Saturday, August 27, 2016

ज़िंदगी कुछ नहीं कहा तूने

ज़िंदगी कुछ नहीं कहा तूने,
मौन रह कर सभी सहा तूने।

रात भर अश्क़ थे रहे बहते,
पाक दामन थमा दिया तूने।

लगी अनजान पर रही अपनी,
दर्द अपना नहीं कहा तूने।

फूल देकर सदा चुने कांटे,
ज़ख्म अपना छुपा लिया तूने।


मौत मंज़िल सही जहां जाना,
राह को पुरसुकूँ किया तूने।

~~©कैलाश शर्मा