Sunday, September 29, 2013

इंतज़ार

जब बैठते थे हम दोनों
दुनियां से दूर
लेकर हाथों में हाथ
इन कठोर चट्टानों पर,
पिघलने लगते थे
कठोर प्रस्तर भी
अहसासों की गर्मी से।
बहती हुई हवा
फैला देती खुश्बू चहुँ ओर
हमारे पावन प्रेम की।
थाम कर कोमल हथेलियाँ
किये थे कितने मौन  वादे
एक दूसरे की नज़रों से।

न जाने कब और क्यूँ
छा गये काले बादल
अविश्वास और शक़ के
हमारे प्रेम पर,
अश्क़ों की अविरल धारा
वक़्त के हाथों में
बन गयी एक सागर
चट्टानों के बीच
और बाँट दिया
दो सुदूर किनारों में।

आज भी खडी
उसी चट्टान पर
ढूँढती हैं सूनी नज़रें
सागर का वह किनारा
जहाँ खो गए तुम
वक़्त की लहरों में।

.....कैलाश शर्मा 

34 comments:

  1. इस कविता से साफ लगता है कि आप का मन कितना प्रेमिल है! सागर-तट, किनारे, प्रेम-युगल, प्रेमानुभव इत्‍यादि बातें जो आपने कविता में प्रस्‍तुत कीं उससे प्रेम के लिए मन में हिलोरें उठने लगीं।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 30/09/2013 को
    भारतीय संस्कृति और कमल - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः26 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।

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  4. काश सब पूर्ववत पावन ही होता... सदैव!

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  5. बहुत सुन्दर ..........

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  6. पिघलने लगते थे
    कठोर प्रस्तर भी
    अहसासों की गर्मी से…. क्या बात !
    आपने प्रेम की पराकाष्ठा तथा उसके दोनों पहलुओं की ( समर्पण और अविश्वास ) व्याख्या बहुत ही सुन्दर तरीके से की है…. बधाई

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  7. सागर लहरें समय समेटे, एक एक कर आती रहती।

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  8. विरहा में समाया सागर जैसा अद्भुत प्रेम. सुन्दर कृति.

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  9. अविश्वास के चंद पल उम्र भर का विछोह दे जाते हैं ... जला देना चाहिए इन्हें उभरने से पहले ही ...

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  10. आज भी खडी
    उसी चट्टान पर
    ढूँढती हैं सूनी नज़रें
    सागर का वह किनारा
    जहाँ खो गए तुम
    वक़्त की लहरों में।
    बहुत सुन्दर !
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  11. इंतज़ार की इंतिहा को बयां करती शानदार पोस्ट |

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  13. आज भी खडी
    उसी चट्टान पर
    ढूँढती हैं सूनी नज़रें
    सागर का वह किनारा
    जहाँ खो गए तुम
    वक़्त की लहरों में।.उम्दा पोस्ट

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  14. न जाने कब और क्यूँ
    छा गये काले बादल
    अविश्वास और शक़ के
    हमारे प्रेम पर,....
    और बाँट दिया
    दो सुदूर किनारों में।

    एक भूल और कितनी बड़ी सजा .....सोचने पर मजबूर करती रचना

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  15. खो गए तुम
    वक़्त की लहरों में------क्या कहने !!

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  16. दो किनारा ही सब कह रहा है..सुन्दर रचना..

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  17. दो किनारा ही सब कह रहा है..सुन्दर रचना..

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  18. वाह ! बहुत ही कोमल एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! अति सुन्दर !

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  19. bhavnatamak avam vicharatamak prastuti

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  20. बहुत सुन्दर रचना

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  21. जिंदगी में कई रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो नदी के दो किनारों की तरह आमने-सामने रहते हैं फिर भी कभी नहीं मिलते...

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  22. सागर का वह किनारा
    जहाँ खो गए तुम
    वक़्त की लहरों में।.उम्दा पोस्ट
    Recent post ....क्योंकि हम भी डरते है :)

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  23. आज भी खडी
    उसी चट्टान पर
    ढूँढती हैं सूनी नज़रें
    सागर का वह किनारा
    जहाँ खो गए तुम
    वक़्त की लहरों में।
    आपकी यह उत्कृष्ट रचना ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in पर कल दिनांक 6 अक्तूबर को लिंक की जा रही है .. कृपया पधारें ...
    साभार सूचनार्थ

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  24. कैलाश जी बहुत ही बढ़िया रचना... पुराने दिन याद हो आये

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  25. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-
    नवरात्रि की शुभकामनायें-

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  26. सुन्दर रचना ......नमस्ते भैया .

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  27. अंतर्व्यथा की सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.

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  28. वक़्त यूं ही इम्तिहान लेता है ... मन की अंतरव्यथा को बखूबी लिखा है ।

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