Monday, January 24, 2011

क्षणिकाएं

     (१)
जन जन को पीस रहा
शासन का तंत्र है,
शायद यही जनतंत्र है.

     (२)
सन्नाटे की आवाज़
होती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.

     (३)
एक मुक़म्मल ज़हां
की तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी.

     (४)
खुशी तलाशते फिरते हैं
हर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं हैं हम.

     (५)
रिश्तों की ठंडक से
होगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.

42 comments:

  1. हर क्षणिका बहुत सुन्दर


    रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही

    यह बहुत पसंद आई

    ReplyDelete
  2. सचमुच हर क्षणिका एक से बढ़कर एक , जन जन को पीस रहा तन्त्र !!
    गणतन्त्र दिवस आने वाला है अग्रिम बधाई!

    ReplyDelete
  3. शानदार क्षणिकाएं

    सन्नाटे की आवाज़
    होती है इतनी तेज
    कंपा देती है अंदर तक,
    फिर भी दबा नहीं पाती
    मन का कोलाहल.

    ReplyDelete
  4. हर क्षणिका बेहतरीन
    खुशी तलाशते फिरते हैं
    हर गली मोहल्ले में,
    लेकिन जब वह
    टकरा के निकल जाती है
    पहचानते नहीं हैं हम.
    जीवन के सत्य को याद दिलाती

    ReplyDelete
  5. जिन्दगी की कड़ुवी सच्चाई

    ReplyDelete
  6. रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही.

    ज़िन्दगी की कडवी सच्चाइयाँ उजागर की है आज तो आपने…………हर क्षणिका एक से बढकर एक्।

    ReplyDelete
  7. एक से बढ़कर एक , उम्दा क्षणिकाएं।

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं....आभार

    ReplyDelete
  9. एक मुक़म्मल ज़हां
    की तलाश में,
    टुकड़े टुकड़े में
    जी रहे हैं
    ज़िंदगी.
    सचमुच हर क्षणिका एक से बढ़कर एक है, जीवन की सच्चाई से अवगत कराती हुई सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  10. हर क्षणिका बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  11. शायद यही अब तंत्र है।

    ReplyDelete
  12. रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही.
    यूँ तो सब क्षणिकाएं अच्छी है पर दिल में उतर गयी यह, बधाई

    ReplyDelete
  13. bertman ki sunder vyakya ki hai

    ReplyDelete
  14. खूबसूरत क्षणिकाएं .....

    एक मुक़म्मल ज़हां
    की तलाश में,
    टुकड़े टुकड़े में
    जी रहे हैं
    ज़िंदगी

    खास अच्छी लगी.....

    ReplyDelete
  15. ज़िन्दगी की कडवी सच्चाइयाँ उजागर की है आपने| हर क्षणिका एक से बढकर एक। आभार |

    ReplyDelete
  16. बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं .पांचो बेहतरीन.

    ReplyDelete
  17. भावपूर्ण प्रस्तुति

    ReplyDelete
  18. सन्नाटे की आवाज़
    होती है इतनी तेज
    कंपा देती है अंदर तक,
    फिर भी दबा नहीं पाती
    मन का कोलाहल.
    raat bhar sone tak nahi deti

    ReplyDelete
  19. very beautiful , sabhee ek se bada ker ek . thanks

    ReplyDelete
  20. adarniya sharma sahab,

    pranam

    abhivyakti ka apratim prayojan.shubh,vicharniya
    prashansniya. man ko chhute bhav.--kiska
    -jantantra-- kiske liye.

    ReplyDelete
  21. रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही.

    आदरणीय कैलाश जी ... हर कमाल की है ... बेहतरीन शब्द .. बेहतरीन भाव ... शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  22. सन्नाटे की आवाज़
    होती है इतनी तेज
    कंपा देती है अंदर तक,
    फिर भी दबा नहीं पाती
    मन का कोलाहल.

    ....बहुत सुंदर...........

    ReplyDelete
  23. जीवन की सच्चाई से अवगत कराती पांचो क्षणिकाएं कमाल की है.
    बेहतरीन
    आभार
    शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  24. एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं...

    ReplyDelete
  25. रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही...bahut khub kaha ji.

    ReplyDelete
  26. उम्दा क्षणिकाएँ.

    ReplyDelete
  27. रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही.

    behad khoobsurat magar dukhbhari panktiyan....

    ReplyDelete
  28. खूबसूरत क्षणिकाएं

    ReplyDelete
  29. bahut achchi kashnikaayen hai..
    sannate kee aawaz bahut pasand aai

    ReplyDelete
  30. kshanikaayen hriday ke taar ko jhankrit karati hain.
    Bhawpurn abhivyakti.

    ReplyDelete
  31. SUNDAR KSHANIKAYEN.

    गणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  32. बहुत ही सुन्दर गणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  33. बहुत सुन्दर शब्दों मै पिरोई हुई रचना !

    गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !

    ReplyDelete
  34. एक मुक़म्मल ज़हां
    की तलाश में,
    टुकड़े टुकड़े में
    जी रहे हैं
    ज़िंदगी

    क्या बात कह दी आपने कैलाश जी !

    ReplyDelete
  35. सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी हैं कम शब्दों मे कितनी बडी बात कहना ही ़ाणिका का सौंदर्य है जिसे आपने बखूबी निभाया है
    एक मुकम्मल---- ये क्षणिका सब से अध्क पसंद आयी पहली और आखिरी भी बहुत अच्छी हैं सुन्दर ़ाणिकाओं के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  36. सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी है एक से बढकर एक। आभार |

    ReplyDelete
  37. उत्तम प्रस्तुति... बधाईयां...

    ReplyDelete
  38. खुशी तलाशते फिरते हैं
    हर गली मोहल्ले में,
    लेकिन जब वह
    टकरा के निकल जाती है
    पहचानते नहीं हैं हम.


    जीवन भी क्या विरोधाभास है ..बहुत सुंदर हैं सभी क्षणिकाएं

    ReplyDelete
  39. sahi kaha aapne...
    एक मुक़म्मल ज़हां
    की तलाश में,
    टुकड़े टुकड़े में
    जी रहे हैं
    ज़िंदगी!!
    kuchh logo jindagi bhar talaashte hi rahte hai...kya talaashte hain?ye shaayad hi samjh payen kabhi vo..
    ************************************************

    खुशी तलाशते फिरते हैं
    हर गली मोहल्ले में,
    लेकिन जब वह
    टकरा के निकल जाती है
    पहचानते नहीं
    jis khushi ko talashte hain..
    vo khud ke paas hai..
    par hum talashte baahar hi hai-kisi sthaan par,kisi vyakti main ya fir paristhiti main..
    *********************************************
    रिश्तों की ठंडक से
    होगया है ज़िस्म
    इतना सर्द,
    ज़म जाते हैं अश्क
    आँखों से गिरते ही!!
    aur fir unhin aankhon main apne liye pyaar ka geelapan bhi dekhna chaahte hain...

    ReplyDelete