Tuesday, January 19, 2016

किस किस का अहसास लिखूं मैं

मन की टूटी आस लिखूं मैं,
अंतस का विश्वास लिखूं मैं,
फूलों का खिलने से लेकर
मिटने का इतिहास लिखूं मैं।

रोटी को रोते बच्चों का,
तन के जीर्ण शीर्ण वस्त्रों का,
चौराहे बिकते यौवन का
या सपनों का ह्रास लिखूं मैं,
किस किस का इतिहास लिखूं मैं।

रिश्तों का अवसान है देखा,
बिखरा हुआ मकान है देखा,
वृद्धाश्रम कोनों से उठती
क्या ठंडी निश्वास लिखूं मैं,
क्या जीवन इतिहास लिखूं मैं।

आश्वासन होते न पूरे,
वादे रहते सदा अधूरे,
धवल वसन के पीछे काले
कर्मों का इतिहास लिखूं मैं,
टूटा किसका विश्वास लिखूं मैं।

टूट गए जब स्वप्न किसी के
मेहंदी रंग हुए जब फ़ीके,
पलकों पर ठहरे अश्क़ों की
न गिरने की आस लिखूं मैं,
किस किस का अहसास लिखूं मैं।

जीवन में अँधियारा गहरा
मौन गया आँगन में ठहरा,
कैसे अपने सूने मन की
फिर खुशियों की आस लिखूं मैं,
कैसे अपना इतिहास लिखूं मैं।

...©कैलाश शर्मा

Monday, January 04, 2016

ज़ब ज़ब शाम ढली

ज़ब ज़ब शाम ढली,
हर पल आस पली।

ज़ीवन बस उतना,
जब तक सांस चली।

दिन गुज़रा सूना,
तनहा शाम ढली।

खुशियाँ कब ठहरी,
कल पर बात टली।

सूनी राह दिखी,
मन में पीर पली।

अपना कौन यहाँ,
झूठी आस पली।

मंज़िल दूर नहीं,
सांसें टूट चली।

...©कैलाश शर्मा