Tuesday, September 23, 2014

चलो आज बचपन ले आयें

जीवन की आपा धापी में
बचपन जाने कहाँ खो गया,
चलो आज बचपन ले आयें।

कागज़ की कश्ती में जाने
कितने सागर पार किये थे,
कंचे, कौड़ी, छल्लों के बदले
कितने ही व्यापार किये थे।
हीरे, पन्नों की चाहत में 
धन दौलत के पीछे भगते
वह पल जाने कहाँ खो गये,

कुछ पल वे फ़िर से ले आयें,    
चलो आज बचपन ले आयें।

वह मासूम प्रेम के पल थे,
धर्म जाति का भेद नहीं था,
मिलजुल कर के सभी खेलते,
धन दौलत का फ़र्क नहीं था।
सूट, बूट, टाई के अन्दर
वह निर्मलता कहीं दब गयी,
फ़िर से मिलें आज बचपन से
धूल धूसरित तन हो जायें,
चलो आज बचपन ले आयें।

थीं छोटी छोटी बातों में खुशियाँ,
दूर हैं खुशियाँ से, सब पा कर,
कुछ पल की खुशियों की ख़ातिर,
हुए हैं गुम रिश्ते सब पथ पर।    
भूल गये अपना वो बचपन
नाना नानी से सुनीं कहानी,
आज रज़ाई में बच्चों को 
परी लोक की कथा सुनायें,
चलो आज बचपन ले आयें।

बचपन के वे संगी साथी
जाने पथ में कहाँ खो गये,
उन्हें आज़ यदि ढूंढ सकें फ़िर
एक बार बचपन जी जायें,
चलो आज बचपन ले आयें।


...कैलाश शर्मा 

Thursday, September 11, 2014

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१८वां अध्याय)

                                  मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 

               अठारहवाँ अध्याय 
(मोक्षसन्यास-योग-१८.७०-७८) (अंतिम कड़ी)

धर्ममयी  इस चर्चा का 
जो भी स्वाध्याय करेगा.
ज्ञानयज्ञ के द्वारा मेरी ही 
निश्चय वह अर्चना करेगा.  (१८.७०)

परित्याग ईर्ष्या का करके 
श्रद्धायुक्त हो इसे सुनेगा.
मुक्त सभी पापों से होकर 
पुण्यलोक को प्राप्त करेगा.  (१८.७१)

क्या तुमने यह सब अर्जुन 
करके मन एकाग्र सुना है?
अज्ञानजनित मोह तुम्हारा 
क्या सुन इसको दूर हुआ है?  (१८.७२)

अर्जुन 

मोह नष्ट हो गया है मेरा 
लौट आयी है स्मृति भगवन.
सब संदेह मिट गये मेरे 
करूँगा अब आज्ञा का पालन.  (१८.७३)

संजय 

वासुदेव अर्जुन के बीच में 
जो संवाद हुआ था राजन.
रोमांचक व विस्मयकारी 
मैंने किया है उसका श्रवण.  (१८.७४)

महत कृपा व्यास जी की से
परम गुह्य संवाद सुना है.
योग ज्ञान अर्जुन को देते 
योगेश्वर से स्वयं सुना है.  (१८.७५)

केशव अर्जुन संवाद को 
बार बार सुन कर मैं राजन.
मैं आनंदविभोर हो रहा 
रोमांचित हो रहा हूँ प्रतिक्षण.  (१८.७६)

विस्मय से मैं याद हूँ करता 
अद्भुत विश्वरूप का दर्शन.
मुझे महान आश्चर्य हो रहा 
पुनः पुनः हर्षित हूँ राजन.  (१८.७७)

योगेश्वर श्री कृष्ण जहां हैं
और जहां धनुर्धर अर्जुन.
वहाँ विजय, श्री, वैभव है 
ऐसा मेरा मत है राजन.  (१८.७८)

**अठारहवां अध्याय समाप्त**

(पुस्तक Flipkart, Ebay, Infibeam एवं अन्य e-stores पर उपलब्ध. किसी असुविधा की स्थिति में kcsharma.sharma@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)

....कैलाश शर्मा 

Tuesday, September 02, 2014

निभाया साथ बहुत है ज़िंदगी तूने

दिया है दर्द, अब वही दवा देगा,
मिलेगी मंजिल वही हौसला देगा।

गुनाह गर था जो चाहना उसको,
वही है मुंसिफ़ वही फैसला देगा।

न राह हमने चुनी है, न मंजिल ही,
कहां है जाना वही फैसला लेगा।

गुज़र गया है काफ़िला भी अब आगे,
राह सूनी में चलने का हौसला देगा।

निभाया साथ बहुत है ज़िंदगी तूने,
वक़्त-ए-रुख्सत पे हौसला देगा।
   
   (अगज़ल/अभिव्यक्ति)


...कैलाश शर्मा