हर खिड़की दरवाज़े
से
आ जाते यादों के झोंके
दे जाते कभी
सिहरन ठंडक की
कभी तपन लू की।
आ जाते यादों के झोंके
दे जाते कभी
सिहरन ठंडक की
कभी तपन लू की।
बंद कर
दीं
सब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन आ जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।
सब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन आ जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।
यादें कब होती मुहताज़
किसी दरवाज़े
की।
*****
उधेड़ता रहा रात भर
ज़िंदगी परत दर परत,
पाया उकेरा हर परत में
केवल तेरा अक्स,
और भी हो गए हरे
दंश तेरी यादों के।
पाया उकेरा हर परत में
केवल तेरा अक्स,
और भी हो गए हरे
दंश तेरी यादों के।
~©कैलाश शर्मा