Friday, December 24, 2010

फिर भी प्यास नहीं बुझ पायी

                  पीडाओं के  घिर आये घन,
                  अश्कों में डूब गया अंतर्मन,
फिर भी प्यास नहीं बुझ पायी अंतस के प्यासे मरुथल की.

छोड़ दिया है साथ आज उर के विश्वासों की सीता ने,
सुखा दिये नयनों के आंसू आज सुलगती पीडाओं ने,
                  अधरों का होता है कम्पन,
                  अनबूझे  रह  जाते बंधन,
छली गयी है आज सदा की तरह आस मम अंतस्तल की.

कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
एक  क्षणिक  अंतर में ही  विश्वासों के  आधार  ढह गये.
                  था कल तक नयनों में अपना पन,
                  है  आज  मगर  अनजाना  पन,
देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.

क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ  नहीं होता है ,
                  अनबूझे रह गये निमंत्रण,
                  इंतज़ार में बीत गये क्षण,
पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की.

49 comments:

  1. छोड़ दिया है साथ आज उर के विश्वासों की सीता ने,
    kya bat kahi bahut khoob

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  2. अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    ... bahut sundar ... prasanshaneey lekhan !!!

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  3. कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
    एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये
    क्या सही कहा है आपने। आभार।

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  4. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,

    वास्तविकता के धरातल पर टिका एक उत्कृष्ट गीत।
    इस यथार्थपरक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।

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  5. नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ?
    बहुत गहरा प्रश्न किया है आपने,उत्कृष्ट गीत के लिए, बधाई

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  6. आपकी इस यथार्थपरक रचना में वर्तमान जीवन की कटु सच्चाईयां भी दिख रही हैं । आभार...

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  7. नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की.
    सच्चे प्रेम की भाषा तो नयनो से ैअधिक क्या और कौन समझ सकता है। मगर आज शायद प्रेम के मायने बदल गये हैं। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।

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  8. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    सुंदर भावों से सजी कविता।

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  9. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की

    मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  10. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की

    सुन्दर और भावप्रवण मधुर गीत .

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  11. कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
    एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये.
    था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.

    बहुत सुंदर पंक्तियां....

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  12. फिर भी प्यास नहीं बुझ पायी अधरों के प्यासे मरुथल की

    mujhe yahan adhron shabd anukool nahi lag raha.

    baaki rachna bahut sunder.

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  13. था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की....

    इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति पहली बार देखी । बहुत अच्छी लगी रचना।
    आभार कैलाश जी।

    .

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  14. एक बेहतरीन रचना ।
    काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन ।
    बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति ।
    सुन्दर भावाव्यक्ति ।

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  15. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    xxxxxxxxxxxxxxxxx
    वास्तविकता यो यह है की अधरों की भाषा में प्रेम अभिव्यक्त हो ही नहीं पाता......बहुत गहरा अर्थ लिए पंक्तियाँ ...शुक्रिया

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  16. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमं
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की.
    kailash ji .... aapne bahoot hi khoobsurat tarike se man ke bhavon ko awaj di hai.......

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  17. अश्क प्यास बुझाते नही .. प्यास ब्ढा देते हैं
    बेहतरीन रचना

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  18. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति मन को छू गयी।

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  19. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    Vaah Kailashji in do panktiyon me kitni badi baat
    kah gaye aap... Komal see marmsparshi rachna.

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  20. संवेदनशील ह्रदय के उदगार जो मन को छू जाते हैं ! इसी पीड़ा के पंक में ही तो आनंद का कमल छिपा है !

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  21. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की.

    बहुत सुन्दर, प्रभावी पंक्तिया है ये आपकी रचना की !

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  22. मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति|आभार|

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  23. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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  24. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  25. आदरणीय कैलाश जी भाईसाहब
    नमस्कार !

    फिर भी प्यास नहीं बुझ पाई सुंदर, कोमल भाव संजोए हुए गीत के लिए आभार !

    ۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞

    ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

    ۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞۩۩۞
    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  26. बहुत ही प्यारी रचना... और अंतिम पंक्ति तो... वाह...

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  27. मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति

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  28. अनबुझे रह गए निमंत्रण- हृदय की बहुत ही सुंदर उच्छवास।

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  29. कैलाश जी, बहुत प्‍यारी बन पडी है यह रचना। यह प्‍यास मुबारक हो।

    ---------
    अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
    मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

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  30. kmal bavon ka sundar geet..
    antim band bahut sundar laga.
    dhanyvad kailashji!

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  31. "क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है"

    सुन्दर रचना, प्रथम बार आपकी रचनाएं पढ़ीं, बहुत सुन्दर एंव सार्थक लेखनी है आपकी, साधुवाद.

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  32. अनबूझे रह गये निमंत्रण...

    umda!

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  33. pria sharma ji

    namskar !

    ( nain -hin nainon ko banche ,krishna mila karte hain --_)

    darsan -kavya ki lagayi hat ,bahut sunder.

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  34. शर्मा जी, नमस्कार!

    क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,

    एक बात जरूर कहना चाहूंगा आज इस पर, कुछ नया सा एहसास हुया मुझे इस गीत को पढकर .. अधरों की भाषा तो स्थूल है, नयनों का संकेत सूक्ष्म और जो मन की भाषा है वहाँ तक तो नयनों की pahunch भी नहीं है , आप का संकेत प्रेम की इसी सर्वोच्चा और निस्स्वार्थ - निश्छल - निर्वैयक्तिक प्रेम का संकेत करता है....सच कहूँ तो कविता दिल में गहरायी तक उतर्गायी. बार- बार पढने से भी मन भरता नहीं...एईसी कविता कभी- कभी मिलती है..प्रस्तुतीकरण हेतु आभार...

    साथ ही नव वर्ष की अग्रिम शुभ कामनाएं.....

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  35. आद.शर्मा जी,
    `देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.`
    बहु दिनों के बाद एक अच्छे गीत से मुलाकात हुई !
    सुन्दर भावों से ही ऐसे गीत उपजते हैं !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  36. कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
    एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये.
    था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.

    क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    पल भर में निश्वास बन गयी, मम अंतर की आस मिलन की

    बहुत सुंदर ! इस कविता की ऊंचाई को छूने के लिये प्रशंसा के उतने ही ऊंचे शब्द की भी आवश्यकता है,जो मेरे पास हैं ही नहीं
    बस धन्यवाद ही दे सकती हूं

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  37. कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
    एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये.
    था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.

    सुन्दर कविता , आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम !

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  38. था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की..

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...बेहतरीन ।

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  39. prem me aankhon ki hi ankahi bhasha hoti hai...sundar rachna

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  40. एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये.
    मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!!!

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  41. मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति

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  42. बहुत ही संवेदनशील अभिव्यक्ति है। इस लाजबाव गीत के लिए दिल से आभार ।

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  43. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ...
    क्या हटा दे तो सवाल अपने आप में ही जवाब है ...
    सुन्दर गीत !

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  44. कौन मीत किसका, कलके साथी अनजाने आज बन गये ,
    एक क्षणिक अंतर में ही विश्वासों के आधार ढह गये.
    था कल तक नयनों में अपना पन,
    है आज मगर अनजाना पन,
    देख अज़नबीपन नयनों में, ठिठक गयी मुस्कान अधर की.

    दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  45. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ,
    अनबूझे रह गये निमंत्रण,
    इंतज़ार में बीत गये क्षण,
    बहुत सुन्दर प्रेम गीत.
    वाह वाह क्या बात है

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  46. क्या अधरों की भाषा में ही प्रेम व्यक्त करना होता है,
    नयनों की भाषा का भी क्या कोई अर्थ नहीं होता है ...

    छू गयीं ये पंक्तियाँ दिल को .... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ....

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  47. बहुत ही सुंदर रचना। बहुत पुरानी पोस्‍ट है। पर अच्‍छी है।

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