Wednesday, December 12, 2018

क्षणिकाएं


जियो हर पल को
एक पल की तरह
सम्पूर्ण अपने आप में,
न जुड़ा है कल से
न जुड़ेगा कल से।
***

काश होता जीवन
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से|
***

दुहराता है इतिहास
केवल उनके लिए
जो रखते नज़र इतिहास पर।

जो चलते हैं साथ
पकड़ उंगली वर्त्तमान की,
उनका हर क़दम
बन जाता स्वयं इतिहास
अगली पीढी का।
***

धुंधलाती शाम
सिसकती हवा
टिमटिमाते कुछ स्वप्न
कसमसाते शब्द
सबूत हैं मेरे वज़ूद का।
***

...©कैलाश शर्मा

Saturday, December 01, 2018

क्षणिकाएं


नहीं चल पाता सत्य
आज अपने पैरों पर,
वक़्त ने कर दिया मज़बूर
पकड़ कर चलने को
उंगली असत्य की।
***

चलते नहीं साथ साथ
हमारे दो पैर भी
एक बढ़ता आगे 
दूसरा रह जाता पीछे,
क्यूँ हो फ़िर शिकायत
जब न दे कोई साथ
जीवन के सफ़र में।
***

ढूँढते प्यार हर मुमकिन कोने में
पाते हर कोना खाली
और बैठ जाते निराशा से
एक कोने में.

समय करा देता अहसास
छुपी थी खुशियाँ और प्यार
अपने ही अंतर्मन में
अनजान थे जिससे अब तक।
***

समझौता हर क़दम
अपनी खुशियों से,
कुचलना ख्वाहिशों का
जीवन के हर पल में,
क्या अर्थ ऐसे जीवन का।


समझौतों के साथ जीने से 
क्या नहीं बेहतर है
अकेलेपन का सूनापन?
***


...©कैलाश शर्मा

Wednesday, May 02, 2018

अनकहे शब्द


फंस जाते जब शब्द 
भावनाओं के अंधड़ में
और रुक जाते कहीं 
जुबां पर आ कर,
ज़िंदगी ले लेती 
एक नया मोड़।

सुनसान पलों में
जब भी झांकता पीछे,
पाता हूँ खड़े 
वे रुके हुए शब्द 
जो भटक रहे हैं
आज़ भी आँधी में,
तलाशते वह मंज़िल
जो खो गयी कहीं पीछे।

...©कैलाश शर्मा

Thursday, March 22, 2018

ज़िंदगी


जग में जब सुनिश्चित
केवल जन्म और मृत्यु
क्यों कर देते विस्मृत
आदि और अंत को,
हो जाते लिप्त
अंतराल में 
केवल उन कृत्यों में 
जो देते क्षणिक सुख
और भूल जाते उद्देश्य 
इस जग में आने का।


बहुत है अंतर ज़िंदगी गुज़ारने
और ज़िंदगी जीने में,
रह जाती अनज़ान ज़िंदगी 
कभी जी कर भी वर्षों तक,
कभी जी लेते भरपूर ज़िंदगी 
केवल एक पल में।


...©कैलाश शर्मा