कल कल करते हुए
निकल गए कितने आज।
और फिर एक दिन दस्तक दी मृत्यु ने
और कहा चलना है,
अभी और आज।
मैंने अपने चारों और देखा
और कहा कल आना
आज मैं व्यस्त हूँ।
वह मुस्करायी,
चारों और देखा,
दीवारों की खूंटियों पर,
घर के हर कोने में,
मेज पर, अलमारी में
कल के इंतजार में पड़े आज को
और बोली
मैं हर पल को उस पल में ही जीती हूँ,
मेरे शब्दकोस में
कल जैसा शब्द नहीं।
निकल गए कितने आज।
और फिर एक दिन दस्तक दी मृत्यु ने
और कहा चलना है,
अभी और आज।
मैंने अपने चारों और देखा
और कहा कल आना
आज मैं व्यस्त हूँ।
वह मुस्करायी,
चारों और देखा,
दीवारों की खूंटियों पर,
घर के हर कोने में,
मेज पर, अलमारी में
कल के इंतजार में पड़े आज को
और बोली
मैं हर पल को उस पल में ही जीती हूँ,
मेरे शब्दकोस में
कल जैसा शब्द नहीं।