Tuesday, June 07, 2016

ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है

ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है,
रोज़ देती सजा सी लगती है।

रौनकें सुबह की हैं कुछ फीकी,
शाम भी बेमज़ा सी लगती है।

राह जिस पर चले थे हम अब तक,
आज वह बेवफ़ा सी लगती है।

संदली उस बदन की खुशबू भी,
आज मुझको कज़ा सी लगती है।

दर्द जो भी मिला है दुनिया में,
यार तेरी रज़ा सी लगती है।

...© कैलाश शर्मा