तृतीय अध्याय
अर्जुन
हे वार्ष्णेय बताओ मुझको
ऐसा क्या कारण है होता.
नहीं चाहते हुए भी मानव
पाप कर्म अग्रसर होता.
श्री भगवान
काम क्रोध इसका कारण है,
जो रज गुण से पैदा होता.
इसे ही अपना वैरी समझो,
पापी महा, सर्वभोक्ता होता.
धूम्र ढके है जैसे अग्नि,
धूल है दर्पण को ढक लेता.
यथा गर्भ चर्म आच्छादित,
रजगुण तथा ज्ञान ढक देता.
काम ज्ञान आच्छादित करता,
ज्ञानी जन का चिर शत्रु है.
जितना भोगो उतना भडके,
विषय भोग अग्नि सदृश है.
इन्द्रिय, मन, बुद्धि में स्थित
होकर ज्ञान करे आच्छादित.
अर्जुन काम इस तरह करता
सब प्राणी जन को है मोहित.
तुम अपनी इन्द्रिय पर अर्जुन,
सबसे पहले करो नियंत्रण.
पाप रूप काम को तज दो,
ज्ञान विज्ञान नाश का कारण.
तन से श्रेष्ठ इन्द्रियां होतीं,
श्रेष्ठ इन्द्रियों से मन होता.
मन से निश्चय बुद्धि श्रेष्ठ है,
बुद्धि परे अंतर्यामी आत्मा.
जान बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा
कर संयुक्त आत्मा से मन.
बहुत कठिन विजय है जिस पर
करो काम रूप शत्रु का मर्दन.
........तीसरा अध्याय समाप्त
.........क्रमशः
कैलाश शर्मा
तन से श्रेष्ठ इन्द्रियां होतीं,
ReplyDeleteश्रेष्ठ इन्द्रियों से मन होता.
मन से निश्चय बुद्धि श्रेष्ठ है,
बुद्धि परे अंतर्यामी आत्मा.
बहुत सुन्दर विवरण सुन्दर शब्दावली ...बधाई कैलाश जी
तुम अपनी इन्द्रिय पर अर्जुन,
ReplyDeleteसबसे पहले करो नियंत्रण.
पाप रूप काम को तज दो,
ज्ञान विज्ञान नाश का कारण.
भावों का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,अच्छी श्रंखला
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
बहुत सुंदर और सरल भाषा में सार तत्व कह दिया
ReplyDeleteहिंदी अनुवाद देख कर हम जैसे हिंदी प्रेमियों के लिये गर्व का विषय है. आदरणीय कैलाश जी आपको हृदय से नमन.
ReplyDeleteआनन्द और ज्ञान दोनों चले आ रहे हैं, सरल साहित्य में सजे..
ReplyDeleteसरल भाषा मे बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रसंग चल रहा है …………आभार
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है साप्ताहिक महाबुलेटिन ,101 लिंक एक्सप्रेस के लिए , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक , यही उद्देश्य है हमारा , उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी , टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें
ReplyDeleteआभार...
Deleteतन से श्रेष्ठ इन्द्रियां होतीं,
ReplyDeleteश्रेष्ठ इन्द्रियों से मन होता.
मन से निश्चय बुद्धि श्रेष्ठ है,
बुद्धि परे अंतर्यामी आत्मा.
सरल सहज भाषा...सारगर्भित...आभार !!
क्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
सुंदर !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteउत्कृष्ट |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई |
Its interesting to read such great scriptures in this form :)
ReplyDeletea lot to think n learn !!!
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteअद्भुत सर....
ReplyDeleteइस अद्वितीय शृंखला के लिए सादर बधाई स्वीकारें...
सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।
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