बाढ़ उमडती,
कुएं से जो सिद्ध प्रयोजन.
ब्रह्मनिष्ठ जन का भी होता,
सब वेदों से वही प्रयोजन.

है अधिकार कर्म पर केवल,
फल पर न अधिकार समझना.
बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
पर अकर्म आसक्त न बनना.

तज कर मोह कर्म के फल का,
कर्म करो तुम योग समझ कर.
दुःख सुख में समत्व भाव ही 
कहलाता है योग धनञ्जय.

बुद्धियोग की तुलना में,
है निकृष्ट, कर्म फल हेतु.
होते वे नर दीन हीन हैं,
फल जिनके कर्मों का हेतु.

अच्छे और बुरे कर्मों को 
बुद्धियुक्त साधक तज देते.
बनो कर्म योग के साधक,
कर्म कुशलता योग हैं कहते.

               ...... क्रमशः 

कैलाश शर्मा  

20 comments:

  1. अच्छे और बुरे कर्मों को
    बुद्धियुक्त साधक तज देते.
    बनो कर्म योग के साधक,
    कर्म कुशलता योग हैं कहते..........बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... अभार कैलाश जी

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  2. बहुत खूबसूरती से भावानुवाद चल रहा है।

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से आभार।

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  4. है अधिकार कर्म पर केवल,
    फल पर न अधिकार समझना.
    बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
    पर अकर्म आसक्त न बनना.
    सरल शब्दों में अपनी बात कहने और सन्देश देने में पूर्णतः सफल रचना... आभार

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  5. सरल भाषा शैली में आपने सारगर्भित गीता के उपदेशों को प्रस्तुत किया है .आभार

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  6. भक्तिरस और पुरूषार्थ प्रेरणा भरपुर

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  7. प्रशंसनीय अभिव्यक्ति आपकी !

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  8. अच्छे और बुरे कर्मों को
    बुद्धियुक्त साधक तज देते.
    बनो कर्म योग के साधक,
    कर्म कुशलता योग हैं कहते.
    बहुत ही उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ... आभार

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  9. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति

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  10. कुल प्रस्तुति अत्यंत
    आकर्षक बन पड़ी है-|
    आनंद ही आनद |
    सदैव आभार ||

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  11. बहुत बढ़िया .............

    है अधिकार कर्म पर केवल,
    फल पर न अधिकार समझना.
    बनो न हेतु कर्म फल के तुम,
    पर अकर्म आसक्त न बनना.

    बहुत सुंदर.

    सादर.

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  12. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति

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  13. तज कर मोह कर्म के फल का,
    कर्म करो तुम योग समझ कर.
    दुःख सुख में समत्व भाव ही
    कहलाता है योग धनञ्जय.

    बहुत सुंदर भावानुवाद।
    आपकी यह कृति हिंदी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।

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  14. बहुत सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  15. कर्म का सच्चा प्रारूप, सरल भाषा में..

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  16. बनो कर्म योग के साधक,
    कर्म कुशलता योग हैं कहते.
    ......... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ... आभार

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  17. त्रिगुण कर्म वेदों में वर्णित,
    उनसे ऊपर उठो पार्थ तुम.
    नित्य सत्व में स्थित हो कर,
    सुख दुःख से निर्द्वंद बनो तुम.बढ़िया बन पड़ी है यह किश्त .बहुत सार्थक और गेय ... कृपया यहाँ भी पधारें -
    बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  18. laajbaab kaavymy anuvaad.
    sad chintan karvaane ke liye aabhaar.

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  19. बस मनन करते हुए पढ़ रही हूँ..

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