Friday, January 27, 2012

हाइकु - बसन्त पर

(१)
पीले हैं खेत  
प्रमुदित है मन
आया बसंत.

(२)
सर्दी है गयी
सूरज घर आया
खिले हैं फूल.

(३)
पीले हैं फूल
चेहरा भी है पीला
दूर है कन्त.

(४)
फूली सरसों
प्रियतम है दूर 
कैसा बसंत?

(५)
बदले रंग
महंगाई के संग
फीका बसंत.


कैलाश शर्मा 

Monday, January 23, 2012

हर सांस बनालो तुम प्रभु को

हर सांस बनालो तुम प्रभु को,
फ़िर रग रग में बस जायेगा.
ज़ब नज़र उठा कर देखोगे,
हर ओर नज़र वह आयेगा.

बच्चों की मुस्कानों में है,
दुखियों की पीड़ा में बसता.
है दर्द अकेलेपन का वह,
बेबस की आँखों से ढलता. 

है भूखे पेट सो रहा जो,
उसको रोटी में वो दिखता.
चिथड़ों से तन ढकने वाली,
आँखों की लज्जा में बसता.

पहले बाहर अर्चन कर लूँ,
क्या मंदिर में जाकर होगा.
खुशियाँ जो बाँट सका थोड़ी,
तो सच में प्रभु दर्शन होगा.


कैलाश शर्मा 

Tuesday, January 17, 2012

हाइकु

   (१)
अकेले चलो
मिलता नहीं साथ
मंज़िल तक.


   (२)
गलती एक 
सज़ा उम्र भर की
कैसा इन्साफ?


   (३)
नभ में चाँद 
नदी में परछाईं
दोनों है दूर.


   (४)
राहों का शोर
मन का सूनापन
दोनों हैं साथ.


   (५)
रिश्तों में गाँठ 
पड़ी जो एक बार
सुलझी कब?

कैलाश शर्मा 

Thursday, January 12, 2012

नयन ताकते रहे

बात जब तेरी उठी
दर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.


थे तिरोहित कर दिये
नयन के सब अश्रु जल,
वक़्त की चादर तले
ढक दिये सब बीते पल.


रंग मेहंदी देख कर 
कसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी 
स्वप्न सालते रहे.


चाँद था आकाश में
चांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.


दूर दीपक देख कर 
आस फिर से जग गयी,
आस की धूमिल किरण
तिमिर ढांकते रहे.


मंजिल नहीं हर राह की,
कुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.


नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.


कैलाश शर्मा

Friday, January 06, 2012

अनंत यात्रा

प्लेटफार्म पर खड़े
इंतजार में सभी,
गंतव्य है एक 
पर गाड़ी अलग अलग.


कन्फर्म्ड टिकट नहीं मिलती
गंतव्य की पहले से,
रखा जाता है सभी को 
अनिश्चित प्रतीक्षा सूची में.
आने पर गाड़ी 
करता है संचालक
टिकट कन्फर्म 
अपने चार्ट के अनुसार.


नहीं अनजान 
इस जगह से,
होता रहा है आना जाना
बार बार अनेक रूप में,
इंतज़ार में उस गाडी के 
जो ले जाए अंतिम गतव्य तक
जहां से आना नहीं पड़ता
वापिस इस स्टेशन पर.


क्यों करें इंतजार गाड़ी का
प्लेटफार्म पर खड़े हो कर.
आओ चलें बाहर 
करें पूरे वे काम
जो रह गये अधूरे
अपनों की चाहत 
पूरा करने की भाग दौड़ में.


पोंछें आंसू उन असहायों के
जो बैठे हैं बाहर,
दे दें कुछ हिस्सा 
अपनी गठरी से,
कुछ तो होगा कम 
भार सफ़र में.


नहीं है डर 
गाड़ी छूटने का,
आखिर जब होगी सीट कन्फर्म
गाड़ी तो नहीं जायेगी 
स्टेशन पर छोड़ कर.
बहुत सजग है गाड़ी का संचालक
सही समय पर 
सही गाड़ी में 
लेकर ही जाता है.

कैलाश शर्मा