Wednesday, April 17, 2019

बेटियां


यादों में जब भी हैं आती बेटियां,
आँखों को नम हैं कर जाती बेटियां।

आती हैं स्वप्न में बन के ज़िंदगी,
दिन होते ही हैं गुम जाती बेटियां।

कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।

सोचा न था कि होंगे इतने फासले,
हो जाएंगी कब अनजानी बेटियां।

होंगी कुछ तो मज़बूरियां भी उसकी,
माँ बाप से दूर कब जाती बेटियां।

माँ बाप से दूर हों चाहे बेटियां,
लेकिन जगह दुआ में पाती बेटियां।

...©कैलाश शर्मा

16 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/04/2019 की बुलेटिन, " विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत सुंदर रचना ।

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  4. दूर कब जाती बेटियां ....

    बहुत सुंदर रचना

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  5. बहुत हृदय स्पर्शी भाव रचना।
    अप्रतिम ।

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  6. हृदयस्पर्शी रचना।

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  7. बहुत ही सुन्दर मन को छूती हुयी पंक्तियाँ ... बेटियाँ परिवार को परिवार बना कर रखती हैं ... मजबूरी होती है तब भी दिल से रहती हैं अपनी बेटियाँ ...

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  8. हृदयस्पर्शी रचना ....सादर नमस्कार आप को

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  9. कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
    दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।
    बहुत लाजवाब... हृदयस्पर्शी रचना..
    वाह!!!

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  10. होंगी कुछ तो मज़बूरियां भी उसकी,
    माँ बाप से दूर कब जाती बेटियां।
    सच है। मायके की देहरी छूटती नहीं।

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  11. बेटियों की भांति ही मन को सहलाती रचना!!!

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