Friday, October 23, 2015

तलाश शून्य की

भटकता तलाश में शून्य की
घिर जाता और भी
अहम् के चक्रव्यूह में,
अपनी हर सोच
अपनी हर उपलब्धि 
कर देती जटिल और भी 
चक्रव्यूह के हर घेरे को।

अहम्  खींच देता रेखा
बीच में अहम् और 'मैं' के,
अहम् की ऊँची दीवारों में
विस्मृत हो जाता 'मैं' 
अंतस के किसी कोने में,
अहम् का चक्रव्यूह कर देता दूर
स्वयं अपने से और अपनों से
और डूबने लगता मन
असीम गह्वर में अतृप्त शून्य के।


तलाश शून्य की
जब होती प्रारंभ और अंत 'मैं' पर
होने लगती पहचान 
स्वयं अपने से और अपनों से
और अनुभव एक अद्भुत शून्य का
जहाँ खो देता अस्तित्व अहम् 
गहन शून्य 'मैं' के आह्लाद में।

...©कैलाश शर्मा

Sunday, October 11, 2015

कुछ क़दम तो चलें

एक दिन तो मिलें,
कुछ क़दम तो चलें।

राह कब एक हैं,
मोड़ तक तो चलें।

साथ जितना मिले,
कुछ न सपने पलें।

राह कितनी कठिन,
अश्क़ पर क्यूँ ढलें।

भूल सब ही गिले,
आज़ फ़िर से मिलें।

...©कैलाश शर्मा 

Thursday, October 01, 2015

उम्र

उम्र नहीं केवल एक जोड़
हर वर्ष बढ़ते हुए कुछ अंकों का,
बढ़ते जाना अंकों का
नहीं है अर्थ
हो जाना व्यर्थ पिछले अंकों का,
उम्र नहीं केवल एक अंक
उम्र है संग्रह अनुभवों का,
उम्र है उत्साह
कदम अगला उठाने का,
उम्र है एक द्रष्टि
अँधेरे के परे प्रकाश देख पाने की,
उम्र है एक सोच
प्रति पल एक नयी उपलब्धि की।

नहीं रखता कोई अर्थ
अंको का छोटा या बड़ा होना,
उम्र है केवल एक अनुभूति
अंको से परे जीवन की
जहाँ खो देते अंक
अस्तित्व अपने होने का।

....©कैलाश शर्मा