व्याकुल
हैं भाव
उतरने को पन्नों पर,
लेकिन सील गये पन्ने
रात भर अश्कों से,
सियाही लिखे शब्दों की
बिखर जाती पन्नों पर
और बदरंग हो जाते पन्ने
गुज़री ज़िंदगी की तरह।।
उतरने को पन्नों पर,
लेकिन सील गये पन्ने
रात भर अश्कों से,
सियाही लिखे शब्दों की
बिखर जाती पन्नों पर
और बदरंग हो जाते पन्ने
गुज़री ज़िंदगी की तरह।।
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क्यों उलझ जाती ज़िंदगी
रिश्तों के जाल में,
होता कठिन सुलझाना
इस मकड़जाल को,
न ही तोड़ पाते
न ही सुलझा पाते
उलझे धागे,
कितना कठिन निकलना बाहर
और जी पाना मुक्त बंधनों से।
रिश्तों के जाल में,
होता कठिन सुलझाना
इस मकड़जाल को,
न ही तोड़ पाते
न ही सुलझा पाते
उलझे धागे,
कितना कठिन निकलना बाहर
और जी पाना मुक्त बंधनों से।
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काश पढ़ ही लेते
अपने दिल की क़िताब,
मिल जाते उत्तर
मुझसे पूछे
अनुत्तरित प्रश्नों के।
अपने दिल की क़िताब,
मिल जाते उत्तर
मुझसे पूछे
अनुत्तरित प्रश्नों के।
...©कैलाश शर्मा