Friday, October 27, 2017

चलो पथिक आगे बढ़ जाओ

चलो पथिक आगे बढ़ जाओ,
यहाँ किसी का साथ न होगा।
नियति है तेरी चलना तनहा,
यहाँ कोइ हमराह न होगा।

कुछ पल की रौनक है जीवन,
फिर आगे का सफ़र अकेला।
इक दिन अंत इसे है होना,
हर दिन कहाँ चले है मेला।

कच्चे धागे से सब रिश्ते,
कब तक साथ निभा पायेंगे।
बोझ बढाओ मत कंधों पर,
कितनी दूर उठा पायेंगे।

छांव मिलेगी नहीं राह में,  
मरुथल से है तुम्हें गुज़रना|
अश्क़ रखो अपने संभाल के
अभी बहुत कुछ आगे सहना|      

सक्षम करलो तुम पग अपने,
अभी राह में शूल बहुत हैं।
भ्रमित न हो खुशियों के पल में
अभी तो मंजिल दूर बहुत है।

दुखित न हो पिछली भूलों से,
दे कर गयीं सबक जीवन का।
कौन सदा का साथ यहां है,
चलना यहां अकेला पड़ता।

...©कैलाश शर्मा