Thursday, February 13, 2014

कैसा, किसका प्रेम दिवस है?

जीवन सीमित जब रोटी तक,
स्वप्न नहीं आँखों में कल का,    
चौराहे पर खड़ा हो बचपन,
पूछो उनसे क्या प्रेम दिवस है.

नहीं मिला जो काम अगर तो,
न मिल पाये बच्चों को रोटी,
नहीं जो बिक पाये गुलाब गर,
भूखे पेट क्या प्रेम दिवस है।

चुम्बन, आलिंगन, गुलाब क्या,
नहीं अभाव का जीवन समझे,
जिस दिन दो रोटी  मिल जायें 
उनको वह दिन प्रेम दिवस है।

सिर पर बोझ उठाये फिरता,
घर घर झाड़ू पोंछा जो करती,
थकी थकी हर शाम है आती,
कैसा, किसका प्रेम दिवस है?

प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
प्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।


....कैलाश शर्मा 

31 comments:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 15/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    कृपया पधारें ....धन्यवाद!

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  2. मानवीय संवेदनाओं से भरपूर अत्यंत हृदयग्राही रचना ! बहुत सुंदर !

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  3. सटीक बात कहती बहुत ही सुंदर एवं सार्थक भवाभिव्यक्ति।

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  4. कितनी सुन्दर कविता कह दी सच मानो यह प्रेम-दिवस है ।

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  5. सच प्यार तो अंतस से निकली हुई अनुभूति है ..... संवेदना से परिपूर्ण कविता .....

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  6. इस बसंती बयार में आपने जीवन की वास्तविकता की बहुत सटीक ढंग से रखा है. बहुत सुन्दर रचना.

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  7. जब जीवन के मौलिक प्रश्न अनुत्तरित हों तो कैसा प्रेम दिवस।

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  8. प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
    प्रेम है बस मन की अनुभूति,
    अंतस में जब प्यार बसा हो,
    समझो हर दिन प्रेम दिवस है।

    वाह ! सचमुच हर दिन ही प्रेम दिवस है नहीं तो कोई नहीं..

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  9. अर्थपूर्ण भाव ...प्रेम के सही अर्थ समझने होंगें

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  10. प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
    प्रेम है बस मन की अनुभूति,
    अंतस में जब प्यार बसा हो,
    समझो हर दिन प्रेम दिवस है।

    वाह ! बहुत खूब सुंदर रचना ...!
    RECENT POST -: पिता

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  11. बहुत गहन और सटीक प्रश्न उठाती सुन्दर पोस्ट |

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  12. अंतस के प्‍यार को तो प्रेमी-जोड़ों की रोज बनती नई-नई मोर्चाबन्‍दी हरा ही रही है।

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  13. सच! प्रेम-दिवस तो ऐसा ही होना चाहिए..

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  14. आम जन के दर्द को अभिव्यक्त करती बेहतरीन कविता।

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  15. चुम्बन, आलिंगन, गुलाब क्या,
    नहीं अभाव का जीवन समझे,
    जिस दिन दो रोटी मिल जायें
    उनको वह दिन प्रेम दिवस है।

    बहुत सुन्दर !
    new post बनो धरती का हमराज !

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  16. bahut achchhi bat ......badhai apko sharma ji

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  17. बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति ...

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  18. हृदय में रहनेवाली भावना को ऐसा रूप दे दिया इस दिन ने जैसे अचानक एक दिन बुखार चढ़ आया हो !

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  19. सुंदर ,संवेदन शील कविता ........

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  20. प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
    प्रेम है बस मन की अनुभूति,
    अंतस में जब प्यार बसा हो,
    समझो हर दिन प्रेम दिवस है ..

    आपकी बात से पूरी तरह सहमत ... प्रेम मन की बात है और किसी एक दिवस की मोहताज़ नहीं ...

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  21. वाह, क्या खूब कहा आपने.. काश, हम सब समझते संवेदनशीलता का सही अर्थ..!!! परन्तु, इस 'कथित प्रेम-दिवस' में ऐसे डूबे हैं जैसे जीवन सिर्फ ये ही है..

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  22. अंतिम पैरा पूरी कविता की जान है, चार पंक्तियों में जिस तरह प्रेम की पूरी व्याख्या ही कर दी गई है वो निश्चय ही गागर में सागर है | कविता प्रश्न खड़े करती है, संवेदना से भरी पड़ी है तत्पश्चात, इसका शिल्प पक्ष कमजोर है जो इसे और अधिक सटीक, और अधिक प्रभावशाली बना सकती थी | प्रणाम |

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  23. प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
    प्रेम है बस मन की अनुभूति,
    अंतस में जब प्यार बसा हो,
    समझो हर दिन प्रेम दिवस है ..........

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