Thursday, February 18, 2016

क्षणिकाएं

हर खिड़की दरवाज़े से
जाते यादों के झोंके
दे जाते कभी
सिहरन ठंडक की
कभी तपन लू की।

बंद कर दीं
सब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।

यादें कब होती मुहताज़
किसी दरवाज़े की।
*****

उधेड़ता रहा रात भर 
ज़िंदगी परत दर परत,
पाया उकेरा हर परत में
केवल तेरा अक्स,
और भी हो गए हरे
दंश तेरी यादों के।

~©कैलाश शर्मा 

Wednesday, February 03, 2016

अश्क़ जब आँख से ढला होगा

अश्क़ जब आँख से ढला होगा,
दर्द दिल का बयां हुआ होगा।

एक तस्वीर उभर आई थी,
ये पता कब धुंआ धुंआ होगा।

बात लब पर थमी रही होगी,
नज्र ने कुछ नहीं कहा होगा।

आज तक दंश गढ़ रहा यह है,
बेवफ़ा समझ के गया होगा।

चाँद का दर्द कौन समझा है,
सुब्ह चुपचाप घर गया होगा।

न कुछ हमने कहा न था तूने,
दास्ताँ कौन गढ़ गया होगा।

बारहा बात सिर्फ़ इतनी थी,
बात कहने न कुछ बचा होगा।


~©कैलाश शर्मा