Wednesday, October 23, 2019

जीवन यात्रा


कितनी दूर चला आया हूँ,
कितनी दूर अभी है जाना।
राह है लंबी या ये जीवन,
नहीं अभी तक मैंने जाना।

नहीं किसी ने राह सुझाई,
भ्रमित किया अपने लोगों ने।
अपनी राह न मैं चुन पाया,
बहुत दूर जाने पर जाना।

बढ़े हाथ उनको ठुकराया,
अपनों की खुशियों की खातिर।
लेकिन आज सोचता हूँ मैं,
अपने दिल की क्यूँ न माना।

माना समय नहीं अब बाकी,
जो भी बचा उसे अपनाया।
जो भी रेत बचा मुट्ठी में,
उसको ही उपलब्धि माना।

...©कैलाश शर्मा